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Home » नींबू वर्गीय फसलों के रोग और दैहिक विकार की रोकथाम कैसे करें

नींबू वर्गीय फसलों के रोग और दैहिक विकार की रोकथाम कैसे करें

July 17, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

नींबू वर्गीय फसलों के रोग और दैहिक विकार की रोकथाम कैसे करें

नींबू वर्गीय फसलों या फलों को अनेक रोग एवं दैहिक विकार हानी पहुंचाते है| नींबू वर्गीय फसलों या फलों के गमोसिस, सिट्रस केंकर, नींबू का स्केब, ग्रीनिंग, डाईबेक रोग, ट्रिस्टेजा विषाणु, नींबू का धीमा उखरा या क्षय रोग, कणिकायन विकार, फल फटन विकार और फूल व फलन का गिरना आदि प्रमुख रोग एवं दैहिक विकार है| जो नींबू वर्गीय फसलों में आर्थिक स्तर से अधिक नुकसान पहुंचाते है| जब इनका प्रकोप होता है, तो उत्पादन पर अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है और फल की गुणवत्ता भी प्रभावित होती है|

इसलिए यदि कृषक बन्धु अपने नींबू वर्गीय फसलों के बागों से इच्छित उपज लेना चाहते है, तो इन सब रोगों एवं दैहिक विकारों की समय पर रोकथाम करनी चाहिए| इस लेख में बागान बन्धुओं के लिए नींबू वर्गीय फसलों के रोग एवं दैहिक विकारों की रोकथाम कैसे करें, की जानकारी का उल्लेख किया गया है| नींबू वर्गीय फसलों की बागवानी वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें

नींबू वर्गीय फसलों के रोग और रोकथाम

गमोसिस- यह नींबू वर्गीय फसलों की एक कवक जनित बीमारी है| इस रोग के प्रमुख लक्षण तने की छाल में सड़न, गोंद निकलना, जड़ों का सड़ना और पत्तियाँ पीली होकर पौधा सूखने लगता है| कवक के बीजाणु मिट्टी में पड़े रहते हैं, जो नमी प्राप्त होने पर तने में संक्रमण फैलाते हैं|

रोकथाम-

1. रोगरोधी मूलवृन्त का प्रयोग जैसे- सिट्रस वोल्कामेरियाना, सिट्रमिलों ट्रायर, खट्टी नारंगी, ट्राइफोलिएट ऑरेन्ज पर कलिकायन करनी चाहिए|

2. मूलवृन्त पर कलिकायन 9 इंच ऊपर से करें|

3. नींबू वर्गीय फसलों के थालों में जल निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए|

4. नींबू वर्गीय फसलों की अनियमित कटाई-छटाई से बचे|

5. तने पर रिडोमिल गोल्ड का या ट्राइकोडर्मा हरजेनियम की 100 ग्राम मात्रा का लेप करें उसके पश्चात् अलसी का तेल चारों ओर लगाये|

6. फरवरी से मार्च तथा जुलाई से अगस्त में थालों में मिट्टी के अंदर रिडोमिल गोल्ड 25 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर गीला करें|

7. अप्रैल व सितम्बर माह में पौधे व तने पर मेटालेक्सिल या फोसेटाइल एल 80 प्रतिशत डब्लू पी कवकनाशी का छिड़काव करें|

8. उपरोक्त दवाओं के अभाव में कॉपर ऑक्सीक्लोराइड का गाढ़ा घोल बनाकर मार्च व अक्टूबर माह में तने पर लेप करें|

यह भी पढ़ें- नींबूवर्गीय फलों के प्रमुख कीट और उनकी रोकथाम कैसे करें

सिट्रस केंकर- यह जीवाणु जनित बीमारी नींबू वर्गीय फसलों की मुख्य बीमारी है| इस बीमारी को पर्ण सुरंगक कीट फैलाता है| इसके संक्रमण से पत्तियों, फलों पर कत्थई रंग के गोल गहरे धब्बे दिखाई देते है| ये धब्बे सूखकर कठोर हो जाते हैं| अधिक संक्रमण पर यह फलों पर भी दिखाई देता है| नई पत्तियों पर यह दाग पीछे की ओर भी देखने को मिलते हैं|

रोकथाम-

1. नींबू वर्गीय फसलों की रोग ग्रस्त शाखाओं को काटकर नष्ट कर देना चाहिए|

2. पौधे पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 3 ग्राम प्रति लीटर के साथ 10 मिलीग्राम प्रति लीटर मात्रा स्ट्रेप्टोसाइक्लिन की मिलाकर प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहरावें|

3. नींबू वर्गीय फसलों की रोग अवरोधी किस्मों का उपयोग करें|

4. पर्ण सुरगंक कीट का नियंत्रण ट्राइजोफॉस 40 ई सी 2 से 3 मिलीलीटर प्रति लीटर कीटनाशक दवा के छिड़काव से करें|

