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अलसी की उन्नत किस्में | अलसी की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

June 6, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अलसी का उपयोग मुख्यतः तेल और रेशे के लिए किया जाता है| यदि किसान बन्धु अलसी की खेती उन्नत किस्मों के साथ करें, तो वो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है| लेकिन जानकारी के आभाव में किस्मों का चयन कर पाना मुस्किल कार्य है| कृषकों की जानकारी के लिए इस लेख में आलसी की उन्नत किस्मों उनकी विशेषताओं और पैदावार का उल्लेख किया गया है| अलसी की उन्नत तकनीक से खेती कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- अलसी की खेती की जानकारी

अलसी की अनुमोदित उन्नत किस्में

टी 397- अलसी की 60 से 75 सेन्टीमीटर उंचाई वाली इस किस्म में अधिक शाखाएँ होती है और पत्तियों का रंग हरा एवं फूल नीला होते है| इसके केपस्यूल मध्यम मोटाई वाले गोल होते है| इसके 1000 दानों का वजन 7.5 से 9 ग्राम तथा दानों में तेल की मात्रा 44 प्रतिशत तक होती है| सिंचित एवं असिंचित दोनो परिस्थितियों के लिए उपयुक्त इस किस्म की पैदावार 10 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है|

जवाहर 23- अलसी की इस किस्म के पौधे 45 से 60 सेन्टीमीटर ऊंचे सीधे, शाखाएँ मध्य भाग से ऊपर पीलापन लिये हुए होती है| फूलो का रंग सफेद होता है, जो एक साथ आते है| इसके 1000 दानों का वजन 7 से 8 ग्राम व दानों में तेल की मात्रा 43 प्रतिशत होती है| रोली, उखटा एवं गिरने के प्रति अवरोधी इस किस्म पर छाछया का प्रकोप कम होता है और इसकी उपज क्षमता 10 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

एल सी के 8528 (शिखा)- अलसी की दोहरे उपयोग वाली इस किस्म से 14 से 15 क्विंटल बीज के अलावा 10 से 11 क्विंटल रेशा भी मिलता है|

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आर एल सी- 6 (किरण)- उखटा ग्रस्त क्षेत्रों के लिए उपयुक्त 115 से 120 दिन में पकने वाली यह अलसी की किस्म असिंचित क्षेत्रों में 8 से 10 क्विंटल एवं सिंचित क्षेत्रों में 13 से 15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है| इसमें तेल की मात्रा 42 से 43 प्रतिशत तथा दाना बारीक होता है| यह उखटा व छाछ्या रोग रोधी होने के साथ साथ तुलासिता के लिए साधारण अवरोधी है|

एल एम एच- 62 (पदमिनी)- अलसी की 9 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देने वाली इस किस्म में 42 से 45 प्रतिशत तेल की मात्रा होती है| यह छाछ्या व उकठा प्रतिरोधी तथा अल्टरनेरिया, ब्लास्ट व फली छेदक कीट से मध्यम प्रतिरोधी है| पकाव अवधि 120 से 125 दिन होती है|

आर एल- 933 (मीरा)- नीले फूलों वाली यह अलसी की किस्म छाछ्या रोग, उखटा रोग एवं रोली रोग के लिए सहनशील पाई गई है| झुलसा रोग एवं कलिका मक्खी के लिए भी मध्यम प्रतिरोधी है| इसकी औसत उपज 16 क्विंटल प्रति हैक्टर है और तेल की मात्रा 42 प्रतिशत है| चमकीले भूरे दाने वाली यह किस्म 130 दिन में पककर तैयार हो जाती है|

आर एल 914- यह किस्म राजस्थान राज्य के सिंचित क्षेत्रों के लिए समय एवं देरी से बुवाई के लिए अनुमोदित की गई है| नीले फूलों वाली इस किस्म के दाने भूरे रंग के होते हैं| यह किस्म रोली एवं उखटा रोग के लिए सहनशील पाई गई है और छाछया एवं झुलसा रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी है| यह किस्म कलिका मक्खी हेतु मध्यम प्रतिरोधी है| इसकी औसत उपज 17 क्विंटल प्रति हैक्टर तथा तेल की मात्रा 40 से 42 प्रतिशत होती है| यह किस्म 130 से 135 दिन में पककर तैयार हो जाती है|

