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Home » बैंगन की फसल में जैविक विधि से कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

बैंगन की फसल में जैविक विधि से कीट और रोग नियंत्रण कैसे करें

April 13, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

बैंगन की फसल में जैविक

बैंगन की फसल में कीटों एवं रोगों द्वारा काफी नुक्सान होता है| बैंगन की फसल में इन कीट एवं रोगों नियंत्रित करने के लिए किसान बहुत ही जहरीले रासायनिक कीटनाशक का सहारा लेते हैं| किसानों द्वारा इन कीटनाशकों का प्रयोग करने से तीव्र विषैलापन पैदा होता है तथा कटाई के बाद बैंगन में इन कीटनाशकों के अवशेष आ जाते हैं| जब इन्हें खाया जाता है, तब कई तरह की सेहत संबंधी बीमारियाँ हो जाती हैं|

किसानों द्वारा बैंगन के कीटों का गैर रासायनिक तरीके से प्रबंधन करने के लिए वैज्ञानिकों ने कई सफल विकल्प दिए हैं| जिसको जैविक पद्धति कहते है| इस लेख में बैंगन की फसल में जैविक कीट एवं रोग नियंत्रण कैसे करें की विस्तृत जानकारी का उल्लेख है| बैंगन की जैविक खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- बैंगन की जैविक खेती कैसे करें

बैंगन की फसल के कीट

टहनी व फल छिद्रक- किसानों के लिए बैंगन की फसल में टहनी और फल छिद्रक की समस्या काफी भारी समस्या है| इसे नियंत्रित करने के लिए किसान रासायनिक कीटनाशकों का सहारा लेते हैं परंतु कई बार कीटों को नियंत्रण करना बहुत मुश्किल हो जाता है| इसका कारण यह है, कि कीट फल या टहनी के अंदर होते है और कीटनाशक सीधे कीट तक नहीं पहुँच पाता| इसका उग्र प्रकोप होने पर यह बैंगन की फसल को कई बार पूरी तरह से बर्बाद कर देता है|

पत्ते खाने वाले झींगुर- पीले रंग के कीट और शिशु लगातार बैंगन की फसल में पत्तों तथा पौधे के कोमल भागों को खाते हैं और भारी संख्या में पैदा होने पर काफी गंभीर हानि पहुंचाते हैं| जिसके परिणामस्वरूप पत्ते पूरी तरह से कंकाल में बदल जाते हैं तथा केवल शिराओं का जाल ही दिखता है|

बैंगन की फसल में लीफ हापर- नवजात तथा व्यस्क दोनों ही बैंगन की फसल में पत्तों की नीचली सतह से रस चूस लेते हैं| संक्रमित पत्ता किनारों सहित ऊपर की और मुड जाता है, पीला पड़ जाता है और जले जैसे धब्बे दिखने लग जाते हैं| इससे रोग भी संचारित होते है, जैसे माइकोप्लास्मा रोग और मोजेक जैसे वायरस रोग इस प्रकोप की वजह से फलों की हालत बहुत बुरी तरह से प्रभावित होती है|

बैंगन की फसल में लीफ रोलर- केटरपिलर बैंगन की फसल में पत्तों को मोड़ देते हैं तथा उनके अंदर ही रहते हुए क्लोरोफिल को खाकर जिंदा रहते हैं| मुड़े हुए पत्ते मुरझा जाते है व सुख जाते हैं|

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लाल घुन मकड़ी- घुन बैंगन की फसल का कीट है, कम आपेक्षित नमी में इनकी संख्या बहुत बढ़ जाती है| पत्तों के नीचे के भागों में सफेद रेशमी जालों से ढकी इनकी कालोनियां होती है| जिनमे यह घुन विभिन्न चरणों में पाए जाते हैं| शिशु व व्यस्क कोशिकाओं से रस चूसते हैं, जिससे पत्तों पर सफेद धब्बे पड़ जाते हैं| प्रभावित पत्ते बहुत ही विचित्र हो जाते है तथा भूरे रंग में बदल कर झड़ जाते हैं|

