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जरबेरा की खेती: किस्में, बुवाई, खाद, सिंचाई, देखभाल और पैदावार

June 19, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

जरबेरा की खेती

जरबेरा बहुवर्षीय कर्तित पुष्प वर्ग का पौधा है| इसकी उत्पत्ति स्थल अफ्रीका को माना जाता है| जरबेरा पुष्प की खेती अलंकृत बागवानी में सजावट एवं गुलदस्ता बनाने के लिए की जाती है| छोटी किस्म की प्रजातियों को गमलों में सुन्दरता के लिए भी उगाया जाता है| इसके कर्तित पुष्प लगभग एक सप्ताह तक तरोताज़ा बने रहते हैं| इसकी लगभग 70 प्रजातियाँ हैं| जिसमें 7 का उत्पत्ति स्थल भारत या आस पास का माना गया है|

जरबेरा की खेती विश्व में नीदरलैण्ड, इटली, पोलैण्ड, इजरायल और कोलम्बिया में की जा रही है| भारत में इसकी खेती व्यवसायिक स्तर पर घरेलू बाजार में बेचने हेतु की जा रही है| धरेलू पुष्प बाजारों में जरबेरा कट फ्लावर की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है| इसके प्रजातियों को सिंगल, सेमी डब्बल और डबल वर्गों में विभाजित किया गया है|

जरबेरा कट फ्लावर व्यवसाय में डब्बल प्रजातियों की मांग सर्वाधिक है| यदि उत्पादक बन्धु जरबेरा की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में जरबेरा की खेती उन्नत तकनीक से कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है|

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उपयुक्त जलवायु

इसके पौधों की अच्छी वृद्धि एवं विकास के लिए दिन का तापमान 20 से 25 सेंटीग्रेड तथा रात का तापमान 12 से 15 डिग्री सेंटीग्रेड अच्छा माना गया हैं| लेकिन जिन स्थानों का तापमान कुछ दिनों के लिए गर्मी के महीनों में 30 से 35 सेंटीग्रेड तथा जाड़े के महीनों में रात को न्यूनतम तापमान 3 से 4 सेंटीग्रेड तक जाता हो, वहां पर भी इसकी खेती की जा सकती हैं|

इसका 12 घण्टे की प्रकाश अवधि में अच्छा पुष्प उत्पादन पाया गया है| मैदानी तथा पहाड़ी क्षेत्रों में इसकी खेती पॉलीहाउस में ही सफलतापूर्वक की जा सकती है| लेकिन कटीबन्धी तथा उष्ण-कटबंधीय वातावरण में जहाँ पर ठंड हो वहाँ पर भी इसकी खेती की जा सकती हैं|

भूमि का चयन

जरबेरा की खेती लगभग हर प्रकार की मिट्टी में की जा सकती हैं| इसकी जड़े 30 सेंटीमीटर गहराई तक जाती हैं| बलुई दोमट मिट्टी जिसका पी एच मान 6 से 7 हो तथा जीवांश पदार्थ की प्रचूर मात्रा के साथ साथ जल निकास का उचित प्रबन्ध हो, सर्वोत्तम पायी गई हैं| यदि बलुई दोमट मिट्टी नहीं हैं, तो चिकनी मिट्टी में जीवांश पदार्थ (गोबर की खाद या पत्तियों की सड़ी खाद) अधिक मात्रा में तथा बालू मिटटी क्यारी बनाने से पहले मिला देते हैं| क्यारीयां बनाने से पहले मिट्टी की 30 से 40 सेंटीमीटर गहरी खुदाई करके भुरभुरा तथा खरपतवार रहित कर लेते हैं|

खेत की तैयारी

पौध रोपण के 15 से 20 दिन पहले मृदा परीक्षण परिणाम के आधार पर आवश्यतानुसार जीवांश पदार्थ तथा रासायनिक उर्वरक मिट्टी में डाल कर 15 से 20 सेंटीमीटर गहराई तक अच्छी तरह मिला देते हैं| मिट्टी की सक्रांमक शुद्धि के लिए फार्मेल्डिहाइड के 2.0 प्रतिशत सान्दता का घोल बनाकर मिट्टी में ड्रेन्चिंग करके पॉलीथीन से 2 से 3 दिनों के लिए मिट्टी को ढक देते हैं| पॉलीथीन को मिट्टी की सतह से हटाने के बाद 6 से 7 दिनों के लिए मिट्टी को खुल्ला छोड़ देते हैं|

