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Home » जड़ वाली सब्जियों के बीज का उत्पादन कैसे करें: जाने उत्तम विधि

जड़ वाली सब्जियों के बीज का उत्पादन कैसे करें: जाने उत्तम विधि

November 23, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जड़ वाली सब्जियों के बीज का उत्पादन कैसे करें

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए इन सब्जियों को दो अलग-अलग समूहों में बांटा गया है| एशियाटिक या उष्णकटिबंधीय समूह और युरोपियन या शीतोष्ण समूह| युरोपियन समूह में शीतकालीन किस्में आती है, जिनका बीज उत्पादन पहाड़ी इलाकों में ही सभंव होता है| जबकि मूली, शलगम व गाजर की अर्द्धउष्णीय या एशियाटिक किस्मों का बीज उत्पादन उत्तर भारत के मैदानी भागों में भी किया जा सकता हैं|

किसान भाई किसी भी कम्पनी से अनुबंध कर के जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन का अपना व्यवसाय शुरू कर सकते है, जिससे उनकी आय में काफी इजाफा संभव है, जड़ वाली सब्जियों की खेती कैसे करें, की जानकारी के लिए यहां पढ़ें- जड़ वाली सब्जियों की खेती कैसे करें

मूली की एशियाटिक किस्में- पूसा देशी, पूसा रेश्मी, पूसा चेतकी और पूसा मृदुला आदि|

गाजर की एशियाटिक किस्में- पूसा रूधिरा, पूसा मेघाली, पूसा आसिता और पूसा वृष्टि आदि|

शलगम की एशियाटिक किस्में- पूसा स्वेती और पूसा कंचन आदि है|

इन सब्जियो में शुद्ध बीज बनाने के लिए जडों से बीज बनाने की विधि प्रयोग में लाते है| बीज उत्पादन हेतु उसी खेत का चयन करें, जिसमें पिछले एक वर्ष में, बोई जाने वाली किस्म के अलावा कोई दूसरी किस्म बीज उत्पादन के लिए ना उगाई गई हो|

यह भी पढ़ें- अगेती खेती के लिए सब्जियों की पौध तैयार कैसे करें

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए प्रतिरोपण के लिए जड़ें

जड़ वाली सब्जियों मूली और शलगम में बिजाई के 45 से 65 दिन बाद एवं गाजर में बिजाई के 90 से 100 दिन बाद प्रतिरोपण के लिए जड़ें तैयार हो जाती है| एक हैक्टेयर खेत में तैयार जड़े बीज उत्पादन के लिए 3 से 4 हैक्टेयर क्षेत्र में प्रतिरोपण के लिए पर्याप्त होती है| मूली की पूसा मृदुला किस्म में बीजाई के 25 से 30 दिन बाद प्रतिरोपण के लिए जड़ें तैयार हो जाती है| बोई गई किस्म से मेल खाती जड़ों को भूमि से निकालकर रंग, आकार तथा रूप के आधार पर छांट लेते है|

जड़ वाली सब्जियों की छांटी गई जड़ों का नीचे से एक तिहाई और पत्तियों को 5 से 10 सेंटीमीटर रखकर काट देते है| पत्तों को काटते समय इस बात का ध्यान रखें कि पादप शिखर को हानि ना पहुँचें ताकि जड़ प्रतिरोपण के बाद पौधे का फुटाव जल्दी हो सके| छांटी गई जड़ों को प्रतिरोपण से पहले फफूदीनाशक से उपचारित कर लें|

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए रोपण का फासला

जड़ वाली सब्जियों की छांटी गई जड़ों को क्रमश: 60 x 60 सेंटीमीटर (मूली), 60 x 45 सेंटीमीटर (शलगम) और 60 x 30 सेंटीमीटर (गाजर) की दूरी पर लगाते है| इनके प्रतिरोपण का समय फसल और प्रजाति के उपर निर्भर करता है| मूली और शलगम में प्रतिरोपण का उचित समय अक्टुबर से नवंबर और गाजर का मध्य दिसंबर से मध्य जनवरी तक है| जड़े प्रतिरोपित करने के बाद खेत को सींचा जाता है| प्रतिरोपण के 15 से 20 दिन बाद जड़ों के साथ पौधों पर मिटटी चढ़ाना आवश्यक है|

यह भी पढ़ें- मशरूम की खेती क्या है, जानिए विभिन्न प्रजातियों के उत्पादन की तकनीकी

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए अवांछनीय पौधों की पहचान

जड़ वाली सब्जियों के बीज हेतु खेत में कोई भी वह पौधा जो लगायी गई किस्म के अनुरूप लक्षण नहीं रखता है, उसे अवांछनीय पौधा माना जाता है| अवांछनीय पौधे निकालने वाले व्यक्ति को किस्म के लक्षणों का भली भांति ज्ञान होना चाहिए, जिससे की वह अवांछनीय पौधों को पौधे की बढवार, पत्तों एवं फूलो के रंग-रूप, जड़ों के रंग-रूप और फूलो के खिलने का समय आदि के आधर पर पहचान सके|

