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खीरे की जैविक खेती: किस्में, बुवाई, खाद, सिंचाई, देखभाल, पैदावार

May 2, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

खीरे की जैविक खेती

आज के आधुनिक युग में उन्नतशील किसान बन्धु सब्जियों की जैविक खेती से कम उत्पादन लागत में अधिक लाभ प्राप्त कर रहे है| खीरे की जैविक खेती भी इन में से एक है| जो की किसानों के लिए काफी फायदेमंद साबित हो रही है| खीरा कुकुरबिटेसी कुल का महत्वपूर्ण पौधा है| इसे जायद तथा खरीफ दोनो मौसमों में उगाया जाता है| जबकि पॉली हाउ खीरे की जैविक खेती वर्ष भर की जाती है| ससामान्यतया खीरे का उपयोग कच्चे सलाद के रूप में किया जाता है|

रायता, आचार एवं सब्जी निर्माण हेतु भी खीरे का उपयोग किया जाता है| खीरे में विटामिन बी व सी प्रचुर मात्रा में पायी जाती है| इसका सौंदर्य प्रसाधनो में भी अत्यधिक उपयोग किया जाता है| खीरे में कडुआ स्वाद होता है| इसमें 0.4 प्रतिशत प्रोटीन, 2.5 प्रतिशत कार्बोहाइड्रेड, 1.5 मिली ग्राम लोहा तथा 2 मिली ग्राम विटामिन सी, 100 ग्राम खाद्यांष में पाया जाता है|

खीरा, कब्ज, पीलिया तथा अपच से प्रभावित व्यक्तियों के लिए लाभकारी होता है| जिससे पता चलता है की खीरा मानव के लिए कितना महत्वपूर्ण है| इसी लिए खीरे की जैविक खेती का भी महत्व बढ़ जाता है| इस लेख में खीरे की जैविक उन्नत खेती कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- अदरक की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक खेती के लिए उपयुक्त जलवायु

खीरा फसल को उष्णकटिबन्धीय तथा उपउष्णकटिबन्धीय क्षेत्रो में उगाया जा सकता है| यह अल्पकालीन 55 से 80 दिन फसल होती है| यह पाले को सहन नहीं कर पाती अधिक ठंडक में विकास अवरुद्ध हो जाता है तथा अधिक वर्षा, आर्द्रता और बादल होने से कीट एवं रोगों के प्रसारण में वृद्धि हो जाती है खीरा फसल प्रकाश तथा तापमान के घटने और बढने से बहुत अधिक प्रभावित होती है|

अधिक आर्द्रता और छोटे प्रकाश समय में मादा फुल का निर्माण अधिक होता है और मादा फूलों की संख्या काफी कम हो जाती है| जिसका उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, खीरे में वर्षाकालीन फसल में फलन अधिक होता है| खीरे की जैविक फसल के लिए 18 से 22 सेंटीग्रेट तापमान उचित होता है|

खीरे की जैविक खेती के लिए भूमि का चयन

खीरे की जैविक फसल से भरपूर उत्पादन के लिए जीवांशयुक्त उचित जल निकास वाली दोमट भूमि अच्छी मानी जाती है| अगेती फसल के लिये हल्की मिटटी जो जल्दी गर्म हो जाती है, उत्तम रहती है| हल्की अम्लीय मिटटी जिसका पी एच मान 5.5 से 6.8 हो अच्छी होती है| अधिक अम्लीय मिटटी में इसके पौधे ठीक से विकास नही कर पाते है|

खीरे की जैविक खेती के लिए खेत की तैयारी

खीरे की जैविक खेती के लिए प्रथम जुताई मिटटी पलटने वाले हल से करें| उसके बाद 2 से 3 जुताई देशी हल या कल्टीवेटर से करे, प्रत्येक जुताई के बाद पाटा अवश्य लगाएं ताकि मिटटी भुरभुरी एवं समतल हो जाए|

यह भी पढ़ें- टमाटर की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक खेती के लिए किस्मों का चयन

खीरे की जैविक खेती के लिए किसानों को अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली तथा विकार रोधी किस्म का चयन करना चाहिए| यदि संभव हो सके तो जैविक प्रमाणित बीज ही उपयोग में लाएं| कुछ प्रचलित और अच्छी उपज वाली किस्में इस प्रकार है, जैसे-

विदेशी किस्में- जापानी लौंग ग्रीन, चयन, स्ट्रेट- 8 और पोइनसेट आदि प्रमुख है|

भारतीय किस्में- स्वर्ण अगेती, स्वर्ण पूर्णिमा, पूसा उदय, पूना खीरा, पंजाब सलेक्शन, पूसा संयोग, पूसा बरखा, स्वर्ण शीतल, खीरा 90, कल्यानपुर हरा खीरा, कल्यानपुर मध्यम और खीरा 75 आदि प्रमुख है|

संकर किस्में- पंत संकर खीरा- 1, प्रिया, हाइब्रिड- 1 और हाइब्रिड- 2 आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- खीरे की उन्नत व संकर किस्में, जानिए उनकी विशेषताएं और पैदावार