अच्छी तरह तैयार भुरभुरी मिट्टी में 1.0 से 1.2 मीटर चौड़ाई की और 25 30 सेंटीमीटर ज़मीन की सतह से उठी क्यारियाँ बनानी चाहिए| क्यारी की लम्बाई सुविधानुसार रखनी चाहिए तथा दो क्यारियों के बीच में 30 सेंटीमीटर चौड़ा रास्ता छोड़ना चाहिए| पौध रोपण के एक सप्ताह पहले क्यारियों की हल्की सिंचाई कर देते हैं, जिससे फार्मेल्डिहाइड गैस की सान्द्रता कम हो जाए तथा मिट्टी में हल्की नमी बनी रहे|

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उन्नत किस्म

जरबेरा की व्यापारिक खेती के लिए निम्नलिखित किस्मों को लगाया जाता है| जो इस प्रकार है, जैसे- डस्टी (लाल), फ्लेमिन्गो (पेल रोज), फ्रेडेजी (गुलाबी), फ्रेडकिंग (पीला), फ्लोरिडा (लाल), मारोन क्लेमेन्टीन (नारंगी), नाडजा (पीला), टैराक्वीन (गुलाबी), यूरेनस (पीला), वेलेन्टाइन (गुलाबी), वेस्टा (लाल) आदि प्रमुख है|

प्रवर्धन की विधि

जरबेरा का प्रवर्धन बीज तथा वानस्पतिक भागों द्वारा किया जाता है| बीज द्वारा प्रवर्धन नयी जातियों को विकसित करने के लिए किया जाता है| वानस्पतिक विधि द्वारा प्रवर्धन करने से पौधे पैतृक जैसे ही उत्पादित होते हैं| इस विधि द्वारा जरबेरा का प्रवर्धन कलम्प विभाजन द्वारा किया जाता है| कलम्प विभाजन विधि द्वारा कम समय में बड़े पैमाने पर पौधों को तैयार नहीं किया जा सकता है| बड़े पैमाने पर रोगमुक्त पौधे उत्तक संवर्धन विधि द्वारा तैयार किये जाते है|

कलम्प विभाजन- पहाड़ी क्षेत्रों में जरबेरा के कलम्प का विभाजन सितम्बर के पहले सप्ताह तथा मैदानी क्षेत्रों में जून से जुलाई में किया जाता है| कलम्प विभाजन के बाद तथा पुनः कलम्प को रोपित करने से पहले कलम्प से कुछ पत्तों के उपरी आधे हिस्से को काट देना चाहिए, केवल दो से तीन नये पत्ते रखे जाते हैं| कलम्प को लगाने में यह सावधानी रखी जाती है, कि कलम्प के बीच का भाग मिट्टी में नहीं दबना चाहिए|

पौध उखाड़ने तथा कलम्प विभाजन के बाद कलम्पों को पॉलीथीन बैग में लगाकर पॉलीहाउस में जिसका तापमान 18 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तथा आर्द्रता 80 प्रतिशत तक हो, वहाँ पर रखना चाहिए| इस विधि द्वारा 15 से 20 दिनों में पौधे क्यारी में स्थानान्तरण के लिए तैयार हो जाते हैं| पौध रोपण के तुरन्त बाद जो फूल आते हैं, उन्हें शुरु में तोड़ देते हैं| जब तक पौधे पर कम से कम 6 से 7 बड़ी आकार की पत्तियों न हो जाएं तब तक पुष्प उत्पादन नहीं किया जाता है|

उत्तक संवर्धन- बड़े पैमाने पर कम समय में रोगमुक्त जरबेरा की पौध सामग्री तैयार करने की यह सर्वोत्तम विधि है| उत्तक संवर्धन विधि द्वारा जरबेरा का पौधा शूट टिप, फ्लावर बड, फ्लावर हेड, लीव्स, मिडरिब्स, पेटियोल इत्यादि भागों द्वारा तैयार किया जाता है| इस विधि द्वारा जरबेरा की पौध सामग्री व्यवसाय के तौर पर हमारे देश में कई कम्पनियों के द्वारा उत्पादित कि जा रही है|

