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बच की खेती: किस्में, रोपाई, सिंचाई, पोषक तत्व, देखभाल, उत्पादन

December 17, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

बच एरेसी कुल का एक पौधा है| जिसका वानस्पतिक नाम ‘एकोरस केलमस’ है| इसका तना बहुतशाखित एवं भूमिगत होता है| पत्तियां रेखाकार से भालाकार, नुकीली मोटी मध्य शिरा युक्त होती है| इसका पुष्पक्रम 4.8 सेंटीमीटर का स्पेडिक्स होता है| इसके फूल हरापन लिए पीले होते हैं और इसके फल लाल तथा गोल होते हैं|

बच का पौधा संपूर्ण भारत वर्ष में मुख्य रूप से हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, बिहार व् अन्य प्रदेशों में पाया जाता है| नदी-नालों के किनारे एवं दलदली व गीली जगह इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त होती है|

बच के राइजोम का तेल ग्रेस्ट्रिक, श्वास रोगों में, बदहजमी, दस्त, मूत्र एवं गर्भ रोगों में, हिस्टीरिया और खांसी इत्यादि रोगों में प्रयुक्त होता है| इस लेख में बच की खेती कैसे करें, और इसके लिए उपयुक्त भूमि, किस्में, देखभाल एवं पैदावार का उल्लेख है|

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बच की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

जिन क्षेत्रों का तापमान 10 से 38 डिग्री सेल्सियस और जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 250 सेंटीमीटर तक होती हो, वह बच की खेती के लिए उपयुक्त होती हैं|

बच की खेती के लिए भूमि का चयन 

बच की खेती के लिए बालुई दोमट मिट्टी, जहां सुनिश्चित सिंचाई व्यवस्था हो अधिक उपयुक्त होती है| जिन क्षेत्रों में सिंचाई की पर्याप्त व्यवस्था न हो, वहाँ बच की खेती नहीं करनी चाहिए|

बच की खेती के लिए खेत की तैयारी

बच की खेती के लिए वर्षा से पहले भूमि की दो-तीन बार अच्छी तरह जुताई कर लेनी चाहिए| रोपाई से पहले भूमि की तैयारी धान की तैयारी की तरह की जानी चाहिए| भूमि का थोड़ा दलदली बनाया जाए तो ज्यादा उपयुक्त होगा|

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बच की खेती के लिए रोपाई

इसकी खेती के लिए इसके राइजोम को लगाया जाता है| इसके लिए प्लांटिंग मेटेरियल प्राप्त करने के लिए इसके पुराने राइजोम को ऐसी मिट्टी में जहां लगातार नमी बनी रहती हो, दबाकर रखा जाता है| इनमें नये अंकुरण होने पर इन राइजोम को छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर इनका रोपण किया जाता है|

काटे गए राइजोम के टुकड़ों को तैयार की गई मिटटी में 30 X 30 सेंटीमीटर के अंतराल पर मिट्टी के लगभग 4 सेंटीमीटर अंदर बरसात शुरू होने से पहले या बरसात शुरू होते ही जून माह में लगाया जाता है| इस प्रकार प्रति हेक्टेयर लगभग 1,11,000 पौधे लगाये जाते हैं|

यदि भूमि गीली या दलदली न हो तो रोपाई के तुरन्त बाद आवश्यक रूप से पानी देना चाहिए| बच की वृद्धि दर बहुत अच्छी होती है और दूसरे दिन से ही पौधों में वृद्धि दिखाई पड़ने लगती है|

बच की खेती में पोषक तत्व प्रबन्धन

अच्छी फसल के लिए लगभग 15 ट्राली गोबर खाद या कम्पोस्ट खाद प्रति हेक्टेयर की दर से रोपाई से पहले मिटटी में मिला देनी चाहिए| उर्वरकों की कोई विशेष आवश्यकता नहीं है|

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बच की खेती में सिंचाई प्रबंधन

बच के लिए पानी की अत्यधिक आवश्यकता होती है| वर्षा ऋतु में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती| बाकी दिनों में 2 से 3 दिन के अंतराल में सिंचाई होना वांछित होता है| विशेष रूप से नदी-नालों के किनारे की जमीन जहां हमेशा दलदल रहता हो या जहां पानी भरा रहता हो और जहां कोई अन्य खेती न ली जा सकती हो, वहां इसकी खेती बहुत अधिक लाभदायक होती है|

बच की खेती में निराई-गुड़ाई

बचकी अच्छी पैदावार प्राप्त करने के लिए खरपतवार पर रोकथाम एवं मिट्टी में वायु संचार के लिए समय-समय पर निराई व गुड़ाई आवश्यकतानुसार करते रहना चाहिए|

बच से राइजोम का निकालना

लगभग 8 से 9 माह की फसल अवस्था पर मार्च से अप्रैल माह में जब बच के पौधों की पत्तियां पीली पड़ने लगती है और सूखने लगती है, तब इसके पौधों को जड़ समेत जमीन से खोदकर निकाल लेना चाहिए| यदि खेती बड़े स्तर पर की जा रही हो तो हल चलाकर भी राइजोम निकाले जा सकते हैं| पत्तियों को राइजोम से काटकर अलग कर लिया जाना चाहिए|

बच को सुखाना और बेचना

निकाले गए राइजोम को पानी में धोए बिना साफ करके छोटे-छोटे टुकड़ों में काटकर छायादार जगह में फैलाकर सुखाया जाता है, जिससे इसमें उपस्थित तेल की मात्रा का ह्रास न हो व तदनुसार बोरों में भरकर विक्रय हेतु भिजवाया जा सकता है|

बच की खेती से पैदावार

इसकी खेती उचित तरीके से की जाये तो लगभग 40 से 41 क्विंटल राईजोम प्रति हेक्टेयर प्राप्त होती है|

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प्रिय पाठ्कों से अनुरोध है, की यदि वे उपरोक्त जानकारी से संतुष्ट है, तो अपनी प्रतिक्रिया के लिए “दैनिक जाग्रति” को Comment कर सकते है, आपकी प्रतिक्रिया का हमें इंतजार रहेगा, ये आपका अपना मंच है, लेख पसंद आने पर Share और Like जरुर करें|

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