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मटर की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

April 29, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

मटर की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

मटर की जैविक खेती उत्पादन की एक पद्धति है, जिसमें फसलों के उत्पादन हेतु प्राकृतिक संसाधनों यानी की गोबर की सड़ी खाद, जैव उर्वरक का प्रयोग मटर आदि फसलों के पादप पोषण एवं रसायन रहित कीट, रोग या खरपतवार नियंत्रण के लिए किया जाता है, अर्थात् जैविक खेती में रासायनिक खादों, कीट रोग एवं वृद्धिकारक तत्वों का प्रयोग निषिद्ध है| मटर की जैविक खेती में कृषक कम लागत में अधिक गुणवत्तायुक्त सब्जी, मटर का उत्पादन कर सकते हैं| लेकिन इसके लिए उत्पादकों को इसकी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, की मटर की जैविक खेती कैसे करें|

चूँकि की मटर की रसायनिक खेती में न चाहते हुए भी उत्पादकों को 8 से 10 छिड़काव कीटनाशकों के करने पड़ते है| जिससे मटर के फल विषेले हो जाते है, जो मानव स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है| रसायनों से भूमि बंजर हो रही है और पर्यावरण दूषित हो रहा है| इसलिए मटर की जैविक खेती वर्तमान की आवश्यकता है| इस लेख में मटर की जैविक खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- लहसुन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मटर की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

मटर की जैविक फसल के लिए नम और ठंडी जलवायु की आवश्यकता होती है| अत: हमारे देश में अधिकांश स्थानों पर मटर की फसल रबी की ऋतु में गई जाती है| उन सभी स्थानों पर जहां वार्षिक वर्षा 60 से 80 सेंटीमीटर तक होती है, वहां मटर की फसल सफलता पूर्वक उगाई जा सकती है| मटर के वृद्धि काल में अधिक वर्षा का होना अत्यंत हानिकारक होता है| इसकी खेती के लिए 20 डिग्री सेल्सियस तापमान सबसे उपयुक्त है|

मटर की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन

फलीदार फसल होने के कारण उन सभी कृषि योग्य भूमियों में जिसमे उपयुक्त मात्रा में नमी उपलब्ध हो सके मटर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है| जैविक पदार्थों की बहुलता वाली मटियार दोमट तथा दोमट भूमि मटर की खेती के लिए अति उत्तम है| बलुअर दोमट भूमियों में भी सिचाई की सुबिधा उपलब्ध होने पर मटर की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है| भूमि का पी एच मान 6.5 से 7.5 होना उपयुक्त है|

मटर की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

जैविक खेती के लिए खेत की 2 से 3 बार गहरी जुताई करके मिट्टी को भुरभुरी कर लें| अन्तिम जुताई के समय गोबर की खाद 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की दर से मिला दें| गोबर के खाद के बदले केचुआँ खाद भी 100 से 150 क्विंटल प्रति हेक्टेयर दे सकते हैं| बीजों के अच्छे जमाव के लिए खेत में उचित नमी का होना आवश्यक है| ट्राईकोडर्मा पाउडर से मिटटी को बुआई से पूर्व मिलाकर उपचारित कर लें| बुआई से पूर्व उपचारित खाद को खेत में फैला दें| ट्राईकोडर्मा के प्रयोग से फफूंद या कवक जनित रोगों की रोकथाम प्रभावी ढंग से हो जाती है|

यह भी पढ़ें- कपास की जैविक खेती- लाभ, उपयोग और उत्पादन

मटर की जैविक खेती के लिए उन्नत किस्में

मटर की जैविक खेती के लिए उत्पादकों को अपने क्षेत्र की उन्नत और अधिक उत्पादन देने वाली किस्म का चयन करना चाहिए| ताकि उनको मटर की जैविक फसल से अधिकतम उपज प्राप्त हो सके और साथ में यदि संभव हो सके तो जैविक प्रमाणित बीज का बुवाई के लिए प्रयोग करें| मटर की कुछ प्रचलित किस्में इस प्रकार है, जैसे-

आर्केल, बोनविले, अर्ली बैजर, अर्ली दिसंबर,  असौजी, जवाहर मटर, टा 19 व 59, एन पी 29, किन्नौरी, लिंकन, वीएल- 3, पालम प्रिया, सोलन निरोग, जीसी- 477, पंजाब- 89, पंत मटर- 155 व 157 और विवेक मटर- 8 व 9 आदि प्रमुख है| मटर की किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर की उन्नत किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

मटर की जैविक खेती के लिए बुवाई का समय

मैदानी क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय 10 अक्तूबर से 10 नवम्बर और मध्यम किस्मों के लिए 20 अक्तूबर से 20 नवम्बर तक उपयुक्त रहता है|

निचले पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय सितम्बर से अक्टूबर और मध्यम किस्मों के लिए नवम्बर तक उपयुक्त रहता है|

