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Home » ग्वार की उन्नत किस्में | ग्वार की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

ग्वार की उन्नत किस्में | ग्वार की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

March 4, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

ग्वार की उन्नत किस्में

ग्वार की उन्नत किस्मों की क्षमता के अनुसार उत्पादन ले पाना तभी संभव है| जब उसके लिए उचित प्रबंधन तथा अनुकूल जल व मिटटी और अपने क्षेत्र की प्रचलित किस्म उपलब्ध हो| ग्वार बुआई के समय बीज ग्वार एवं मिटटी में उत्तम सम्पर्क होना चाहिए| ताकि बीज का अंकुरण अच्छा हो जिससे किसान बन्धुओं को ग्वार की उन्नत किस्मों से अच्छी पैदावार प्राप्त हो सके| इस लेख में ग्वार की उन्नत किस्मों की विशेषताओं और पैदावार की जानकारी का उल्लेख है| ग्वार की उन्नत खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- ग्वार की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

ग्वार की किस्में और विशेषताएं

राजस्थान के लिए-

आर जी सी 936- यह किस्म एक साथ पकने वाली प्रकाश संवेदशील है| दाने मध्यम आकर के हल्के गुलाबी रंग के होते हैं| 80 से 110 दिन की अवधि वाली यह किस्म अंगमारी रोधक है| इसमें झुलसा रोग को सहने की क्षमता भी होती है| इसके पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा, पत्ते खुरदरे होते हैं| सफेद फूल इस किस्म की शुद्धता बनाये रखने में सहायक है| सूखा प्रभावित क्षेत्रों में जायद तथा खरीफ में बोने के लिये उपयुक्त, एक साथ पकने वाली यह किस्म 8 से 12 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर उपज देती है|

आर जी एम- 112 (सूर्या ग्वार)- यह किस्म शुष्क और अर्द्ध शुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है, जिसको जायद तथा खरीफ दोनों परिस्थितयों में बोया जा सकता है| यह किस्म 85 से 100 दिन में पककर तैयार हो जाती है| इसके पौधे शाखाओं वाले झाड़ीनुमा पत्ते खुरदरे और एक साथ पकने वाली यह किस्म 10 से 12 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर उपज देती है| इस किस्म के फूलों का रंग नीला, फली मध्यम लम्बी भूरे रंग की तथा दानों का रंग सलेटी होता है और इसमें बैक्टिरियल ब्लाइट सहन करने की क्षमता होती है|

यह भी पढ़ें- बीटी कपास (कॉटन) की खेती कैसे करें

आर जी सी 1002- इस किस्म का अनुमोदन शुष्क और कम वर्षा वाले सम्पूर्ण ग्वार पैदा करने वाले क्षेत्रों के लिए किया है| इसके पौधे 60 से 90 सेंटीमीटर ऊंचे व अत्यधिक शाखाओं युक्त होते हैं| इसकी पत्तियां तीन पालियोयुक्त खुरदरी होती है और पत्ती के किनारों पर स्पष्ट कटाव होते है| फली लम्बाई में 4.5 से 5.0 सेंटीमीटर (मध्यम) होती है| यह शीघ्र पकने वाली किस्म 80 से 90 दिन, पैदावार लगभग 10 से 13 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर तक देती है| 100 दानों का वजन 3.10 से 3.57 ग्राम और रंग सलेटी होता है| इस किस्म के दानों में एण्डोस्पर्म की मात्रा 35 से 37 प्रतिशत व प्रोटीन की मात्रा 28 से 32 प्रतिशत होती है|

आर जी सी 1003- इस किस्म के पौधे शाखाओं युक्त होते हैं| पत्तियां खुरदरी व किनारा बिना दांतेदार होती हैं| इसकी फसल 85 से 92 दिनों में पक जाती हैं| पौधे की ऊंचाई 51 से 83 सेन्टीमीटर होती है| पैदावार 8 से 14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर होती है| बीज में गोंद की मात्रा 29 से 32 प्रतिशत होती है| यह किस्म देश के शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है|

