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Home » मक्का की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

मक्का की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, देखभाल और उत्पादन

January 21, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मक्का की जैविक खेती

मक्का की जैविक खेती, भारत में मक्का खरीफ मौसम की एक प्रमुख फसल है| यह एक बहुउपयोगी फसल है, जिसका प्रयोग भोजन एवं अन्य परिष्कृत खाद्य पदार्थ जैसे कार्न फ्लेक्स, पापकोर्न आदि में किया जाता है| खाद्य पदार्थ के रूप में उपयोग होने के कारण यदि इसका जैविक उत्पादन किया जाये तो अधिक लाभ होगा, जिससे जीवों का स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए बेहतर होंगे|

किसान भाई भी अपनी मक्का की जैविक खेती का प्रमानिकरण करवा कर अच्छे मुनाफे पर अपने उत्पादन को बेच सकते है| इस लेख में मक्का की जैविक खेती कैसे करें और इसकी उन्नत किस्में, देखभाल एवं पैदावार आदि का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- जैविक विधि से कीट एवं रोग और खरपतवार प्रबंधन कैसे करें

मक्का की जैविक खेती के लिए उपयुक्त भूमि

मक्का की जैविक फसल के लिए अच्छे जल निकास वाली दोमट मिटटी जिसमें पर्याप्त मात्रा में गली-सड़ी खाद एवं पोषक तत्व हो, अच्छी मानी जाती है| जिसका पी एच 5.5 से 7.8 हो और जैविक कार्बन की मात्रा 1 प्रतिशत से ज्यादा हो, ऐसी मिटटी उपयुक्त मानी जाती है| यदि मिटटी में जैविक कार्बन तत्व एक प्रतिशत से कम पाए जाएं तो खेत में 20 से 25 टन प्रति हैक्टेयर की दर से गोबर की खाद या कार्बनिक खाद डाली जाए और खाद को अच्छी तरह खेत में मिलाने के लिए 2 से 3 बार जुताई की जाए|

मक्का की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

मक्का की जैविक फसल के लिए पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करें ताकि पिछली फसल के अवशेष अच्छी तरह जमीन में मिल जायें| नमी बनाए रखने के लिए हर जुताई के बाद सुहागा अवश्य चलाएं|

मक्का की जैविक खेती के लिए बुआई का समय

अच्छी पैदावार लेने के लिए मक्का की जैविक फसल की बिजाई समय पर करनी चाहिए| देश के विभिन्न क्षेत्रों में मक्का की बिजाई के निम्नलिखित उपयुक्त समय हैं, जैसे-

ऊंचे पर्वतीय क्षेत्र- 15 मई से जून के प्रथम सप्ताह तक और 15 अप्रैल से मई के प्रथम सप्ताह तक

निचले पर्वतीय क्षेत्र- 20 मई से 15 जून

मध्य पर्वतीय क्षेत्र- 15 जून से 30 जून

मैदानी क्षेत्र- फसल की बुआई खरीफ के लिए जून के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए और रवि के लिए फरवरी के अंत तक बुआई कर लेनी चाहिए|

चूंकि हमारे देश में ज्यादातर मक्का की बिजाई मानसून की बारिशों पर निर्भर करती है, इसलिए कोई भी निश्चित बिजाई का समय देना संभव नहीं है| अनेक क्षेत्रों में बिजाई का समय मानसून के आने पर थोड़ा बदला जा सकता है|

यह भी पढ़ें- अरहर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मक्का की जैविक खेती के लिए किस्में

गिरिजा, अरली कम्पोजिट, बजौरा मक्का- 1, बजौरा पॉपकार्न, बजौरा स्वीटकॉर्न, एच क्यू पी एम- 1, कंचन- 517, पी एस सी एल- 3438, पी एच सी एल- 4640 आदि| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मक्का की उन्नत एवं संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

चुकी यहाँ बात मक्का की जैविक खेती की हो रही है, तो किसान भाई अच्छी पैदावार के लिए अपनी विश्वसनीय संस्था या व्यक्ति से जैविक विधि से तैयार किया गया बीज ही लें|

मक्का की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा

मक्का की जैविक खेती हेतु 20 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टेयर पर्याप्त होता है, जिससे पौधों की निश्चित संख्या प्राप्त हो जाती है|

मक्का की जैविक खेती के लिए बीज उत्पादन

संकर किस्मों- संकर किस्मों का बीज हर साल नया लेना पड़ता है|

कम्पोजिट किस्मों- गिरिजा कम्पोजिट, अर्ली कम्पोजिट, पार्वती व नवीन कम्पोजिट का बीज कम से कम 3 से 4 सालों तक रखा जा सकता है| इसके लिए नीचे दी गई सावधानियां किसानों को अपनानी चाहिए, जो इस प्रकार है, जैसे-