मध्यम पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय सितम्बर (पहला पखवाडा) और मध्यम किस्मों के लिए नवम्बर तक उपयुक्त रहता है|

उच्चे पर्वतीय क्षेत्र- अगेती किस्मों के लिए बुवाई का समय मार्च से जून और मध्यम किस्मों के लिए अक्टूबर से नवम्बर तक उपयुक्त रहता है|

यह भी पढ़ें- मिर्च की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मटर की जैविक खेती के लिए बीज का उपचार

इसकी जैविक फसल हेतु स्वस्थ व रोग मुक्त जैविक प्रमाणित बीज का चयन करना चाहिए तथा खेत में बीजने से पहले बीज का उपचार ट्राईकोडर्मा, बीजामृत से करना चाहिए|

मटर की जैविक खेती के लिए बीज दर व अंतराल

मटर की फसल के लिए शीघ्र पकने वाली किस्मों के लिए 100 से 125 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर और मध्य तथा देर से पकने वाली किस्मों के लिए 70 से 90 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर बीज उपयुक्त है| उत्तम पैदावार के लिए अगेती किस्मों की कतार से कतार की दुरी 30 सेंटीमीटर और कतार में पौधे से पौधे की दुरी 5 से 7 सेंटीमीटर के मध्य और देर से पकने वाली किस्मों के लिए कतार से कतार की दुरी 60 सेंटीमीटर और कतार में पौधे से पौधे की दुरी 5 से 7 सेंटीमीटर सर्वोतम रहती है|

मटर की जैविक खेती के लिए खाद प्रबंधन

मटर की अच्छी उपज पाने के लिए 15 टन वर्मी कम्पोस्ट और 2 टन बीडी कम्पोस्ट या 25 टन गोबर की खाद और 2 टन बीडी कम्पोस्ट इस्तेमाल करनी चाहिए| यह खादें अच्छी प्रकार हल चलाते समय भूमि में मिलानी चाहिए| वर्मी कम्पोस्ट को अंतिम बुआई के समय प्रयोग में लाना चाहिए| जिससे मटर की जैविक फसल में पोषक तत्वों की पूर्ति संभव है|

यह भी पढ़ें- शिमला मिर्च की जैविक खेती, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मटर की जैविक फसल में सिंचाई व जल प्रबंधन

मटर की बिजाई से पहले एक सिंचाई करें और उसके उपरांत 10 से 12 दिन के अंतराल पर सिंचाई करते रहें| मटर की फसल के लिए पानी की आवश्यकता भूमि व वर्षा पर निर्भर करती है| आम तौर पर मटर की फसल के लिए 2 से 3 सिंचाईयां बहुत जरूरी होती हैं|

पहली सिंचाई बीज बोने से पहले, दूसरी सिंचाई फूल आने पर और तीसरी सिंचाई जब फलियां तैयार हो रही हों| जमीन में अधिक नमी मटर की फसल के लिए हानिकारक होती है| जो कि जड़ सड़न रोग, पौधों का पीला पड़ जाना तथा फसल के दूसरे तत्वों को उपयोग में लाने में अवरोधक होती है|

मटर की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण

मटर की खेती में 1 से 2 बार निराई-गुड़ाई की आवश्यकता होती है| जो कि फसल की किस्म पर निर्भर करती है| पहली निराई व गुड़ाई, जब पौधों में तीन-चार पत्ते हों या बिजाई से 3 से 4 सप्ताह बाद करें| दूसरी, फूल आने से पहले करें| खेत की मेढ़ों पर पाए जाने वाले वार्षिक घास वाले और चौड़ी पत्तों वाले खरपतवारों की रोकथाम उनको नष्ट करने के उपरांत की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- खीरे की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मटर की जैविक फसल में कीट नियंत्रण

तना छेदक, पत्ती छेदक व पत्ती सुरंगक- मटर की फसल में तना छेदक, पत्ती छेदक व पत्ती सुरंगक कीटों का प्रकोप होता है| फल छेदक की सुंडियां फली में घुसकर दानों को खा जाती हैं| पत्ती सुरंगक कीट की मादा मक्खी पत्ती के ऊपरी व निचली सतह के बीच अंडे देती है| इसकी सुंडियां पत्ते के हरे भाग को खाकर सुरंगों का जाल बिछा देती हैं|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए कीटरोधी स्वस्थ बीज का उपयोग करें| फसल में प्रति सप्ताह एजेरेक्टीन 0.15 प्रतिशत की 2 मिलीलीटर दवा प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें|

मटर की जैविक फसल में रोग नियंत्रण

उकठा- इस रोग से पौधों का ऊपरी भाग पीला पड़ना, निचली पत्तियों का पीला होकर मुड़ना, जड़ों का कमजोर होना प्रमुख लक्षण है तथा पौधे सूख जाते हैं|

