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Home » प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें; अच्छे उत्पादन हेतु

प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें; अच्छे उत्पादन हेतु

March 17, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन अच्छी पैदावार के लिए जरूरी है| क्योंकि प्याज एक बहुत ही महत्वपूर्ण सब्जी फसल है| जिसकी पूरे देश में व्यापक रूप से खेती की जाती है| प्याज 1.20 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में उगाया जाता है, जिसका वार्षिक उत्पादन 20.6 मिलियन टन हैं, जो उत्पादकता के मामले में कई देशों से बहुत कम है| कीटों व रोगों तथा सूत्रकृमीयों का बढता प्रभाव संभावित उत्पादन के लिए प्रमुख अवरोधक है| जिसके कारण उत्पादन में काफी नुकसान होता है|

नाशीजीवों के कारण हुए नुकसान को कम करने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग पर अत्यधिक निर्भर हो रहे हैं| एक सत्र में प्याज में 8 से 10 छिड़काव करना आम बात है| इस परिदृश्य में, प्याज में कीटनाशक अवशेषों की मात्रा उच्च स्तर पर पाई जा रही है| जो केवल उपभोक्ताओं के लिए ही नहीं खतरनाक साबित हो रही है| बल्कि निर्यात की गुणवत्ता को भी प्रभावित कर रही है|

इन सभी समस्याओं को कम करने और किसानों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्याज में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन रणनीति विकसित की गयी है| इस लेख में प्याज में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख है| प्याज की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- प्याज की जैविक खेती कैसे करें

यह भी पढ़ें- समेकित पोषक तत्व (आईएनएम) प्रबंधन कैसे करें

प्याज की फसल में नाशीजीव कीट

थ्रिप्स- थ्रिप्स छोटे, पतले, तेजी से चलने वाले पीले से भूरे रंग के झालरदार पंख वाले होते हैं| थ्रिप्स प्याज का सबसे गंभीर कीट है, पूरे देश में जहाँ भी प्याज की फसल उगाई जाती है| वहाँ पर यह कीट आम है, कभी कभी बल्ब फसल में थ्रिप्स आक्रमण से 50 से 60 प्रतिशत तक नुकसान होता है| यह जल्दी उभरती हुई पत्तियों का रस चूसते हैं| लघु, सफेद चाँदी जैसे धब्बे सभी पत्तियों पर देखे जा सकते हैं| प्रभावित पौधों में, मुड़ी पत्तियों के साथ वृद्धि रूक जाती है|

हेड छिद्रक- यह छिद्रक उत्तरी भारत में प्याज की बीज फसल का एक गंभीर कीट है| इसके लार्वे फूलों की डंडी काट कर डंठल को खाते हैं| कई फूल डंठल एक लार्वा से क्षतिग्रस्त हो जाते हैं| बल्ब की फसल भी लार्वे द्वारा काटने और हवाई भागों के खाने से क्षतिग्रस्त होती है

प्याज मक्खी- पूर्ण विकसित मगेट छोटे, भूरे-लाल, सफेद रंग के लंबाई में लगभग 8 मिलीमीटर के होते हैं| मगेट कदों में छिद्र करके पौधे को मृदु तथा पीला बना देते हैं| यह खेत में कुम्हलाने व भंडारण में सडन पैदा करते हैं| इसके नुकसान से बेसिलस कारोलोवोरुस का आक्रमण हो जाता है, जो प्याज में नरम विगलन पैदा करता है|

प्याज मक्खी छोटी घरेलू मक्खी की तरह दिखती है एवं लम्बे सफेद अंडे पौधे या मिट्टी में पौधे के आधार पे देती है| मगेट घसीटता हुआ पत्ती म्यान में प्रवेश करके बल्ब में पहुँचता है| वे वहाँ खाते हुए 2 से 3 सप्ताह में पूर्ण विकसित हो जाते हैं|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

प्याज की फसल में नाशीजीव रोग

आई गलन- रोग के पूर्व-उद्भव की दशा में पौध मिट्टी की सतह तक पहुँचने से पहले ही मर जाती है| जोकि मुख्यतय बीज की खराब गुणवत्ता से होता है| पोस्ट उद्भव गलन द्वारा संक्रमित पौध मिट्टी से उभरने के बाद कभी भी गिर सकती है| यह आमतौर पर जमीन के स्तर पर या नीचे होती है| यह देखा गया है कि ज्यादातर हानि पूर्व उद्भव आर्द्र गलन के कारण होती है| यह खरीफ मौसम में जब तापमान और आर्द्रता उच्च रहती है, तब आम है|

स्टैमफीलीयम झुलसा- रोग तीव्रता रबी फसल में 5 से 50 प्रतिशत तक होती है| संक्रमण मार्च से अप्रैल के दौरान होता है, लघु, पीली से नारंगी रंग के धब्बे पत्तियों या डंठल के बीच एक तरफ विकसित होते हैं| छोटे धब्बे अक्सर मिल कर बड़े धब्बों में बदल कर पत्तों पर झुलसा पैदा करते हैं| रोग पुष्पक्रम डंठल पर प्रदर्शित होने से बीज फसल को गंभीर नुकसान पहुँचता है|

बैंगनी ब्लाच- यह रोग खरीफ के मौसम में आम है| गर्म तथा आर्द्र जलवायु रोग को बढ़ाती है| रोग पत्तियों पर छोटे, सफेद, धसे घावों के रूप में प्रकट होते है, ये धब्बे बाद में बड़े होकर और अंततः पूरी पत्ती को घेर लेते हैं, बाद में अंडाकार आकार के काले क्षेत्र पतियों की सतह पर दिखाई देते हैं, विषेशता बैंगनी रंग को बनाए रखते हैं| पत्तियां तथा तने धीरे-धीरे गिर जाते हैं|

