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शिमला मिर्च की जैविक खेती: किस्में, रोपाई, खाद, देखभाल, उत्पादन

April 21, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

शिमला मिर्च की जैविक खेती

शिमला मिर्च को बेल पेपर या स्वीट पेपर भी कहा जाता है| शिमला मिर्च की जैविक खेती हमारे देश के विभिन्न क्षेत्रों में की जाती है| इसमें तीखापन नहीं होता, इसलिए इसका उपयोग सब्जी के रूप में एवं फास्ट फूड के रूप में ज्यादा होता है| भारत में आमतौर पर हर मौसम में शिमला मिर्च की खेती की जाती है और अन्य देशों को भी इसकी आपूर्ति की जाती है| हमारे देश में उत्पादकों को शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है|

जिससे मानव जीवन और पर्यावरण भी सुरक्षित रहें और उत्पादकों को भी कम उत्पादन लागत पर अधिकतम पैदावार मिल सके| इस लेख में शिमला मिर्च की जैविक खेती कैसे करें, उसके लिए उन्नत किस्में कौन सी है और फसल की देखभाल कैसे करें तथा इस उन्नत तकनीक से कितनी पैदावार प्राप्त हो सकती है का विस्तृत उल्लेख है|

यह भी पढ़ें- मिर्च की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

शिमला मिर्च एक रबी मौसम की सब्जी है, जिसे जनवरी से फरवरी में खेतों में लगाया जाता है| इसकी खेती वर्तमान में पॉलीहाउस में पुरे साल की जाने लगी है| जिसमें अन्य मौसम में भी खेती सफलतापूर्वक की जाती है| बरसात में ज्यादा पानी के कारण पौधों को नुकसान होता है, फूलों के गिरने की समस्या होती है| फलने के समय दिन का तापक्रम 26 से 28 डिग्री और रात्री का तापक्रम 17 से 18 डिग्री सेल्सियस उपयुक्त होता है|

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन

शिमला मिर्च की जैविक खेती मैदानी से मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में सफलतापूर्वक की जा सकती है| यह इन क्षेत्रों की एक प्रमुख नकदी फसल है| शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए अच्छी जल निकासी वाली मध्यम रेतीली दोमट भूमि उपुयक्त होती है| मिटटी का पी एच मान 5.5 से 6.8 और जैविक कार्बन 1 प्रतिशत से अधिक होनी चाहिए| मिटटी में पी एच स्तर, जैविक कार्बन, गौण पोषक तत्व (एनपीके), सूक्ष्म पोषक तत्व तथा खेत में सूक्ष्म जीवों के प्रभाव की मात्रा की जांच करवाने हेतू वर्ष में एक बार मिटटी परीक्षण जरूरी है| पी एच मान कम होने पर चुने का प्रयोग करें|

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

यदि जैविक कार्बन तत्व एक प्रतिशत से कम हो तो खेत में 20 से 25 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद का प्रयोग करें और खेत में भली प्रकार से 2 से 3 बार हल चलाकर गोबर खाद को मिलाएं, हर जुताई के बाद सुहागा प्रयोग में लायें, ताकि खेत में किसी प्रकार के ढेले न रहें और खेत अच्छी प्रकार समतल हो सके|

यह भी पढ़ें- नीम आधारित जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए किस्में

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए उत्पादकों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक उपज देने वाली किस्म का चयन करना चाहिए| कुछ अनुमोदित किस्में इस प्रकार है, जैसे- केलीफोर्निया वन्डर, यलो वन्डर, सोलन भरपूर, भारत, सोलन संकर- 1, सोलन संकर – 2, इंद्रा, डौलर और अन्य स्थानीय किस्में प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- शिमला मिर्च की उन्नत व संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए बुआई का समय

मैदानी और निचले पर्वतीय क्षेत्र- फरवरी से मार्च बुवाई का उपयुक्त समय है|

मध्य पर्वतीय क्षेत्र- मार्च से मई बुवाई का उपयुक्त समय है|

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र- रोपण योग्य पौध को निचले या मध्य पर्वतीय क्षेत्रे से लाना या पौध को नियन्त्रण वातावरण में इस तरह तैयार करें ताकि अप्रैल से मई में रोपाई हो सके|

बीज अंकुरण के समय तापमान 20 डिग्री सैल्सियस होना चाहिए| जब पौध 10 से 15 सेंटीमीटर ऊंची हो जाए तो खेत में शाम के समय इसकी रोपाई करें| रोपाई के बाद सिंचाई करना तथा कुछ दिनों तक सुबह-शाम पानी देना अति आवश्यक है|