नींबू का स्केब- यह कवक जनित बीमारी है| इस बीमारी के लक्षण सिंट्स केंकर बीमारी से मिलते जुलते होते हैं| इस रोग से ग्रसित पौधे में पत्तियों, फल तथा नई शाखाओं पर भूरे रंग के छोटे दाग दिखाई पड़ते हैं| इस रोग का प्रकोप सितम्बर माह में ज्यादा होता है|

रोकथाम- पौधों पर कॉपर आक्सीक्लोराइड की 3 ग्राम मात्रा का प्रति लीटर पानी में घोल तैयार करके छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- नींबूवर्गीय फसलों में समन्वित रोग एवं कीट नियंत्रण कैसे करें

ग्रीनिंग- इस रोग से प्रभावित नींबू वर्गीय फसलों के पौधों की पत्तियाँ छोटी व ऊपर की ओर बढ़ जाती है| कभी-कभी पौधों की पत्तियों की शिराओं में पीलापन दिखाई देता है| सम्पूर्ण पौधा पीलापन लिये होता है, इसलिए यह बीमारी ग्रीनिंग कहलाती है| इस बीमारी को सिल्ला कीट फैलाता है|

रोकथाम-

1. नींबू वर्गीय फसलों से रोग ग्रस्त छोटे पौधे को उखाड़कर नष्ट करें|

2. नर्सरी में स्वस्थ पौधों को ग्रसित पौधों से अलग रखे|

3. सिट्रस सिल्ला कीट की रोकथाम के लिए थायोमेथॉक्साम कीटनाशक 25 डब्लू जी 3 ग्राम प्रति 10 लीटर पानी में घोलकर 10 दिन के अंतराल पर छिड़काव करें|

4. ऑक्सिडिमेटॉन मिथाईल 1 मिलीलीटर प्रति लीटर या ऐसिटाएम्प्रिड 0.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर भी दवा छिड़क सकते हैं|

डाईबेक रोग- नींबू वर्गीय फसलों में इस रोग के फैलने के कई कारण है जैसे- रोगकारक कवक द्वारा, कीटों का संक्रमण, पौषक तत्वों का असंतुलन, वातावरण में बदलाव, शस्य क्रियाओं से छेड़छाड, अनियमित छंटाई, निराई-गुड़ाई गहरी करना, नमी का अभाव आदि| इस रोग में पौधे की शाखा ऊपर से नीचे की ओर सूखना प्रारम्भ होती है| रोग ग्रस्त पौधे में फूल व फलन कम प्राप्त होता है|

रोकथाम-

1. रोग ग्रस्त शाखाओं को काटकर नष्ट कर देना चाहिए|

2. कटे भागों पर बोर्डो मिश्रण का लेप करना चाहिए|

3. नींबू वर्गीय फसलों की कटाई-छटाई दिसम्बर माह में ही करें|

4. जड़ों में गहराई से निराई ना करें|

5. 15-15 दिन के अन्तराल पर कॉपर ऑक्सीक्लोराइड की 2 ग्राम मात्रा को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

ट्रिस्टेजा विषाणु- संक्रमित पौधों की पत्तियों में विभिन्न पोषक तत्वों की कमी के लक्षण दिखाई देते हैं और धीरे-धीरे पत्तियाँ गिरने लगती हैं| जड़ों में सड़न शुरू हो जाती हैं| कभी-कभी टहनियाँ भी सूख जाती है| इससे प्रभावित पौधे में फूल अधिक आते हैं| अत्यधिक संक्रमण पर गोद निकलने लगता है| इस विषाणु को माहू या एफिड कीट फैलाता है|

रोकथाम-

1. रोग अवरोधी मूलवृन्त का उपयोग करे जैसे- क्लियोपट्रा मैन्ड्रिन, रंगपुर लाइम, ट्राईफॉलिएट ऑरेन्ज आदि|

2. माहू कीट की रोकथाम के लिए एसीफेट 75 प्रतिशत एस पी नामक कीटनाशक का 2 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

नींबू का धीमा उखरा या क्षय रोग- यह रोग नींबू वर्गीय फसलों के पौधों में सूत्रकृमि के द्वारा फैलता है| सूत्रकृमि पौधों की जड़ों से चिपका रहता है और जैली जैसा चिपचिपा पदार्थ छोड़ता है| पौधों में ज्यादा रोग बढ़ने से जड़ों की छाल जड़ से अलग हो जाती है| इस प्रकार जड़ सूखने के कारण पौधा डाई बेक जैसे लक्षण दिखाता है| पत्तियां पीली व छोटी हो जाती है| फल कम व छोटे आकार के दिखाई देते हैं|

