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Home » आलू की उन्नत किस्में | आलू की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

आलू की उन्नत किस्में | आलू की सबसे अच्छी किस्में कौन सी है?

March 18, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

आलू की उन्नत किस्में

आलू की खेती के लिए उन्नत या संकर किस्म का सही चुनाव एक महत्वपूर्ण विषय है, क्योंकि यह पुरे उत्पादन के खर्च का सबसे महंगा अंश है और इसी पर आलू की उपज निर्भर करती है| कृषकों को आलू की खेती से अधिकतम उपज प्राप्त करने के लिए उपयुक्त भूमि, उचित पोषक प्रबंधन, पौध संरक्षण और अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक उत्पादन वाली किस्म के चयन के साथ-साथ फसल पकाव अवधि का भी विशेष ध्यान रखना चाहिए| ताकि किसान अपनी इच्छित पैदावार प्राप्त कर सके| इस लेख में आलू की उन्नत किस्मों की विशेषताएं और पैदावार का विस्तार से उल्लेख है| आलू उत्पादन की आधुनिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आलू की उन्नत खेती कैसे करें

आलू की किस्में

अगेती किस्में- कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफरी ख्याती, कुफरी सूर्या, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर, जिनकी पकने की अवधि 80 से 100 दिन है|

मध्यम समय वाली किस्में- कुफरी बादशाह, कुफरी ज्योति, कुफरी बहार ,कुफरी लालिमा, कुफरी सतलुज, कुफरी चिप्सोना- 1, कुफरी चिप्सोना- 3, कुफरी सदाबहार, कुफरी चिप्सोना- 4, कुफरी पुष्कर जिनकी पकने की अवधि 90 से 110दिन है|

देर से पकने वाली किस्में- कुफरी सिंधुरी कुफरी फ़्राईसोना और कुफरी बादशाह जिनकी पकने की अवधि 110 से 120 दिन है|

संकर किस्में- कुफरी जवाहर (जे एच- 222), 4486- ई, जे एफ- 5106, कुफरी सतुलज (जे आई 5857) और कुफरी अशोक (पी जे- 376) आदि है|

विदेशी किस्में- कुछ विदेशी किस्मों को या तो भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल पाया गया है या अनुकूल ढाला गया है, जो इस प्रकार है, जैसे-  अपटूडेट, क्रेग्स डिफाइन्स और प्रेसिडेंट आदि है|

यह भी पढ़ें- शरदकालीन गन्ने के साथ आलू की खेती, जानिए दोहरा लाभ की तकनीक

आलू की किस्मों की विशेषताएं और पैदावार

आलू की संकर किस्में

कुफरी जवाहर (जे एच- 222)- इसे कुफरी नीलमणि तथा कुफरी ज्योति के संकरण से विकसित किया गया है| यह कुफरी बहार तथा कुफरी बादशाह 12 दिन पहले तैयार हो जाती है| इसका पौधा 45 से 55 सेंटीमीटर ऊँचा बढ़ता है| इस किस्म के कंद क्रीमी सफ़ेद होते है, जो से 90 से 110 दिन में तैयार हो जाते है| खेतों में अगेता झुलसा तथा फोमा रोग कि प्रति रोधी किस्म है, इसकी उपैदावार 250 से 300 क्विंटल प्रति हेक्टयर तक है|

ई- 4486- आलू की इस किस्म के कंद मध्यम आकार के व सफ़ेद रंग के होते है, जो तैयार होने में 135 दिन लेते है| इसे हरियाणा, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात तथा मध्य प्रदेश में उगाने के लिए अनुमोदित किया गया है|

जे एफ- 5106- इसके कंद लम्बे, सफ़ेद तथा आकर्षक होते है| यह संकर उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त है|

कुफरी सतलुज (जे आई- 5857)- इसे कुफरी बहार व कुफरी अलंकार के संकरण से विकसित किया गया है| पौधे मध्यम उंचाई 60 से 70 सेंटीमीटर बढ़ते है| कंद सफेद अंडाकार होते है, यह संकर किस्म सिन्धु गंगा मैदानी तथा पठारी क्षेत्रों में उगाने के लिए अनुमोदित की गई है|

कुफरी अशोक (पी जे- 376)- आलू की यह अगेती किस्म है| जिसके पौधे मध्यम उंचाई वाले 60 से 80 सेंटीमीटर होते है| इसके कंद सफ़ेद रंग के होते है| यह सम्पूर्ण सिन्धु गंगा क्षेत्र के लिए उपयुक्त किस्म है| जो 75 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसकी 230 से 280 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार मिल जाती है|

जे ई एक्स सी- 166- आलू की यह एक पारिमाणिक मध्यम अवधि 90 दिन  में तैयार होने वाली किस्म है| इसकी 300 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार मिल जाती है| जो प्रचलित मध्यम अवधि वाली किस्मों कुफरी बादशाह तथा कुफरी बहार कि उपज से कहीं अधिक है|