यह भी पढ़ें- एजाडिरेक्टिन (नीम आयल) का उपयोग खेती में कैसे करें

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए बीज उपचार

बीज क्यारियों में बोने से पहले बीजों को 4 ग्राम प्रति किलोग्राम के हिसाब से ट्राइकोडर्मा विरिडी से उपचारित किया जाना चाहिए| बीज क्यारियों में बोया जाता है| जिनका आकार 1 x 3 मीटर x 20 सेंटीमीटर होना चाहिए| बीज की क्यारियों में गोबर की खाद 20 से 25 किलोग्राम तथा ट्राईकोडर्मा हरजियानम 4 ग्राम प्रति किलोग्राम और कारंज (पोगमिया) या नीम की खली शामिल किए जाते हैं| बीजों को 1 प्रतिशत पंचगव्य के साथ 12 घंटों तक संसोधित करना अच्छा होता है| पौध को टमाटर की तरह संसाधित करें|

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए जहाँ तक संभव हो सके उत्पादक बन्धुओं को स्वच्छ और जैविक प्रमाणित बीज का प्रयोग करना चाहिए| बीज की मात्रा इस प्रकार है, जैसे-

सामान्य किस्में- सामान्य किस्मों का 550 से 750 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त रहता है|

संकर किस्में- संकर किस्मों की खेती के लिए 200 से 300 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर उपयुक्त रहता है|

अन्तराल

नर्सरी- नर्सरी में स्वस्थ पौध तैयार करने के लिए कतार से कतार की दुरी 5 से 6 सेंटीमीटर रखी जाती है जबकि कतार में पौधे से पौधे की दुरी 2 से 3 सेंटीमीटर रखी जाती है|

मुख्य खेत- खेत में रोपण के समय फसल से अधिकतम उत्पादन के लिए कतार से कतार की दुरी 55 से 60 सेंटीमीटर रखी जाती है जबकि कतार में पौधे से पौधे की दुरी 40 से 45 सेंटीमीटर रखी जाती है|

बोने की गहराई- बीज बोने की गहराई 0.5 से 1.0 सेंटीमीटर के बीच की उचित मानी गई है|

यह भी पढ़ें- बैंगन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए खाद प्रबंधन

शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए फलीदार जैसी दलहनी परिवार की फसलों के साथ आवर्तन से मिटटी में नाईट्रोजन की स्थिति समृद्ध होती है| खेत में तीन से चार बार हल चलाएं और प्रत्येक जुताई के बाद सुहागा लगाये जिससे मिट्टी भुरभुरी हो जाए, खेत में 20 टन प्रति हेक्टेयर गोबर की खाद और 2 टन प्रति हेक्टेयर बी डी कम्पोस्ट या 15 टन प्रति हेक्टेयर वर्मी कम्पोस्ट डालते है, जिससे आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति संभव है|

शिमला मिर्च की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन

प्रतिरोपण के तत्काल बाद, फूल आने पर तथा फल विकास की अवस्था में पानी की कमी नहीं आनी चाहिए| शुष्क मौसम के दौरान प्रतिरोपण के बाद पहले माह 3 से 4 दिन के अन्तराल पर सिंचाई और तदोपरांत फसल तैयार होने तक 7 से 10 दिन के अन्तराल पर करें, और जल निकासी पर विशेष ध्यान दें| क्योंकि खेतों में अधिक नमी से फसल खराब हो जाती है| इसलिए खेत में पानी खड़ा न होने दें|

शिमला मिर्च की जैविक फसल में खरपतवार प्रबंधन

शिमला मिर्च की जैविक खेती हेतु खरपतवार को नियन्त्रण में रखने के लिए फसल चक्र अपनाएं| हाथ द्वारा खरपतवार निकालने से मिटटी ढीली हो जाती है, जो फसल के लिए लाभकारी है| रोपाई के 30 से 50 दिन तक खरपतवार न उगने दें| तीन से चार बार गुड़ाई के साथ खरपतवार निकाल दें|

यह भी पढ़ें- लौकी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की जैविक फसल में कीट नियंत्रण

कीट मक्खियां- शिमला मिर्च की जैविक खेती में तेला तथा थ्रिप्स पत्तों का रस चूसकर पौधे को हानि पहुंचाते हैं| ये विषाणु रोगों को भी फैलाते हैं|

नियंत्रण- रस चूसने वाले कीटों की रोकथाम के लिए नीम तेल 3 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या वरटीसीलियम लेकेनाई 0.03 प्रतिशत घोल या घनीरी अर्क 5 प्रतिशत का प्रयोग उपयुक्त होता है|