1. एक- दूसरी किस्म का आपस में मिश्रण न हो|

2. कम्पोजिट किस्म की एक एकड़ या उससे अधिक क्षेत्र में बिजाई करनी चाहिए|

3. खेत के मध्य से भुट्टों को तोड़कर इकट्ठा करना चाहिए, जबकि चारों तरफ 9 से 10 मीटर का क्षेत्र छोड़ देना चाहिए|

4. तोड़े गये भुट्टों से स्वस्थ भुट्टों को छांटना चाहिए तथा उनका बीज अगले साल के लिए रखना चाहिए|

5. यह आवश्यक है, कि 3000 से 5000 भुट्टों का छांटकर चयन करना चाहिए और आवश्यकतानुसार अगले साल के लिए बीज का सुरक्षित भंडारण करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- बाजरा की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

मक्का की जैविक खेती के लिए बिजाई का तरीका

हमारे देश में बहुत किसान प्रायः मक्का की फसल को छिटकवा विधि के साथ बीजते हैं, जो सही तरीका नहीं है, क्योंकि इससे पौधों में समानान्तर दूरी, रोशनी, कार्बन डाईऑक्साईड तत्वों और नमी की प्राप्ति नहीं हो पाती तथा साथ में बीज या तो ऊपरी सतह पर रह जाता है या नीचे गहरा चला जाता है| इसलिए अधिक उपज लेने के लिए मक्की को हल के पीछे 60 सेंटीमीटर दूरी की कतारों में एवं बीज से बीज 20 सेंटीमीटर की दूरी पर बीजना चाहिए जिससे 75,000 पौधे प्रति हैक्टेयर मिल सके|

यदि एक हैक्टेयर क्षेत्र में 50,000 से कम पौधे हों तो पूरी पैदावार नहीं मिलती है| मक्की के बीज को 3 से 5 सेंटीमीटर गहरा बीजना चाहिए ताकि अंकुरण सही हो| यदि बिजाई ढलानदार भूमि पर करनी हो जहां भूस्खलन की समस्या हो तो वहां पर कतारों को ढलाने की विपरीत दिशा में रखकर बिजाई करनी चाहिए|

मक्का की जैविक फसल में नमी संरक्षण और निकास

बारानी परिस्थिति में यह आवश्यक है, कि उपज बढ़ाने के लिए स्थानीय घास-फूस आदि को 10 टन प्रति हैक्टेयर भूमि पर बिछा दें, ताकि अधिक देर तक चलने वाली सूखे की स्थिति में फसल को नमी की कमी न झेलनी पड़े| अगस्त महीने में इससे भूमि में नमी बनी रहती है, जो बारानी क्षेत्रों में गेहूं की बिजाई में सहायक होती है|

मक्का की फसल में पानी की उस समय सबसे अधिक आवश्यकता होती है, जब नर एवं मादा फूल निकल रहे हों| यदि इस समय बारिश न हो तो खेत में पानी देना चाहिए| किसी भी अवस्था में खेत में खड़ा पानी नहीं रहना चाहिए| इसलिए पानी के निकास का सही प्रबंध होना चाहिए| यह काम उस समय आसान हो जाता है, जब बिजाई कतारों में की हो| पानी को किसी भी हालत में थोड़े समय के लिए भी खेत में खड़ा नहीं रहने देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैविक कृषि प्रबंधन के अंतर्गत फसल पैदावार के प्रमुख बिंदु एवं लाभ

मक्का की जैविक खेती के साथ अंतरवर्ती फसल-प्रणाली

मक्का की जैविक फसल के साथ फलीदार फसल भी लगाई जा सकती है, ताकि इकाई क्षेत्र में एक और फसल से पैदावार मिल जाए| यह संभवत: सही भी है, परंतु किसान इसे सही ढंग से नहीं करते हैं; इसलिए उपज कम रह जाती है| मक्का की दो कतारों के बीच सोयाबीन या अन्य क्षेत्रीय फसल हर परिस्थिति में लगाना चाहिए| जब मक्का को 60 या 75 सेंटीमीटर दूरी की कतारों में लगाया है तो इसकी दो कतारों के बीच में सोयाबीन या अन्य की एक कतार आसानी से लगाई जा सकती है| इससे भूमि का अच्छा उपयोग होता है तथा साथ में पानी व पोषक तत्वों का भी लाभ उठाया जा सकता है|