खीरे की जैविक खेती के लिए बुआई का समय

खीरे की किस्में दो भागों में विभक्त की जाती है| पहली ग्रीष्मकालीन और दुरी बरसाती किस्मे ग्रीष्मकालीन किस्मों के पौधे फैलने वाले होते है तथा बरसाती किस्मों के फल बड़े होते है और वे किस्मे पुरे भारत में उगाई जाती है| खीरे की जैविक खेती के लिए मैदानी भागों में गर्मी की फसल की बुवाई जनवरी से मार्च तक की जाती है| बरसाती फसल के लिए जून से जुलाई उपयुक्त है| पाला रहित क्षेत्रों में खीरे की बुवाई अक्टूम्बर में की जाती है, जिसके कारण मार्च में अगेती फसल प्राप्त हो जाती है|

यह भी पढ़ें- धनिया की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक खेती के लिए बीज की मात्रा

खीरे की जैविक खेती के लिए एक हेक्टेयर क्षेत्र की बुआई के लिए 3 से 3.5 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है| बीज की बुआई करने से पहले ट्राइकोडर्मा हर्जिएनम 5 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज और बुवाई से 2 से 3 घंटे पहले बीजों का राइजोबियम या पी एस बी संवर्धन द्वारा उपचारित कर लें|

खीरे की जैविक खेती के लिए बुआई की विधि

खीरे की जैविक खेती हेतु अच्छी तरह से तैयार खेत में 1.5 मीटर की दूरी पर मेड़ बना लें| मेड़ों पर 60 से 90 सेंटीमीटर की दूरी पर बीज बोने के लिए गढ्ढे बना लेना चाहिए| एक सेंटीमीटर की गहराई पर एक गड्डे में 2 बीजों की बुआई करते हैं|

खीरे की जैविक खेती के लिए खाद प्रबंधन

खीरे की जैविक खेती से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए 15 टन वर्मी कम्पोस्ट एवं 2 टन बीडी कम्पोस्ट या 25 टन गोबर की खाद तथा 2 टन बीडी कम्पोस्ट इस्तेमाल करनी चाहिए| यह खादें अच्छी प्रकार हल चलाते समय भूमि में मिलानी चाहिए| वर्मी कम्पोस्ट को अंतिम बुआई के समय प्रयोग में लाना चाहिए| खड़ी फसल में जीवामृत या मटका खाद के 2 से 3 छिड़काव करें| इन सब से खीरे की जैविक फसल में आवश्यक पोषक तत्वों की पूर्ति संभव है|

यह भी पढ़ें- फ्रांसबीन (फ्रेंचबीन) की जैविक खेती, जाने किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक फसल में सिंचाई प्रबंधन

बुआई के समय खेत में नमी पर्याप्त मात्रा में रहनी चाहिए अन्यथा बीजों का अंकुरण एवं वृद्धि अच्छी प्रकार से नही होती है| बरसात वाली फसल के लिए सिंचाई की विशेष आवश्यकता नहीं पड़ती है| औसत गर्मी की फसल को 5 से 6 दिन और सर्दी की फसल को 10 से 15 दिनों पर पानी देना चाहिए|

खीरे की जैविक फसल में खरपतवार नियंत्रण

वर्षा की फसल में खरपतवार की समस्या अधिक होती है| बीज अंकुरण से लेकर प्रथम 25 से 30 दिनों तक खरपतवार फसल को ज्यादा हानि पहुंचाते हैं| इससे फसल की वृद्धि पर प्रतिकूल असर पड़ता है एवं पौधों की बढ़वार रूक जाती है| इसलिए खेत में समय-समय पर खरपतवार निकालते रहना चाहिए| खरपतवार निकालने समय पौधों की जड़ों में मिट्टी चढ़ाना चाहिए, जिससे पौधों का विकास अच्छे से होता है|

यह भी पढ़ें- मेथी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक फसल में कीट नियंत्रण

रेड पम्पकिन बीटिल- यह लाल रंग का 5 से 8 सेंटीमीटर लम्बा कीट है, जो बेल वर्गीय सभी सब्जियों को क्षति पहुंचाता है| फसलों के अंकुरण के तुरंत बाद क्षति पहुंचाता है, यह पत्तियों के बिच का भाग खाता है|

नियंत्रण-

1. सुबह ओस पड़ने के समय राख का बुरकाव करने से भी प्रौढ़ पौधों पर नहीं बैठता जिससे नुकसान कम होता है|

2. नियंत्रण के लिए अजादीरैक्टिन 300 पी पी एम 5 से 10 मिलीलीटर लीटर या अजादीरैक्टिन 5 प्रतिशत 0.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी की दर से दो या तीन छिड़काव करने से लाभ होता है|