दीमक व कीट मकोड़े- ये मैदानी और निचले पर्वतीय क्षेत्रों के असिंचित इलाकों में अंकुरित पौधों को खत्मकर देते हैं|

नियंत्रण-

1. शिमला मिर्च की जैविक खेती की रोपाई से पहले मिटटी में नीम के पत्ते से तैयार की गई खाद (5 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) या नीम के बीजों से तैयार खाद (1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर) का प्रयोग करने से दीमक का प्रकोप कम हो जाता है|

2. चूना तथा गन्धक का मिश्रण जमीन में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है|

3. लकड़ी से प्राप्त राख को पौधों के तनों के मूल में डालने से दीमक के प्रकोप में कमी आती है|

4. पशू-मूत्र को पानी के साथ 1:6 अनुपात में मिलाकर बार-बार दीमक के घरों में डालने से इनके प्रसार को रोका जा सकता है|

5. वीवेरिया या मोटाराईजियम फफूंद का कण अवस्था में (6 ग्राम प्रति वर्ग मीटर) प्रयोग करें|

यह भी पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

शिमला मिर्च की जैविक फसल में रोग नियंत्रण

कमर तोड़- बीज से पौध बनते ही मुरझा जाती है, इस रोग से कभी-कभी तो पूरी पौध ही खत्म हो जाती है|

नियंत्रण-

1. क्यारियों को पंचगव्य से उपचारित करें|

2. शिमला मिर्च की जैविक खेती हेतु स्वस्थ बीज बोएं|

3. रोग के लक्षण आने पर वॉयोसोल तथा पंचगव्य को मिलाकर जमीन में डालें|

फल सड़न- फलों पर छोटे-छोटे पीले धब्बे बन जाते हैं और फल पूर्णत: सड़ जाता है| ऐसे ही धब्बे पत्तों पर आते हैं और वह भी सुख जाते हैं|

नियंत्रण-

1. शिमला मिर्च की जैविक फसल हेतु रोग मुक्त बीज व पौध लगायें|

2. सड़े फलों को एकत्र करके नष्ट करें|

3. वारडैक्स मिश्रण का छिड़काव करें|

चूर्ण आसिता रोग- इस रोग से प्रभावित पौधों पर फफूंद की सफेद व मटमैली हल्की रूई की तह नजर आती है|

नियंत्रण-

1. दूध में हींग मिलाकर (5 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करें|

2. चूर्ण आसिता बीमारी के नियंत्रण के लिए 2 किलोग्राम हल्दी का चूर्ण तथा 8 किलोग्राम लकड़ी की राख का मिश्रण बनाकर पत्तों के ऊपर डालें|

3. अदरक के चूर्ण को 20 ग्राम प्रति लीटर पानी में डालकर घोल बनाएं तथा 15 दिन के अन्तराल पर तीन बार छिड़कने से चूर्ण आसिता और अन्य फफूंद वाली बीमारियों का प्रकोप कम होता है|

यह भी पढ़ें- प्याज की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

सर्कोस्पोरा पत्तों का धब्बा- पत्तियों पर गोल-गोल धब्बे बन जाते हैं, जिनके किनारे भूरे रंग के साथ बिंदु धुंधले रंग के होते हैं| पत्तियों पर जब काफी धब्बे बन जाते हैं, तो ग्रस्त पत्तियां पीली पड़ जाती हैं और समय से पहले जमीन पर गिर जाती हैं|

नियंत्रण-

1. रोगी पौधों के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

2. शिमला मिर्च की जैविक खेती के लिए फसल चक्र अपनाएं|

3. खेतों में पानी निकास का उचित प्रबन्ध करें|

4. शिमला मिर्च की जैविक खेती हेतु स्वस्थ बीज का प्रयोग करें|

5. बीज को बीजामृत और ट्राईकोडर्मा से उपचारित करें|

पाउडरी मिल्ड्यू- इस रोग के कारण पत्तों की निचली सतह पर सफेद-सफेद धब्बे बनते हैं और उनके ऊपर फफूंद चूर्ण के रूप में उभर आती है| जिसके अनुरूप पत्तों की ऊपरी सतह पर पीले धब्बे बनते हैं तथा प्रभावित पत्ते समय से पहले गिर जाते हैं|

नियंत्रण-

1. रोगग्रस्त पत्तों को इकट्ठा करके जला दें या मिट्टी में दबा दें|

2. शिमला मिर्च की जैविक फसल में पौधों पर रोग के लक्षण देखते ही पंचगव्य का छिड़काव करें|