मूल विगलन- इस रोग से बीज प्रारम्भिक अवस्था में मिटटी के अन्दर या अंकुरित होकर सड़ जाते हैं| पौधे की वृद्धि रुक जाती है और पौधे गल जाते हैं| जल का समुचित निकास नहीं होने पर यह रोग अधिक लगता है|

चूर्णिल आसिता- यह रोग कई सब्जियों में लगता है| पत्तियों, दानों और फलियों पर सफेद चूर्ण दिखाई देता है| अधिक प्रकोप होने पर पौधे धूल भरे दिखायी देते हैं| रोग का प्रकोप फरवरी से मार्च में अधिक होता है| इससे फसल की उपज एवं गुणवत्ता में क्षति होती है|

रोकथाम-

1. रोगरोधी या सहनशील किस्मों का प्रयोग करें|

2. मटर की जैविक खेती हेतु ट्राईकोडर्मा से उपचारित खाद का प्रयोग करें|

3. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में स्युडोमोनस फ्लोरोसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें|

4. खड़ी फसल में निकाई-गुड़ाई द्वारा मिट्टी में वायु संचार करें|

5. फसल चक्र अपनाएँ|

6. खेती से रोगी पौधे नष्ट कर दें|

7. चूर्णिल आसिता में गंधक (सलफेक्स) 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

जैविक कीटनाशी-

1. बैक्टीरिया से बना कीटनाशी जैसे- बायोलेप, हाल्ट, डेलफिन (1 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करें|

2. नीम से बना कीटनाशी अचूक, निम्बोसीडीन, नीम गोल्ड, नीमोल से रस चूसने वाले कीड़ों का नियंत्रण होता है|

3. मटर की जैविक फसल में हेलियोकल या हेलिसाईड के उपयोग से फल छेदक कीड़ों का नियंत्रण होता है|

4. खैनी या जामुन से भी कीटनाशी दवा बनाकर छिड़काव किया जा सकता है| मटर के कीट एवं रोग की जैविक रोकथाम की विस्तार से जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- मटर के प्रमुख रोग एवं कीट और उनकी जैविक रोकथाम कैसे करें

मटर की जैविक खेती का जैविक प्रमाणीकरण

जैविक प्रमाणीकरण, जैविक उत्पाद की गुणवत्ता एवं सत्यता को प्रमाणित करने के लिए तृतीय पक्ष द्वारा कराया गया एक मूल्यांकन है| जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग को ध्यान में रखते हुए सभी देशों ने जैविक कृषि करने के कुछ मापदंड तैयार किए हैं| भारत में कृषि एवं प्रसंस्कृत खाद्य उत्पादन निर्यात एवं विकास प्राधिकरण (APEDA) से अनुमोदन प्राप्त करती है| जैविक प्रमाण-पत्र भूमि पर जैविक तरीके से की गई खेती की सत्यता को निर्धारित करते हुए उस भूमि के लिए निर्गत किया जाता है|

यह भी पढ़ें- बैंगन की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में देखभाल और पैदावार

मटर की जैविक फसल की फलियों तुड़ाई

मटर की जैविक फसल से मंडी में अच्छी कीमत के लिए फलियों का समय पर तोड़ना अनिवार्य है, अन्यथा इनके गुण पर प्रभाव पड़ता है| फलियां तब तोड़े जब वह पूर्णतया दानों से भर जाएं| इसके पश्चात हरा रंग घटने लग जाता है| सामान्यतः फलियों की तुड़ाई 7 से 10 दिन के अंतराल पर करें|

मटर की फसल की कुल 4 से 5 तुड़ाईयां होनी चाहिए| दाल के लिए उगाई गई फसल की कटाई पूर्णतय पकने के बाद करें| मटर की तुड़ाई या कटाई सुबह-शाम करें| दिन में तेज धूप पड़ने पर मटर की गुणवत्ता पर असर पड़ता है| मटर फल की तुड़ाई पौधों से बहुत सावधानी से करनी चाहिए ताकि पौधों को क्षति न पहुंचे|

मटर की जैविक खेती से पैदावार

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनीक से मटर की जैविक अगेती फसल की पैदावार 70 से 110 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है| जबकि मुख्य फसल की पैदावार 100 से 150 क्विंटल प्रति हैक्टेयर होती है|

भण्डारण- हरी मटर की फलियों की ग्रेडिंग व पैकिंग बहुत ध्यानपूर्वक करनी चाहिए| प्रायः मटर को बोरियों, बांस की टोकरियों आदि में पैक किया जाता है और मण्डियों में पहुंचाया जाता है| मटर की फलियों पर अधिक नमी नहीं होनी चाहिए अन्यथा इस पर फफूंद जैसी बीमारियां व व्याधियां आ सकती हैं|

यह भी पढ़ें- आलू की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

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