3. नीम आधारित जैविक कीटनाशी के 2 से 3 छिड़काव आवश्यकतानुसार करें|

खीरे का फतंगा- इस कीट के वयस्क मध्य आकार के तथा अग्र पंख सफेदी लिए हुए एवं किनारे पर पारदर्शी भूरे धब्बे पाये जाते है| सुंडी लम्बे, गहरे हरे और पतली होती है|

नियंत्रण-

1. नियमित अंतराल पर सूड़ियों को इकट्ठा करके नष्ट कर देना चाहिए|

2. नियंत्रण के लिए बैसिलस थूजेंसिस किस्म कुर्सटाकी 1 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से एक या दो बार 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|

सफेद मक्खी- यह सफेद व छोटे आकार का एक प्रमुख कीट है| पूरा शरीर मोम से ढका रहता है, इसलिए इससे सफेद मक्खी के नाम से जाना जाता है| इस कीट के शिशु तथा प्रौढ़ खीरा फसल के पौधों की पत्तियों से रस चूसते हैं एवं विषाणु रोग फैलाते हैं|

नियंत्रण-

1. मक्का, ज्वार या बाजरा को मेड़ फसल पर अन्तः सस्यन के रूप में उगाना चाहिए जो अवरोधक का कार्य करते हैं जिससे कीट का प्रकोप कम हो जाता है|

2. वर्टीसिलियम लिकैनी 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी या पैसिलोमाइसेज फेरानोसस 5 ग्राम प्रति लीटर पानी का प्रयोग भी किया जा सकता है|

3. नीम गिरी पाउडर का छिडकाव करें|

यह भी पढ़ें- हल्दी की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

खीरे की जैविक फसल में रोग नियंत्रण

चूर्णिल असिता- इस रोग में पुरानी पत्तियों की निचली सतह पर सफ़ेद धब्बे उभर आते है| धीरे-धीरे इन धब्बो की संख्या तथा आकार में वृद्धि हो जाती है, बाद में पत्तियों के दोनों और सफ़ेद पाउडर जैसी तह जम जाती है| पत्तियों के अलावा तना , फुल व फल पर भी आक्रमण होता है| पत्तियों की सामान्य वृद्धि रुक जाती है तथा पीली पड़ जाती है यह रोग सूखे मौसम में अधिक होता है|

मृदुरोमिल रोग- यह रोग अत्यधिक गर्मी, वर्षा व नमी वाले क्षेत्रों में होता है| रोग ग्रस्त पौधों की पत्तियों के उपरी भाग पर पीले धब्बे तथा निचले भाग पर बैंगनी रंग कर धब्बे दिखाई पड़ते है और उग्र रूप में तना तथा संजनी पर भी आक्रमण होता है एवं पत्तियां सुखकर गिर जाती है|

विषाणु रोग- खीरे पर मोजैक विषाणु का आक्रमण मुख्य रूप से होता है| रोग के प्रभाव से पत्तियों पर पीले धब्बे पड़ जाते है तथा पत्तियां सिकुड़ जाती है| अंत में पत्तियां पीली होकर सुख जाती है और फल आकार में छोटे टेढ़े – मेढ़े , प्राय सफ़ेद तथा कम बनते है, यह रोग मुख्य रूप से एफिड व सफ़ेद मक्खियों द्वारा फैलता है|

नियंत्रण-

1. रोगरोधी या सहनशील किस्मों का प्रयोग करें|

2. खीरे की जैविक फसल हेतु ट्राईकोडर्मा से उपचारित खाद का प्रयोग करें|

3. रोग की प्रारम्भिक अवस्था में स्युडोमोनस फ्लोरोसेंस 10 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें|

4. फसल चक्र अपनाएँ|

5. खीरे की जैविक फसल से रोगी पौधे नष्ट कर दें|

6. चूर्णिल आसिता में गंधक (सलफेक्स) 2 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव करें|

7. बीज बुवाई से पहले बीज का उपचार अवश्य करें|

8. ग्रीष्मकाल में मिटटी का सौरियकरण करें|

9. खीरे की जैविक हेतु मिटटी का जैविक उपचार कर के बुवाई करें|

यह भी पढ़ें- शुष्क क्षेत्र में जैविक खेती कैसे करें, जानिए आधुनिक तकनीक

खीरे की जैविक फसल के फलों की तुड़ाई

खीरे की जैविक खेती से बुवाई के लगभग 50 से 65 दिन बाद फलों की तोड़ाई प्रारम्भ हो जाती है| फलों को पूर्ण वृद्धि प्राप्त करने के कुछ समय पूर्व ही तोड़ लेना चाहिए| खीरे की तुड़ाई 2 या 3 दिन के अंतराल पर की जाती है| फसल की अवधि में 10 से 15 तुड़ाईया की जाती है|

खीरे की जैविक खेती से पैदावार

खीरे की जैविक खेती से ग्रीष्म और बसन्त कालीन फसल की तुलना में वर्षाकालीन फसल से अधिक पैदावार मिलती है| प्रति हेक्टेयर लगभग 200 से 350 क्विंटल तक फल प्राप्त हो जाते है|

यह भी पढ़ें- शिमला मिर्च की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

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