बैंगन की फसल में सफेद खटमल- सफेद खटमल नवजात तथा व्यस्क पत्तों, कोमल टहनियों और फलों से रस चूस लेते हैं| पत्तों में वायरस जैसे ही मुड़ने के विशेष लक्षण दिखते हैं| इन खटमलों द्वारा छिपाई गयी मधुरस की बूंदों पर काली मैली भारी फफूंद लग जाती है| यदि खिले हुए फूलों पर हमला होता है, तो फलों के संग्रह पर प्रभाव पड़ता है| जब फल प्रभावित होते हैं, तब वे पूरी तरह से कीटों से ढक जाते हैं| इस प्रभाव की वजह से या तो फल टूट कर गिर जाता है या सूखी व मुरझाई स्थिति में टहनी से लटका रहता है|

जालीदार पंख वाला खटमल- यह बैंगन की फसल का एक विशेष कीट है, जो मुख्यता गर्मी के मौसम में हमला करता है| नवजात और व्यस्क गहरे भूरे रंग वाले, जिनके जालीदार पंख होते है, पत्तों से सारा रस चूस लेते हैं, जिसके कारण वे पीले पड़ जाते है तथा कीटों के मलमूत्र से भर जाते हैं, प्रभावित पत्ते अंत में सूख जाते हैं|

जड़ की गांठ का गोल कीट- यह कीड़ा बैंगन की फसल में बढ़े हुए पौधों की अपेक्षा अंकुरों को अधिक नुक्सान पहुंचाता है| प्रभावित पौधों की जड़ों पर घाव दिखने लग जाते हैं| पौधा अविकसित ही रह जाता है तथा पत्तों में हरा रंग खोने के लक्षण दिखने लगते हैं| पौधे पर फल आने पर भी प्रभाव बुरा पड़ता है|

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बैंगन की फसल के रोग

पानी से तर हो जाना- यह रोग पौधों को नर्सरी में बहुत गंभीर क्षति पहुंचाता है| मिट्टी की उच्च नमी तथा मध्य तापमान के साथ, विशेषकर वर्षा ऋतु, इस रोग को बढ़ावा देती है| यह दो प्रकार से होता है, उद्भव से पहले तथा उद्भव के बाद|

फोमोप्सिस हानि- यह एक गंभीर रोग है, जो पत्तों तथा फलों को प्रभावित करता है| कार्यमंदन के लक्षणों के कारण कवक नर्सरी में ही अंकुरों को प्रभावित कर देती है| अंकुरों का संक्रमण, कार्यमंदन के लक्षणों का कारण बनता है| जब पत्ते प्रभावित होते है, तब छोटे गोल धब्बे पड़ जाते है, जो अनियमित काले किनारों के साथ साथ धुमैले से भूरे रंग में बदल जाते है| डंठल तथा तने पर भी घावों का विकास हो सकता है, जिसके कारण पौधे के प्रभावित भागों को हानि पहुँचती है| प्रभावित पौधों पर लक्षण पल भर में आ जाते हैं, जैसे धंसे निष्क्रिय व धुंधले चिन्ह जो बाद में विलय होकर गले हुए क्षेत्र बनाते हैं| कई संक्रमित फलों का गुद्दा सड़ जाता है|

लीफ स्पॉट- बिगड़े हुए हरे रंग के घाव, कोणीय से अनियमित आकार, बाद में धूमैला-भूरा हो जाना, इस रोग के विशिष्ट चिन्ह है| कई संक्रमित पत्ते अपरिपक्व स्थिति में ही गिर जाते हैं, परिणामस्वरूप बैंगन की फसल में फलों की उपज कम हो जाती है|

पत्तों के अल्टरनारिया धब्बे- इस रोग के कारण गाढे छल्लों के साथ पत्तों पर विशेष धब्बे पड़ जाते हैं| ये धब्बे अधिकतर अनियमित होते हैं तथा संगठित होकर पत्ते की धर का काफी बड़ा भाग ढक देते हैं, गंभीर रूप से प्रभावित पत्ते गिर जाते हैं| प्रभावित फलों पर ये लक्षण बड़े गहरे छिपे धब्बों के रूप में होते हैं| संक्रमित फल पीले पड़ जाते हैं तथा पकने से पहले ही टूट के गिर जाते हैं|

बैंगन की फसल में फल सडन- बैंगन की फसल में अत्याधिक नमी के कारण इस रोग का विकास होता है| पहले फल के ऊपर एक छोटा पानी से भरा जख्म एक लक्षण के रूप में उभरता है, जो बाद में काफी बड़ा हो जाता है| संक्रमित फलों का छिलका भूरे रंग में बदल जाता है तथा सफेद रुई जैसी उपज का विकास हो जाता है|