पीला बौना रोग- यह एक वायरल रोग है, जो यंत्रवत् प्रसार के साथ कीट वाहक द्वारा फैलता है| इस रोग से संक्रमित पौधे स्तंभित, बोने तथा फूल डंठल मुड़ जाते हैं| प्रभावित पत्तियां सामान्य हरे से पीले रंग के विभिन्न रंगों में बदल जाती हैं एवं पत्तियां कुंचित होकर मुड़ जाती है|

पीला धब्बा वायरस- यह प्याज फसल में एक उभरती हुई बीमारी है| प्याज पर लक्षण, पत्तियों तथा पुष्पदंड पर हरिमाहीन धब्बे के रुप में प्रकट होते हैं| जो बाद में फूल डंठल झुकने पर पीले और परिगलित धब्बो में बदल जाते हैं| यह विषाणु थ्रिप्स के माध्यम से फैलता है| प्रभावित पौधों के पत्तों पर कई आँख के समान धब्बे दिखाई देते हैं|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक

प्याज की फसल के सूत्रकृमि

धान जड़ गाँठ सूत्र कृमि- आम तौर पर नए पौधे संक्रमित होते है| जिसके परिणाम स्वरूप पूरी फसल का विनाश हो सकता हैं| सूत्रकृमि द्वारा संक्रमण से जड़ों में असामान्य सुजन होती है| जिसे जड़गाँठ या घाव के रूप में जाना जाता है| जिससे पीलापन, सूखना और पौधों की वृद्धि रूकना होती हैं|

प्याज की फसल में पोषक तत्वों की कमी

सल्फर की कमी- प्याज सल्फर प्रिय पौधा है और इसे उच्च सल्फर की आवश्यकता होती है| सल्फर की कमी के कारण कम वजन तथा हल्के लाल रंग का बनता है| सल्फर की कमी से प्याज का तीखापन प्रभावित होता है|

प्याज की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन

नर्सरी अवस्था-

1. बुवाई से 15 से 20 दिन पहले 0.45 मिलीमीटर मोटी पारदर्शी पॉलिथीन शीट के साथ क्यारी की मिट्टी का सौरीकरण करे|

2. पानी की अच्छी निकासी के लिये जमीनी सतह से 10 सेंटीमीटर ऊपर नर्सरी की क्यारी बनायें|

3. पौध की क्यारी में 50 ग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से ट्राइकोडरमा से संवर्धित गोबर की खाद मिलाये|

4. असंभावित वर्षा के कारण होने वाले पीलेपन को कम करने के लिए यूरिया का 0.2 प्रतिशत दर से आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- परजीवी एवं परभक्षी (जैविक एजेंट) द्वारा खेती में कीट प्रबंधन

मुख्य फसल-

1. थ्रिप्स को बाधित करने के लिए फसल के रूप में बाहरी पंक्ति में मक्का की बुवाई करें|

2. रोपाई से पहले स्यूडोमोनास इनफ्लुओरिसेन्स 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के घोल में पौध की जड़ों को डुबायें|

3. फसल मौसम के दौरान पर्याप्त सिंचाई करें, क्योंकि निरंतर नमी के कारण मिटटी में विधमान थ्रिप्स सड़ जाते हैं|

4. थ्रिप्स के प्रबंधन के लिए स्प्रिंकलर के द्वारा खेतों की सिंचाई करें|

5. थ्रिप्स के प्रबंधन के लिए नीले रंग के ट्रेप 20 प्रति एकड़ की दर से स्थापित करें|

6. थ्रिप्स के नियंत्रण के लिए डायमिथिओएट 30 ई सी का 660 मिलीलीटर या फिप्रोनिल 80 डब्ल्यू जी का 75 ग्राम या ओक्सीडेमेटोन मिथाईल 25 ई सी का 1.2 लीटर प्रति हे की दर से 500 लीटर पानी के साथ छिडकाव करें| कंद बनने की प्रारंभिक अवस्था यानि रोपाई के 7 सप्ताह बाद या 50 दिन के पश्चात थ्रिप्स को नियंत्रण करना अत्यंत आवश्यक है|

7. नीम की खली को सूत्रकृमि प्रबंधन के लिये 250 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर के हिसाब से डाले|

8. मृदुल आसिता व ब्लाईट से बचाव के लिए जिनेब 75 डब्ल्यू पी का 1.5 से 2.0 किग्राग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 750 से 1000 लीटर पानी के साथ आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|

9. बैंगनी ब्लाच के नियंत्रण के लिए डाईफेन्कोनजोल का 0.1 प्रतिशत, टेब्युक्युनाजोल 25.9 प्रतिशत ई सी का 625 से 750 मिलीलीटर प्रति हेक्टेयर की दर से 500 लीटर पानी के घोल में आवश्यकतानुसार छिड़काव करें|

10. सल्फर की कमी दूर करने के लिए आवश्यकता आधारित सल्फर 80 डब्ल्यू पी का 2 प्रतिशत की दर से प्रयोग करें|

प्याज की फसल में मित्र कीटों का संरक्षण

प्याज फसल प्रणाली में सामान्य रूप से दिखाई देने वाले मित्र कीटों की रक्षा की जानी चाहिए तथा इसके लिए रासायनिक नाशीजीवयों का अवांछित एवं अतिरिक्त छिड़काव नहीं किया जाना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सब्जियों की जैविक खेती, जानिए प्रमुख घटक, कीटनाशक एवं लाभ

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