इसके अतिरिक्त प्राकृतिक विपदाओं या बीमारियों व कीड़ों के प्रकोप के समय यह लाभदायक है| फलीदार फसलें खरपतवारों को दबाए रखती हैं एवं साथ में ढलानदार खेतों में भूमि का संरक्षण भी करती है| यह ध्यान रखना चाहिए कि मक्का की फसल को अनुमोदित उर्वरक दें, जबकि साथ में बीजने वाली सोयाबीन की फसल के लिए 15 से 20 किलोग्राम नाईट्रोजन के साथ 20 से 25 किलोग्राम फास्फोरस प्रति हैक्टेयर अतिरिक्त दें|

मक्का की जैविक खेती के लिए खाद की मात्रा

मक्का की जैविक विधि द्वारा खेती के लिए 10 टन देसी खाद तथा 1 टन बी डी कम्पोस्टर प्रति हैक्टेयर उपयुक्त हैं या गोबर की खाद की जगह केचुआ खाद 5 टन तथा बी डी कम्पोस्ट 1 टन प्रति हैक्टेयर का भी इस्तेमाल किया जा सकता है| 8 से 10 टन प्रति हैक्टेयर गोबर की खाद को हल चलाते समय, गोबर खाद की पूरी मात्रा + वर्मी कम्पोस्ट 4 से 5 टन प्रति हैक्टेयर मिलाएं| उसके पश्चात 1/3 भाग वर्मी कम्पोस्ट को जमीन की तैयारी के समय और 2/3 भाग + पी एस बी 4.5 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज बोने के समय डालें|

जमीन में सूक्ष्म जीवों की बढ़ौतरी के लिए और फसल को समय से पोषक तत्वों के मिलने हेतु जीवामृत 500 लीटर प्रति हैक्टेयर की दर से जमीन में प्रयोग करें| फसल की अच्छी बढ़ौतरी के लिए वर्मी वाश तथा गौमूत्र की स्प्रे 7 से 10 दिन के अंतराल पर भुट्टों में दाने आने तक करते रहें|

यह भी पढ़ें- मूंग एवं उड़द की जैविक खेती, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मक्का की जैविक फसल में खरपतवार रोकथाम

मक्का की जैविक फसल में खरपतवारों की रोकथाम बिजाई से 20 से 30 दिनों के बाद बहुत आवश्यक है, ताकि फसल में दी गई पोषक तत्व की मात्रा भली-भांति मिल सके एवं पैदावार में बढ़ौतरी हो सके| मानसून वर्षा के दौरान खरपतवार मक्का की फसल को बहुत हानि पहुंचाते हैं तथा फसल की बढ़ौतरी और पैदावार पर असर डालते हैं| अतिरिक्त फसल प्रणाली का प्रयोग भी खरपतवारों को नियंखण में रखते हैं|

मक्का की जैविक फसल में कीट रोकथाम

कटुआ कीट और सफेद सुण्डी- यह कीट जमीन के अंदर पाए जाते हैं| पौधों के अंकुरण के बाद यह तने को जमीन के पास काटकर तथा उनकी जड़ों को हानि पहुंचाते हैं|

रोकथाम-

1. कच्ची गोबर की खाद का प्रयोग नहीं करें एवं जहां तक संभव हो, केचुआ खाद का प्रयोग करें|

2. जिन क्षेत्रों में प्रकोप अधिक हो, बीज की मात्रा 10 से 20 किलोग्राम अधिक प्रयोग करें|

3. बिजाई से पहले खेतों के आस-पास की झाड़ियों, खरपतवारों इत्यादि को नष्ट कर दें|

4. अंकुरण के बाद पौधों पर व आसपास राख का छिड़काव करें|

5. बिजाई के समय मेटाराइजियम फफूंद 100 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करें|

6. फसल कटाई के बाद, अवशेषों को निकाल कर जला दें|

यह भी पढ़ें- बायो फ़र्टिलाइज़र (जैव उर्वरक) क्या है- प्रकार, प्रयोग व लाभ

तना छेदक- यह मक्का का मुख्य हानिकारक कीट है, जो नए पत्तों के पर्णचक्र में घुसकर, पौधों की मध्य शाखा एवं तने को क्षति पहुंचाते हैं| नए पत्तों के पर्णचक्र के पास छोटे-छोटे छिद्र कीट का मुख्य लक्षण हैं| नए पौधों पर नुकसान अधिक होता है, जो सूखकर मुरझा जाते हैं| इस कीट की सुण्डियां भुट्टों में भी हानि पहुंचाती हैं|

रोकथाम-

1. स्वस्थ बीज का प्रयोग करें, छेद वाले बीजों को निकाल दें|

2. ग्रसित पौधों को निकालकर नष्ट कर दें|

3. मक्का की जैविक फसल के लिए बीज की मात्रा अधिक रखें|

4. खरपतवारों एवं घास इत्यादि को नष्ट कर दें और कटाई के समय फसल के अवशेषों को इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