जड़ वाली सब्जियों के बीज के लिए अवांछनीय पौधों का निरीक्षण कम से कम चार बार करते है प्रथम निरीक्षण जडों को उखाड़ने से पहले पौधों की शाकीय बढ़वार की अवस्था में पत्तों के रंग रूप के आधार पर, दूसरा निरीक्षण जडों को खेत से निकालते समय करते है| बोई गई किस्म से मेल खाती जडों को ही प्रतिरोपण के लिए चुनते है|

फूलों के खिलने के समय जो पौधे बहुत जल्दी फलन की अवस्था में आते है एवं जो पौधे सामान्य से बाद में फूल की अवस्था में आते है, उनको भी निरीक्षण के दौरान निकाल देना चाहिए| जिन पौधों में बीमारी के लक्ष्ण दिखाई दें, उन्हे भी खेत से हटाना जरूरी है| हर अवस्था पर जो भी अवांछनीय पौधे मिलें उन्हें निकालते रहना चाहिए|

यह भी पढ़ें- आलू की उन्नत खेती कैसे करें

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन के लिए परागण

इन जड़ वाली सब्जियों की फसलों में परागण मुख्यतः मधुमक्खियों एवं अन्य कीटों द्वारा होता है, पर-परागित फसलें होने के कारण इन फसलों का आनुवंशिक रुप से शुद्ध बीज प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि दो किस्मों के बीच में एक निर्धारित दूरी अवश्य रखी जाए| आधार बीज उत्पादन के लिए मूली और शलगम में 1600 मीटर और गाजर में 1000 मीटर पृथक्करण दूरी रखते हैं| जबकि प्रमाणित बीज के लिए मूली तथा शलगम में 1000 मीटर और गाजर में 800 मीटर पृथक्करण दूरी रखते हैं|

जड़ वाली सब्जियों के बीज बनने के लिए मूली, शलगम, गाजर में पर-परागण आवश्यक है| जिसमें मधुमक्खियां और अन्य कीट परागण में मदद करते है| मधुमक्खियों और अन्य कीटों द्वारा समुचित मात्रा में पर परागण होने से इन फसलों में उत्तम गुण वाले बीजों की कुल पैदावार बढ़ जाती है| बीज खेत में फूल आना आरंभ होने के समय मधुमक्खियों के 2 से 4 बक्से प्रति एकड़ की दर से रखे जाने चाहिए|

जड़ वाली सब्जियों के बीज निकलना

जड़ वाली सब्जियों के बीज उत्पादन हेतु फलियों या फूलवृंतों को समय से तोड़कर उनसे बीज निकालना ठीक रहता है| इसमें असावधानी बरतने पर बीज की उपज एवं गुणवत्ता में कमी आती है| इन फसलों में बीज की फसल कटाई हेतु मार्च से मई के महीने में तैयार हो जाती है| मूली और शलगम की फलियों को पीला पड़ने पर व पूर्णतः सूखने से पहले ही काट लेते है| फसल को सुबह के समय काटना उचित रहता है|

जड़ वाली सब्जियों के खलिहान में पौधों को अच्छी तरह सुखाकर फलियों को बीजों को अलग करके साफ एवं श्रेणीयों में अलग किया जाता है| गाजर के फुलवृंतों को एक-एक कर पकने की अवस्था में काटते है और 2 से 3 बार में सारी फसल की कटाई होती है| काटे गए फूलवृंतों को छाया में 5 से 7 दिन सुखाने के बाद गहाई व मड़ाई करके बीज निकालते है|

यह भी पढ़ें- परवल की खेती की जानकारी

जड़ वाली सब्जियों की बीज फसल से पैदावार

जड़ वाली सब्जियों के बीज प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल में मूली में 800 से 1000 किलोग्राम, शलगम में 600 से 800 किलोग्राम और गाजर में 500 से 600 किलोग्राम बीज की औसत पैदावार हो जाती है| साफ किये गए बीजों को 7 से 8 प्रतिशत नमी तक सुखाकर, नमीरोधी थैलों में भरा जाता है|

जड़ वाली सब्जियों के बीज का भंडारण

जड़ वाली सब्जियों के बीज भंडारण के दौरान बीजों को कीटों से बचाव हेतु इमिडाक्लोप्रिड चूर्ण 0.1 ग्राम या मेलाथियान चूर्ण 0.5 ग्राम दवा प्रति किलोग्राम बीज की दर से और फफुदी जनक रोगों से बचाव हेतु थिराम या कार्बाडाजिम चूर्ण 2 ग्राम प्रति किलो बीज की दर से उपचार करें| बीजों को नमी रहित, ठडे स्थानों पर भंडारण हेतु रखा जाता है|

यह भी पढ़ें- गोभी वर्गीय फसलों के रोग एवं उनका प्रबंधन

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