आर जी सी 1017- इस किस्म के पौधे अधिक शाखाओं वाले, ऊंचे कद के 56 से 57 सेंटीमीटर पत्तियां खुरदरी और दातेदार होती है| इसकी फसल 90 से 100 दिनों में पक जाती है| इसके दाने औसत मोटाई वाले, जिसके 100 दानों का वजन 2.80 से 3.20 ग्राम के मध्य होता है| दानों में एण्डोस्पर्म की मात्रा 32 से 37 प्रतिशत और प्रोटीन की मात्रा 29 से 33 प्रतिशत तक पायी जाती है| इसकी पैदावार 10 से 14 क्विण्टल प्रति हैक्टेयर है| यह किस्म देश के सामान्य रूप से अर्द्ध शुष्क और कम वर्षा वाले क्षेत्रों के लिये उपयुक्त है|

यह भी पढ़ें- नरमा (अमेरिकन) कपास की खेती कैसे करें

आर जी सी- 1031 (ग्वार क्रांति)- इस किस्म के पौधे 75 से 108 सेंटीमीटर उँचाई तथा अत्यधिक शाखाओं युक्त होते हैं| पौधों पर पत्तियां गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती है| फूल हल्के गुलाबी रंग के एवं फलियों की लम्बाई मध्यम और दानों का उभार स्पष्ट दिखाई देता है| दानों का रंग स्लेटी और आकर मध्यम मोटाई का होता है| इस किस्म की पकाव अवधि 110 से 114 दिन तथा पैदावार क्षमता 10 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

आर जी सी- 1038 (करण)- इस किस्म की पकाव अवधि 100 से 105 दिन है| पौधे की पत्तियां खुरदरी और कटाव वाली होती है| इस किस्म की पैदावार क्षमता 10 से 21 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक होती है| दानों का रंग स्लेटी तथा मध्यम मोटाई का होता है| फलिया मध्यम लम्बी तथा इनमें दानों का उभार स्पष्ट दिखाई देता है| इस किस्म के दानों में एन्डोर्पम की मात्रा 31.6 से 36.5 प्रतिशत, प्रोटीन 28.6 से 30.9 प्रतिशत, गोंद 28.9 से 32.6 प्रतिशत और कार्बोहाड्रेड 35.2 से 37.4 प्रतिशत पाया जाता है| यह किस्म अनेक रोगों की प्रतिरोधकता है|

एच जी 2-20- ग्वार की यह किस्म वर्षा आधारित परिस्थतियों में भी अच्छी उपज देती है| इसकी पत्तियां खुरदरी, फलियाँ लंबी व दाने मोटे होते हैं| इस किस्म की पकाव अवधि 90 से 100 दिन और पैदावार क्षमता 8 से 9 क्विंटल प्रति एकड़ है| यह किस्म जीवाणु पत्ता अंगमारी, जड़ गलन तथा अल्टरनेरिया अंगमारी रोगों के प्रति सामान्यतः प्रतिरोधी भी पाई गयी है|

यह भी पढ़ें- संकर धान की खेती कैसे करें

आर जी सी 1033- ग्वार की यह उन्नत अनेक शाखाओं वाली इस किस्म के पौधों की ऊँचाई 40 से 113 सेंटीमीटर होती है तथा पौधों पर पत्तियाँ गहरी हरी, खुरदरी और कम कटाव वाली होती हैं| फूल हल्के गुलाबी रंग के और दानों का रंग स्लेटी तथा आकार मध्यम मोटाई का होता है| इस किस्म की पकाव अवधि 95 से 106 दिन और पैदावार क्षमता 15 से 25 किंवटल प्रति हेक्टेयर है|

आर जी सी- 1066- ग्वार की इस किस्म के पत्ते कटाव दार होते है, यह किस्म जल्दी पकने वाली 90 से 100 दिन, किस्म शाखा रहित और गुलाबी रंग के फूलो वाली होती है| इस किस्म की औसत पैदावार 12 क्विंटल प्रति हैक्टयर है|