वर्टीसीलिअम विल्ट- यह रोग बैंगन की फसल में युवा पौधों के साथ साथ परिपक्व पौधों पर भी हमला करता है| संक्रमित युवा पौधे बोने रह जाते हैं तथा जड़ की गांठों के छोटा रह जाने की वजह से इनकी वृद्धि रुक जाती है| ऐसे पौधों के न फूल होते हैं न फल, फूल आने के बाद होने वाले संक्रमण के कारण विकृत फूलों की कलियों तथा फलों का विकास होता हैं|

यह भी पढ़ें- खीरे की जैविक खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

अंततः संक्रमित फल गिर जाते हैं, संक्रमित पत्तों के पर्णदल पर अनियमित रूप से बिखरे हुए परिगालित हलके पीले धब्बे होते हैं, बाद में, ये धब्बे संगठित होकर पत्तों को कमजोर कर देते हैं| यदि जाइलम वाहिकायें पाई जाती हैं, तो संक्रमित पौधों की जड़े लम्बाई में विभाजित हो जाती हैं व उसका एक विशेष गहरे भूरे रंग में मलिनकिरण हो जाता है|

बैक्टीरियल विल्ट- यह रोग बैंगन की फसल में बहुत गंभीर समस्याएं पैदा करता है| पत्तों के कमजोर पड़ने की वजह से पूरे पौधे का नष्ट हो जाना, इस रोग का गंभीर लक्षण हैं| कमजोरपन विशेषता धीरे धीरे, कई बार अचानक, पीलेपन, मुरझाने तथा पूरे पौधे या कुछ शाखाओं के सूख जाने से होता है| यह मिट्टी में जन्मे जीवाणुओं के कारण होता है और यह अक्सर भारी वर्षा के दौरान देखा जाता है|

बैंगन की फसल में लिटिल लीफ- यह बैंगन की फसल का एक गंभीर वायरल रोग है| यह रोग लीफ हॉपर द्वारा फैलता है| शुरूआती चरणों में संक्रमित पौधों के पत्ते हल्के पीले होते हैं| पत्तों का आकार छोटा हो जाता है और ये विकृत हो जाते हैं| रोग से संक्रमित पौधे आकार में छोटे होते हैं तथा स्वस्थ पौधों की अपेक्षा अधिक संख्या में शाखाओं, जड़ों और पत्तों के धारक होते हैं| डंठल काफी छोटा हो जाता है, कई कलियाँ डंठल तथा पत्तों के बीच के भाग में निकलने लग जाती हैं और गांठों के बीच तने की लम्बाई छोटी होने लगती है|

इसलिए पौधा देखने में घना व जंगली हो जाता है| फूलों वाला भाग विकृत हो जाता है, जिस के कारण पौधा बंजर बन जाता है| संक्रमित पौधे पर कोई भी फल नहीं लगता है| यदि कोई फल आता भी है, तो वह सख्त तथा कठोर हो जाता है और परिपक्व नहीं हो पाता है|

मोजेक- बैंगन की फसल का यह एक वायरल रोग है, जो आलू के वायरस द्वारा पैदा होता है तथा एफिड द्वारा फैलता है| इस रोग का प्रमुख लक्षण पत्तों पर पच्चीकारी धब्बे हो जाना तथा वृद्धि रुक जाना है| संक्रमित पौधों के पत्ते खराब हो जाते हैं, छोटे रह जाते हैं और कठोर हो जाते हैं| यदि पहले चरणों में ही पौधा संक्रमित हो जाता है, तो इसका विकास रुक जाता है|

यह भी पढ़ें- टमाटर फसल में जैविक विधि से कीट एवं रोग रोकथाम कैसे करें

बैंगन की फसल में जैविक कीट और रोग नियंत्रण

1. उस खेत में खेती नहीं करनी चाहिए जहाँ पिछली फसल भी बैंगन हो|

2. गर्मियों में गहरी जुताई करनी चाहिए ताकि बचे हुए प्यूपा सूरज की तपन से खत्म हो जाये|

3. पुरानी फसल के अवशेषों को नष्ट कर देना चाहिए|

4. नर्सरी के लिए जमीन से ऊँची उठी क्यारियां बनानी चाहिए|

5. ट्राइकोडर्मा के साथ बीज उपचार 4 ग्राम प्रति किलोग्राम की दर से या बीजों को गौमूत्र और हींग से उपचारित करना चाहिए|