5. नीम या अग्नि अस्त्र या बेसिलस थ्यूरिनजेनेसिस का छिड़काव करें| 6. खमीर वाली लस्सी (एक भाग) और गौमूत्र (एक भाग) को पानी (20 भाग) में मिलाकर छिड़काव करें|

बालों वाली सुण्डियां और धारीदार भृंग- यह कीट क्रमश: पौधों के नर्म पत्तों व फूलों को क्षति पहुंचाते हैं|

रोकथाम-

1. बालों वाली सुण्डियां जब शुरू में झुण्ड में होती हैं, तब उनका इकट्ठा करके नष्ट कर दें|

2. खमीर वाली लस्सी + गौमूत्र या फार्मूलेशन- 2 का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- हरी खाद क्या है- लाभ, उपयोग व फसलें

बीजाणु जनित तना गलन- जमीन के पास की सतह का तना नर्म हो जाता है एवं कुछ समय बाद टूट कर गिर जाता है| अग्रिम अवस्था में ग्रसित खेतों से शराब जैसी दुर्गंध आती है|

रोकथाम-

1. खेतों में पानी के निकास की सही व्यवस्था करें|

2. बिजाई तथा गुड़ाई के समय पौधों के इर्द-गिर्द खेत में संजीवक व वॉयोसोल का घोल बनाकर डालें|

झुलसा रोग- मक्का के पत्तों पर कई तरह के धब्बे, धारियां या झुलसन के लक्षण दिखाई देत हैं| जिससे खेतों में सूखे जैसे लक्षण दिखते हैं|

रोकथाम-

पत्तों में झुलसा के लक्षण दिखाई देने पर एक सप्ताह के अन्तराल में वर्मीवाश या पंचगव्य से छिड़काव करे|

बीज गलन- रोग ग्रसित बीज अंकुरण से पहले या एक दम बाद गलकर मर जाते हैं|

रोकथाम-

1. स्वस्थ बीज का प्रयोग करें।

2. बिजाई से पहले बीजामृत, ट्राइकोडर्मा से उपचारित करें|

यह भी पढ़ें- सोयाबीन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल व पैदावार

मक्का की जैविक फसल की कटाई

अधिक उपज देने वाली किस्में, जल्दी ही पक कर तैयार हो जाती हैं, जबकि पौधा अभी तक हरा होता है| भुट्टों के बाहर पणच्छिद भूरा हो जाता है, जब दोनों में 30 प्रतिशत से कम नमी हो तो भुट्टों को तोड़ लेना चाहिए तथा खेत में अधिक देर तक नहीं रहने देना चाहिए अन्यथा जानवरों एवं पक्षियों से हानि हो सकती है| भुट्टों को पौधों से तोड़ने के बाद सुखा लें तथा दाने निकाल कर उनमें जब 15 प्रतिशत तक नमी हो तो मंडी या मार्केट में ले जाएँ|

शेष बचे तनों को पशुओं के चारे के रूप में प्रयोग किया जा सकता है| दूसरा तरीका यह भी है, कि फसल पकने पर पौधों को भुट्टों के साथ ही काट कर छोटे गट्ठे बनाकर ढेर लगा दें व सुखा लें एवं फिर दानों को सुविधानुसार निकाल लें|

फसल चक्र- मक्का पर आधारित निम्नलिखित फसल चक्र लाभदायक है, जैसे-

सिंचित क्षेत्र- मक्का – तोरिया – गेहूं- मक्की चारा

बारानी क्षेत्र- मक्का + तिल – गेहू + चना|

मक्का की जैविक खेती से पैदावार

उपरोक्त विधि से मक्का की जैविक खेती से औसतन पैदावार 40 से 55 क्विंटल प्रति हैक्टेयर आंकी जाती है|

मक्का का भंडारण

अनाज को अच्छी तरह से सुखाया जाना चाहिए (धूप में), जब दानों में नमी की मात्रा 12 प्रतिशत से कम रह जाए तब दानों का भंडारण किया जा सकता है| अनाज को भंडार करने के लिए प्रयोग में लाए जाने वाले गोदामों को भली-भांति साफ करना चाहिए ताकि उसमें किसी प्रकार की नमी न रह जाए| मक्का के दानों में 0. 5 प्रतिशत पीसा हुआ मिर्च का पाउडर मिलाएं ताकि अनाज बीटल की क्षति से बच सके| इसी प्रकार 20 प्रतिशत नीम पाऊडर के प्रयोग से भंडार किए गए अनाज में कीट-पतंगों का प्रकोप नहीं होता है|

विशेष- किसान भाइयों की जानकारी के लिए की मक्का की जैविक खेती में किसी भी प्रकार के रसायनों का प्रयोग नही करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन

प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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