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प्रताप अलसी 1- सफेद फूलों वाली यह अलसी की किस्म राजस्थान राज्य के सिंचित क्षेत्र के लिए अनुमोदित की गई है| रोली रोग के लिए प्रतिरोधी यह किस्म झुलसा एवं छाछया रोग के लिए मध्यम प्रतिरोधी पाई गई है| यह किस्म कलिका मक्खी के लिए भी मध्यम प्रतिरोधी है| इसकी औसत उपज 20 क्विंटल प्रति हैक्टर एवं तेल की मात्रा 40 से 41 प्रतिशत है| 130 से 135 दिन में पककर तैयार होने वाली इस किस्म के दाने चमकीले भूरे रंग के होते हैं|

प्रताप अलसी 2- यह किस्म सिंचित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त पाई गई हैं| इस किस्म के फूल नीले, दाना मोटा चमकीला व भूरा एवं तेल की मात्रा 42 प्रतिशत पाई जाती है| यह अलसी की किस्म 128 से 135 दिन में पक कर 20 से 22 क्विंटल प्रति हैक्टर औसत उपज देती है| यह किस्म कलिका मक्खी एवं झुलसा, उखटा, छाछ्या एवं रोली रोग के प्रति मध्यम अवरोधी है|

दीपिका- इस किस्म की पकने की अवधि 112 से 115 दिन, औसत उपज 12 से 13 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तथा बीज में तेल 42 प्रतिशत होता है| यह किस्म म्लानि (विल्ट) और रतुआ (रस्ट) रोगों के प्रति मध्यम प्रतिरोधक है|

इंदिरा अलसी 32- यह 100 से 105 दिन में पकने वाली किस्म है, जिससे 10 से 12 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज प्राप्त होती है| इसके बीज में तेल की मात्रा 39 प्रतिशत होती है| यह चूर्णिल आसिता रोग के प्रति मध्यम रोधी परन्तु म्लानि, आल्टरनेरिया झुलसा रोगों के प्रति सहिष्णु किस्म है| असिंचित दशा और उतेरा खेती के लिए उपयुक्त है|

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आर एल सी 92- यह किस्म 100 से 110 दिन में पक कर तैयार हो जाती है, तथा औसतन 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है बीज में तेल की मात्रा 42 प्रतिशत होती है| यह चूर्णिल आसिता, म्लानि रोग प्रतिरोधी व वड फ्लाई कीट सहनशील है| देर से बोने व उतेरा खेती हेतु उपयुक्त किस्म है|

कार्तिक (आरएलसी 76)- यह किस्म 98 से 104 दिन में तैयार हो जाती है, तथा औसतन 12 से 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज देती है। बीज में तेल की मात्रा 43 प्रतिशत होती है| यह किस्म प्रमुख रोग व वड फ्लाई कीट के प्रति मध्यम रोधी है, तथा सिंचित व अर्द्ध सिंचित दशा में खेती हेतु उपयुक्त है|

जवाहर 17 (आर 17)- यह किस्म 115 से 123 दिन में पककर तैयार हो जाती है| इसमें तेल की मात्रा 46 से 47 प्रतिशत होती है| प्रति हेक्टेयर पैदावार 11 से 12 क्विंटल होती है| इसमें फूल कम समय में एक साथ निकलते हैं, और पौधे भी एक साथ पककर तैयार हो जाते हैं| अलसी की मक्खी से इसको कम नुकसान तथा गेरूआ रोग का भी असर नहीं होता है|

जवाहर 552- यह किस्म 115 से 120 दिन में पककर तैयार होती है, जिसकी उपज क्षमता 9 से 10 क्विंटल प्रति हैक्टर है| इसके बीज में 44 प्रतिशत तेल पाया जाता है असिंचित क्षेत्रों के लिए उपयोगी है|

जीवन- यह किस्म 175 दिन में तैयार होकर 11 क्विंटल बीज और 11.00 क्विंटल रेशा प्रति हेक्टेयर तक देती है| यह द्वि-उद्देश्य (दाना व रेशा) वाली उन्नत किस्म है|

गौरव- यह किस्म 135 दिन मे पक कर तैयार होती है| औसतन 11 क्विंटल बीज और 9 क्विंटल से अधिक रेशा प्रति हेक्टेयर देती है| यह द्वि-उद्देश्य (दाना व रेशा) वाली उन्नत किस्म है|

जे एल एस- 27 (सुयोग)- सिंचित क्षत्रों की यह अलसी की किस्म 115 से 120 दिन में पकती है| गेरूआ, चूर्णिल आसिता तथा फल मक्खी के लिये मध्यम रोधी, औसत पैदावार 15 से 20 क्विंटल प्रति हेक्टेयर देती है|

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