आर जी सी- 1055 (उदय)- ग्वार की यह किस्म खरीफ व जायद दोनों के लिए उपयुक्त है| पत्तों के किनारे खुरदरे और पौधे शाखित होते हैं| इसके पकने की अवधि 95 से 105 दिन है, औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

हरियाणा के लिए-

एच जी 258- ग्वार की यह एक देरी से पकने वाली शाखित किस्म है| इसकी पकने की अवधि 115 से 120 दिन है, औसतन पैदावार 18 से 20 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

एच जी 365- ग्वार की यह एक जल्दी पकने वाली किस्म है| इसकी पकने की अवधि 90 से 95 दिन है, औसतन पैदावार 18 से 20 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है, इसके पौधे शाखित होते हैं|

एच जी 563- यह भी एक जल्दी पकने वाली ग्वार की उन्नत किस्म है| इसकी पकने की अवधि 90 से 95 दिन है, औसतन पैदावार 17 से 19 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है, इसके पौधे शाखित होते हैं|

एच जी 884- यह एक मध्यम देरी से पकने वाली शाखित ग्वार की उन्नत किस्म है| इसकी पकने की अवधि 95 से 100 दिन है, औसतन पैदावार 14 से 15 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

यह भी पढ़ें- बाजरे की खेती कैसे करे पूरी जानकारी

पंजाब के लिए-

ए जी 111- यह जल्दी पकने वाली ग्वार की उन्नत किस्म है| इसकी पकने की अवधि 90 से 95 दिन है, औसतन पैदावार 12 से 15 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है, इसके पौधे शाखित होते हैं|

ग्वार 80- यह एक देरी से पकने वाली शाखित किस्म है, इसकी पकने की अवधि 115 से 120 दिन है, औसतन पैदावार 18 से 20 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

दिल्ली के लिए-

नवीन- यह एक जल्दी पकने वाली ग्वार की उन्नत किस्म है, इसके पौधे शाखाओं वाले होते हैं| इसकी पकने की अवधि 90 से 95 दिन है, औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

सुविधा- यह भी एक जल्दी पकने वाली किस्म है, इसके पौधे शाखाओं वाले होते हैं| इसकी पकने की अवधि 90 से 95 दिन है, औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

सोना- यह एक देरी से पकने वाली किस्म है, इसके पकने की अवधि 115 से 120 दिन है, औसतन पैदावार 16 से 18 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है| यह शाखाओं वाली किस्म है|

पी एल जी 85- यह एक देरी से पकने वाली शाखित ग्वार की उन्नत किस्म है, इसके पकने की अवधि 100 से 110 दिन है, औसतन पैदावार 15 से 18 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

यह भी पढ़ें- मूंग की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

उत्तर प्रदेश के लिए-

बुन्देल 1- यह एक देरी से पकने वाली किस्म है| इसके पकने की अवधि 115 से 120 दिन है, औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

बुन्देल 2- यह भी एक देरी से पकने वाली किस्म है| इसके पकने की अवधि 115 से 120 दिन है, औसतन पैदावार 14 से 16 क्विंटल, सिंचित और वर्षा आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त है|

गुजरात के लिए-

जी जी 1- यह शाखाओं वाली किस्म है, इसके पकने की अवधि 105 से 110 दिन है, औसतन पैदावार 8 से 11 क्विंटल, वर्षा पर आधारित क्षत्रों के लिए उपयुक्त और फैलने वाली जीवाणु झुलसा बीमारी प्रतिरोधक है|

जी जी 2- वर्षा पर आधारित क्षेत्रों के लिए यह ग्वार की उन्नत किस्म, इसके पकने की अवधि 100 से 110 दिन है, औसतन पैदावार 11 से 13 क्विंटल, फैलने वाली जीवाणु झुलसा बीमारी प्रतिरोधक है|

यह भी पढ़ें- अरहर की खेती- किस्में, रोकथाम और पैदावार

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