यह भी पढ़ें- आलू में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

आलू की उन्नत किस्में

कुफरी चंद्रमुखी- आलू की यह एक अगेती किस्म है| जो 80 से 90 दिन में पकक़र तैयार हो जाती है| इसके कंद बड़े अंडाकार तथा सफ़ेद छिलके व उथले आँखों वाले होते है| इस किस्म पर पछेती अंगमारी नामक रोग का अधिक प्रकोप होता है| यह मैदानी क्षेत्रों में 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पैदावार देती है|

कुफरी अलंकार- आलू की यह एक बहुत अगेती किस्म है| इसके कंद सफ़ेद रंग के होते है, वैसे इसकी फसल मैदानी क्षेत्रों में 70 दिन में तैयार हो जाती है| यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है| इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक होती है|

ई- 3792 (कुफरी बहार)- यह छोटे दिन वाली अवस्था में 90 से 110 दिन में लम्बे दिन वाली दशा में 100 से 135 दिन में तैयार होने वाली किस्म है| इसके कंद बड़े अंडाकार तथा सफ़ेद छिलके वाले होते है|

जी- 2524 (कुफरी नवताल)- यह एक अगेती किस्म 75 से 85 दिन में इसके कंद खुदाई के लिए तैयार हो जाते है| इसके कंद बड़े, अंडाकार, सफ़ेद रंग के आँखों वाले होते है, कंद के भीतर का रंग हल्का पिला होता है| यह किस्म उत्तर भारत के मैदानी तथा पर्वतीय दोनों ही क्षेत्रों में उगाने के लिए उपयुक्त किस्म है| इसकी पैदावार 200 से 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

कुफरी ज्योति- यह किस्म विशेष रूप से पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है| इसके कंद अंडाकार , सफ़ेद तथा उथली आँखों वाले होते है, मैदानी क्षेत्रों में इसके कंद अधिक दिनों तक भूमि में रहने से फट जाते है| इसलिए मैदानी क्षेत्रों में इसकी खुदाई 80 दिन में कर लेनी चाहिए, पर्वतीय क्षेत्रों में यह किस्म 130 से 150 दिन में पककर तैयार होती है| मैदानी और पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी पैदावार 150 से 200 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है|

कुफरी शीतमान- आलू की यह एक सफ़ेद कंद वाली किस्म है| जो मैदानी क्षेत्रों में 100 से 110 दिन में तथा पर्वतीय क्षेत्रों में 125 से 130 दिन में तैयार हो जाती है| इसके कंद बड़े अंडाकार एवं उथली आँखों वाले होते है| यह पाले को सहन करने वाली किस्म है, इसकी पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

कुफरी बादशाह- यह लम्बी अवधि वाली किस्म है| जो 100 से 120 दिन में तैयार हो जाती है, यह अगेती व पछेती अंगमारी कि अवरोधी किस्म है| इसके कंद बड़े अंडाकार तथा सफ़ेद छिलके वाले होते है| यह किस्म अगेती खुदाई करने पर भी कुफरी चंद्रमुखी से अधिक उपज देती है|

कुफरी सिंदूरी- यह एक पछेती किस्म है| जो 120 से 140 दिन में पककर तैयार हो जाती है| इसके कंद मध्यम आकार के गोल तथा गुलाबी रंग के होते है, कंद कि आंखे गहरी होती है| इसे मैदानी क्षेत्रों में उगाना उपयुक्त है| इसकी 300 से 400 क्विंटल पैदावार प्रति हेक्टेयर तक है|

कुफरी देवा- यह एक पछेती किस्म है| जो 120 से 125 दिन में तैयार हो जाती है, इसके कंद सफ़ेद अंडाकार गोल तथा आँखों के पास गुलाबी रंग लिए होते है| यह किस्म पाले को सहन कर लेती है, इस किस्म के कंद अन्य किस्मों कि अपेक्षा कम सड़ते है| इसलिए इसके कंदों को साधारण तापमान पर भी रखा जा सकता है| इसकी पैदावार 300 से 400 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|

कुफरी लालिमा- आलू की यह शीघ्र तैयार होने वाली किस्म है| जो 90 से 100 दिन में तैयार हो जाती है, इसके कंद गोल आंखे कुछ गहरी तथा छिलका गुलाबी रंग का होता है| यह अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी है|

कुफरी लवकर- यह किस्म महाराष्ट्र के दक्षिणी पठारों के लिए विकसित कि गई है| इसके कंद सफ़ेद, बड़े गोल एवं चिकने होते है| यह किस्म मैदानी तथा पर्वतीय क्षेत्रों में100 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है| पठारी क्षेत्रों में इसकी पैदावार 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक है|

कुफरी स्वर्ण- आलू की इस किस्म के कंद सफ़ेद होते है| इस किस्म का विकास निलगिरी के उन क्षेत्रों के लिए किया गया है, जहाँ सिस्ट नेमाटोड व दोनों प्रकार के झुलसा कि समस्या है, यह सिस्ट नेमा टोड व दोनों प्रकार के झुलसा के लिए प्रतिरोधी किस्म है| बसंत तथा ग्रीष्म ऋतू में लगभग 110 दिन में तैयार हो जाती है| इसकी पैदावार 300 क्विंटल प्रति हेक्टयर तक है|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए उपयोगी तकनीक

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