रोकथाम-

1. नींबू वर्गीय फसलों के प्रमाणित नर्सरी से पौधे खरीदे|

2. सौर उपचार द्वारा मिट्टी का उपचार करें|

3. नर्सरी से पौधे लेने के बाद जड़ों को 25 मिनट तक 47 डिग्री सेल्सियस ताप वाले पानी में भिगोकर उपचारित करें|

4. नीम की खली एक किलोग्राम प्रति पौधा या 350 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर मिट्टी में मिलाये या थॉलों में कार्बोप्यूरान 4 जी का भुरकाव करें|

5. सूत्रकृमिनाशक दवाओं को समय-समय पर बदलकर थालों में प्रयोग करें, जैसे- आकसिम कार्बोमेट – ऑक्सीमाईल कार्बनिक फॉस्फेट – फिनेमिफॉस कार्बोप्यूरान, केडूसाफॉस 1 से 3 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर करें|

6. गैदे के फूल को अन्तराशस्य के रूप में लगाये|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की उन्नत बागवानी के लिए वर्ष भर के कार्य

नींबू वर्गीय फसलों के दैहिक विकार

कणिकायन- यह विकार नींबू वर्गीय फसलों में पौषक तत्वों की कमी के कारण उत्पन्न होता है| इस रोग के लक्षण में फल कठोर, सूखे व काटने पर रस रहित होते है| फल का छिलका कठोर व मोटा हो जाता है|

रोकथाम-

1. नाइट्रोजन का सीमित मात्रा में प्रयोग करें|

2. समय-समय पर कटाई-छंटाई करें|

3. बड़े आकार के फलों की तुड़ाई कर विरलन करें|

4. जिब्रेलिक अम्ल की 15 मिलीग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर सितम्बर से अक्टूबर माह में छिड़काव करें|

5. कैल्शियम नाइट्रेट 3 से 5 ग्राम प्रति लीटर जिंक सल्फेट 3 से 5 ग्राम प्रति लीटर, कॉपर सल्फेट 3 से 4 ग्राम प्रति लीटर, फेरस सल्फेट 3 से 4 ग्राम प्रति लीटर, मैगनीज 3 ग्राम प्रति लीटर, बोरोन 4 ग्राम प्रति लीटर पानी के मिश्रण का घोल तैयार कर 10 दिन के अंतराल पर 3 से 4 पर्णीय छिड़काव करके नियमित सिंचाई करें|

यह भी पढ़ें- बागवानी पौधशाला (नर्सरी) की स्थापना करना, देखभाल और प्रबंधन

फल फटन- फल फटन एक दैहिक विकार है, जो नींबू वर्गीय फसलों में निम्न कारणों से होता है, जैसे-अनियमित सिंचाई, समय पर सूक्ष्म तत्वों का प्रयोग न करना, फूल व फलन का समय क्षेत्र विशेष की जलवायु के आधार पर चयनित न करना आदि|

रोकथाम-

1. नींबू वर्गीय फसलों की उचित समय पर सिंचाई करें|

2. वर्ष में तीन बार जिब्रेलिक अम्ल 10 मिलीग्राम प्रति लीटर या पोटेशियम सल्फेट 4 ग्राम प्रति लीटर का छिड़काव अप्रैल, मई तथा जून में करें|

3. वर्षा ऋतु वाले फलन का चुनाव करने पर जल निकास की उचित व्यवस्था करें|

फूल व फलन का गिरना- यह एक गंभीर समस्या है, किसान के लिये कि फूल व फल प्राकृतिक रूप से गिर जाते है या दैहिक विकारों के द्वारा ऐसा होता हैं| यह असन्तुलन तब होता है, जब वे अधिक मात्रा में गिरते हैं| अधिक मात्रा में गिरने के निम्नलिखित कारण होते हैं, जैसे- पौषक तत्वों की कमी, फलों की वृद्धि के समय थालों में नमी की कमी, अचानक अधिक तापमान का होना, कीट व रोगों का अधिक प्रकोप, ऑक्सिन हार्मोन का असन्तुलन, थालों में अधिक पानी भरना आदि प्रमुख है|

रोकथाम-

1. मिट्टी व पत्ती परीक्षण के आधार पर पोषक तत्वों का उपयोग करना चाहिए|

2. उचित नमी सदैव बनाए रखना चाहिए|

3. सूक्ष्म पोषक तत्व जिंसो4 की 4 ग्राम प्रति लीटर या कॉपर सल्फेट का 3 ग्राम प्रति लीटर का 15-15 दिन के अंतराल पर फूल व फलन के समय पर्णीय या पत्तियों की ऊपरी सतह पर छिड़काव करें|

4. अगर फूल व फलन की मात्रा कम हो या कम आती है या गिरते है इन सभी दशाओं में 2, 4डी 1 ग्राम प्रति 100 लीटर पानी में घोलकर या ना. 1 एम एल प्रति 5लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- बागों के लिए हानिकारक है पाला, जानिए प्रकार एवं बचाव के उपाय

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