मिर्च का वेनल मौटल रोग- रोगग्रस्त पौधों के पत्तों में गहरे हरे रंग के धब्बे बन जाते हैं तथा शिराओं के आसपास गहरे रंग के बिन्दू व पट्टियां बन जाती हैं| यह चितकबरे धब्बे कम उम्र के पौधों पर ज्यादा नजर आते हैं| रोगग्रस्त पत्ते आकार में छोटे तथा अलग-अलग तरह से विकृत हो जाते हैं| शुरू में ही रोगग्रस्त पौधे बौने दिखते हैं और उनके तने तथा शाखाओं पर गहरी हरे रंग की धारियां नजर आती हैं| उनके अधिकतर फल बनने से पहले ही झड़ जाते हैं|

नियंत्रण-

1. मक्का को अवरोधी फसल एवं अन्य फसलों के बीच में अन्तर फसल के रूप में लगाएं, जिससे रोगवाहक कीटों की संख्या में कमी आये|

2. अल्यूमीनियम या चांदीदार चमकदार पॉलीथिन चादर का प्रयोग करें जिससे एफिड की संख्या घट जाये|

3. रोगग्रस्त पौधों से छुए हुए यंत्रों को शिमला मिर्च की जैविक फसल के रोग रहित पौधों के साथ न ले जायें|

यह भी पढ़ें- आलू की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मिर्च का मोजेक रोग- पत्तों पर हरे तथा पीले रंग के धब्बे प्रकट हो जाते हैं और हल्के गड्ढे तथा फफोले भी दिखाई देते हैं| कभी-कभी पत्ती का आकार अति सूक्ष्म और सूत्राकार हो जाता है| रोगी पौधों में फूल व फल कम लगते हैं तथा फल खुरदुरे व विकृत हो जाते हैं|

नियंत्रण-

1. यदि रोगग्रस्त पौधों की संख्या कम हो तो उन्हें उखाड़ कर दूर ले जाकर जला देना चाहिए या गड्ढे में दबा देना चाहिए|

2. एफिड की रोकथाम के लिए नीम तेल का 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|

3. शिमला मिर्च की जैविक फसल के चारों ओर व बीच-बीच में मक्का जैसी अवरोधी फसलें लगाएं|

4. एफिड संख्या को घटाने के लिए चमकदार सतह वाली पॉलीथिन की चादर को जमीन पर बिछाना चाहिए| समेकित कीट और रोग नियंत्रण की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

शिमला मिर्च की जैविक फसल के फलों की तुड़ाई

शिमला मिर्च की जैविक खेती से हरे 55 से 60 दिन रोपाई के बाद पहली तुड़ाई तथा 70 से 75 दिन बाद पीले रंग और 80 से 90 दिन में लाल रंग के फल तोड़े जा सकते है| हर 3 से 4 दिन के अंतराल बाद तुड़ाई करनी चाहिए| फल को छायादार व ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए व सीधे धुप की किरणों से बचाना चाहिए|

यह भी पढ़ें- बैंगन की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन (आईपीएम) कैसे करें

शिमला मिर्च की जैविक खेती से पैदावार

उपरोक्त उन्नत तकनीक से शिमला मिर्च की जैविक फसल से अनुकूल परिस्थितियों में समान्य किस्मों से 150 से 250 क्विंटल तथा संकर किस्मों से 250 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है| लेकिन यदि आप रासायनिक खेती से हट कर पहली बार शिमला मिर्च की खेती कर रहें है, तो शुरू के 1 से 2 साल उत्पादन में 5 से 15 प्रतिशत तक गिरावट आ सकती है|

शिमला मिर्च का बीज उत्पादन

बीज वाली फसल को सामान्य फसल की भांति ही लगाया जाता है| फसल का कम से कम तीन अवस्थाओं, जैसे- फूल आने से पूर्व, फूल व फल आने के समय तथा फल पकने पर निरीक्षण करें और आवांछनीय पौधों व फलों को निकाल दें| दो जातियों के मध्य कम से कम 200 मीटर का अन्तर रखें| क्योंकि यह फसल पर-परागित है| बीज एकत्रित करने के लिए उचित पके फलों को दो भागों में काट लिया जाता है और बीज को निकालने के बाद छाया में सुखा लें|

बीज की पैदावार- शिमला मिर्च की जैविक फसल से 75 से 100 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर तक मिल जाता है|

यह भी पढ़ें- टमाटर की फसल में समेकित नाशीजीव (आईपीएम) प्रबंधन कैसे करें

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