6. 2.5 किलोग्राम ट्राइकोडर्मा विरडी को अच्छे से सड़ी गली गोबर खाद के साथ मिला कर खेतों में फैला देना चाहिए|

7. अंतिम जुताई के समय नीम की खली 100 किलोग्राम प्रति एकड़ डालनी चाहिए|

8. बैंगन की फसल के लिए प्रतिरोधी किस्मों का प्रयोग करना चाहिए|

9. पौधों को रोपने से पहले 30 मिनट के लिए हींग के घोल से (50 लीटर पानी में 100 ग्राम हींग) उपचारित करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- जैव नियंत्रण एकीकृत नाशीजीव प्रबंधन, जानिए आधुनिक तकनीक

10. पौधों के बीच की जगह को सूरजमुखी के फूलों से ढका जा सकता है, जिससे इसकी जड़ों के स्त्राव से बैंगन पर हमला करने वाले गोल कीड़ों से बचा जा सकता है|

11. ज्वार, बाजरा, मक्का की फसलों को सीमान्त पर 3 से 4 पंक्तियों में बोना या आवर्तन में शामिल करने से बैक्टीरिया के हमलों की घटनायों को कम किया जा सकता है|

12. बैंगन की फसल में फल आने के दौरान, यदि सूखी हुई टहनियाँ मिलती है, तो उनको तोड़ देना चाहिए, लारवा को ढूंढना चाहिए और नष्ट कर देना चाहिए|

13. बैंगन की फसल में पतंगों तथा सफेद मक्खियों को आकर्षित करने के लिए पीली चिपचिपी प्लेटों का प्रयोग भी किया जा सकता है|

14. टहनी और फल छेदक व्यस्क कीटों को पकड़ने के लिए रोशनी वाले जाल का प्रयोग करना चाहिए, क्यूंकि वे रात को ही सक्रिय होते हैं|

15. व्यस्क कीटों को समूह में पकड़ना, टहनी और फल छेदक के प्रबंधन का मुख्य पहलू है, जिसके लिए फेरोमोन जाल का प्रयोग कर सकते हैं|

16. बैंगन की फसल में जैसे ही कीटों का पता चल जाये, प्रभावित भागों को काट देना चाहिए तथा कीट सहित इसे नष्ट कर देना चाहिए, जिन भी फलों पर छिद्रक के चिन्ह नजर आयें, उन्हें तोड़ लेना चाहिए और नष्ट कर देना चाहिए|

17. टहनी और फल छेदक रोकथाम हेतु वनस्पति चरण के दौरान 1 लीटर पानी में 25 मिलीलीटर नीम का तेल मिला कर छिडकाव करने से कीटों को फसल पर अंडे देने से रोका जा सकता है, जब फेरोमोन जाल में कीट पकड़े जाये तब यह उपाय किया जा सकता है|

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18. बैंगन की फसल रोपण के 30 दिनों के बाद से लेकर फूलों के आने तक हर 10-15 दिनों के अंतराल मे एनएसकेई 5 प्रतिशत (100 लीटर पानी में 5 किलोग्राम नीम के बीज का गुद्दा) का छिडकाव करना चाहिए|

19. रोगों को रोकने के लिए, इनके पकड़े जाने के तुरंत बाद ही खट्टी छाछ या गौमूत्र के घोल या हींग के घोल का छिडकाव करना चाहिए|

20. फूलों को गिरने से रोकने के लिए छाछ और कच्चे नारियल के पानी के घोल को फूल आने के दौरान 10 दिन के अंतराल में दो बार प्रयोग करना चाहिए|

21. मिर्च-लहसुन के रस को टहनी और फल छिद्रक को नियंत्रित करने के लिए प्रयोग किया जा सकता है| परंतु इसका प्रयोग फसल काल के दौरान केवल दो बार ही करना चाहिए| मिर्च-लहसुन के रस को प्रयोग करने के 5 दिनों के बाद गोबर और गौमूत्र के घोल का प्रयोग करना चाहिए|

22. बैंगन की जैविक फसल में प्राकृतिक शत्रुओं जैसे परजीवियों को बढ़ावा देना चाहिए|

23. बैंगन की फसल में 3 से 4 जीवामृत के छिडकाव आवश्यकतानुसार सायंकाल के समय करे|

यह भी पढ़ें- जैविक कीटनाशक कैसे बनाएं, जानिए उपयोगी एवं आधुनिक तकनीक

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