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पौध रोपण एवं विधि

वातावरण अनुकूल होने पर जरबेरा का पौध रोपण पूरे वर्ष किया जा सकता हैं| सामान्य तौर पर इसका पौध रोपण जून से सितम्बर तथा फरवरी से मार्च तक किया जाता है| पौध से पौध एवं पंक्ति से पंक्ति का फासला 33 से 40 सेंसेंटीमीटर रखा जाना चाहिए| पौध रोपण का फासला बढ़ाने पर पुष्प की उपज कम हो जाती है तथा बहुत ही कम फासला करने पर पुष्प गुणवत्ता में कमी आ जाती है और रोग लगने की अनुकूल परिस्थिति पैदा हो जाती हैं|

पौध रोपण करते समय विशेष तौर पर यह ध्यान देना चाहिए कि पूर्ण तरीके से जड़ वाला भाग जमीन के अन्दर चला जाए लेकिन पौधे के बीच में जहाँ से नई पत्तियाँ निकलती हैं, वह जमीन के अन्दर नहीं जाना चाहिए| पौध रोपण का कार्य सायंकाल में करना चाहिए| रोपाई के तुरन्त बाद सिंचाई कर देनी चाहिए ताकि जड़ों एवं मिट्टी के बीच कोई फासला न रहे अन्यथा पौधों के मरने की स्थिति पैदा हो जाती हैं|

पोषण प्रबंधन

जरबेरा की पौध को अच्छी वद्धि एवं विकास के लिए लगातार पोषक तत्व की आवश्यकता पड़ती है| लेकिन कभी भी एक साथ अधिक मात्रा में पोषक तत्व की मात्रा पौधों को नहीं देना चाहिए| पौध रोपण के बाद तब तक उर्वरक देना शुरु नहीं करते हैं, जब तक पौधों में नई वृद्धि शुरु न हो जाए| पोषक तत्वों जैसे नत्रजन, फास्फोरस तथा पोटाश के लिए घुलनशील ग्रेडेड विभिन्न प्रतिशत वाले रासायनिक उर्वरक जैसे 13:13:13, 19:19:19 तथा 0:0:57 का इस्तेमाल किया जाता है|

नत्रजन के लिए कैल्शियम अमोनियम नाइट्रेट का भी प्रयोग किया जाता है| ज़रुरत पड़ने पर सूक्ष्म पोषक तत्वों का छिड़काव पौधों पर किया जाता है| इन उर्वरकों या सूक्ष्म पोषक तत्वों की मात्रा पौधों की वृद्धि एवं विकास के उपर काफी हद तक निर्भर करती है|

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सिंचाई प्रबंधन

जरबेरा की खेती में पौधों की बढ़वार के लिए सिंचाई का विशेष महत्व है| मिट्टी की पौध रोपण से पहले हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए तथा पौध रोपण के उपरान्त भी सिंचाई करनी चाहिए| क्योंकि मिट्टी की उपरी सतह पर पोषक तत्वों को अर्जित करने वाली जड़ों का विकास होता है, इसलिए यह आवश्यक है, कि उपरों 30 सेंटीमीटर की सतह में लगातार नमी बनी रहे|

क्यारियों में पानी का जमाव बिल्कुल नहीं होना चाहिए| शुष्क मौसम में प्रतिदिन हल्की सिंचाई करनी चाहिए| जरबेरा के पूर्ण विकसित एक पौधे को 700 से 1000 मिलीलीटर पानी की प्रतिदिन आवश्यकता पड़ती है| सिंचाई के पानी का पी एच मान 6.5 से 7.0 तथा ई सी 0.5 से 1.2 तक लाभकारी पाया गया हैं|

खरपतवार नियंत्रण

जरबेरा के अच्छे उत्पादन के लिए महीने में एक बार निराई-गुड़ाई कर देनी चाहिए| जिससे खरपतवारों के साथ-साथ मिटटी में उपस्थित कवक एवं जीवाणु बढ़ नही पते है| खरपतवारों के नियंत्रण के लिए खरपतवारनाशियों प्रयोग न करके खुरपी से खरपतवार निकालने चाहिए|

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कीट एवं रोकथाम

व्हाईट फ्लाई- यह एक प्रकार का रस चूसने वाला कीट है| इसके अत्याधिक प्रकोप के कारण पौधों की बढ़वार और फूलों की गुणवत्ता पर बुरा असर पड़ता है| व्हाईट फ्लाई के द्वारा बहुत सारे विषाणु एक पौध से दूसरे पौध पर स्थानांतरित होते हैं|

रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए सार्प नामक कीटनाशक दवा का 0.3 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए और दूसरा छिड़काव 12 से 14 दिनों के अन्तराल पर इण्डोसल्फान 1.5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर पत्तियों के निचले एवं पौधों के समस्त भाग पर करना चाहिए|

थ्रिप्स- यह भी एक प्रकार का रस चूसने वाला कीट हैं| इसका सीधा प्रभाव पुष्प की गुणवत्ता पर पड़ता है तथा बाजार में इस प्रकार के पुष्पों की कीमत कम मिलती है|

रोकथाम- इस पर नियंत्रण के लिए समय समय पर इण्डोसल्फान एवं मैलाथियान का छिड़काव 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी में घोलकर करना चाहिए|

एफिड्स- एफिड्स नई पत्तियों या पुष्य इण्डियों पर रहते हैं और जरबेरा की फसल को नुकसान पहुचाते है| जिससे उत्पादन कम हो जाता है|

रोकथाम- इनकी रोकथाम के लिए मैलाथियान या इण्डोसल्फान का छिड़काव 2.0 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी के साथ घोलकर करना चाहिए|

लीफ माइनर- लीफ माइनर काला एवं पीले रंग का होता है| इसके नर एवं मादा दोनों पौधों को नुकसान पहुंचाते हैं| जरबेरा में इसका प्रकोप बहुत देखने को मिलता है| यदि समय पर इसका नियन्त्रण न किया गया तो कुछ समय बाद जरबेरा का पौधा मर भी जाता है|

रोकथाम-  इसकी रोकथाम के लिए 1.2 मिलीलीटर रोगर प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

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रोग एवं रोकथाम

रूट रॉट- रूटराट से प्रभावित पौधों की पत्तियों में रेडिस बाइलेट रंग तथा बाद में नेक्रोटिक एरिया विकसित हो जाता है| इसका प्रकोप वहाँ पर कम देखा गया है| यदि पौध रोपण से पहले मिट्टी का संक्रामक शुद्धि कर दिया जाए|

रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए डाईथेन एम- 45 एक लीटर पानी में 2.0 ग्राम की दर से घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

फ्यूजेरियम- फ्यूजेरियम से ग्रसित पौधों की पत्तियों पीली पड़ जाती हैं और कुछ समय बाद पत्तियाँ सूख जाती हैं|

रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए बाविस्टीन 1.2 ग्राम प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए| पौध रोपण से पहले पौधों को 0.2 प्रतिशत बिनोमोल के घोल में 30 मिनट के लिए डुबोकर उपचारित करना चाहिए|

पाउडरी मिल्ड्यू- पाउडरी मिल्ड्यू का प्रकोप होने पर पत्तियों पर सफेद रंग का पाउडर जमा हो जाता है|

रोकथाम- इसकी रोकथाम के लिए कैराथेन 1.0 मिलीलीटर प्रतिलीटर पानी में घोलकर छिड़काव करना चाहिए|

विषाणु रोग- विषाणु पौधों की गुणवत्ता को धीरे धीरे कम कर देते है| जरबेरा में कुकुम्बर मोजेक, टोबॅको रैटल, टोवरावाइरस, टोमेटो स्पोटेड विल्ट वाइरस इत्यादि का प्रकोप देखा गया है|

रोकथाम- विषाणु रोग के बचाव के लिए रोगमुक्त पौधा ही नर्सरी से खरीदना चाहिए और रोग ग्रसित पौधों को उखाड़ कर जमीन के अन्दर दबा दें या जला देना चाहिए|

यह भी पढ़ें- पौधों का प्रवर्धन कैसे करें

पुष्प की कटाई

गुणवत्ता युक्त जरबेरा पुष्प उत्पादन पौध रोपण के 5 से 6 महीने बाद शुरु हो जाता हैं| जरबेरा का फूल जब पूर्ण रूप से खिल जाए, उसी दिन उन पुष्पों की कटाई कर लेनी चाहिए| यदि फूलों को काटने की सही अवस्था से पहले काट दिया गया, तो फूलों का रंग एवं आकार भली भांति विकसित नहीं हो पाता है और यदि खिले फूलों को बिलम्ब करके काटा गया तो फूल की गुणवत्ता घट जाती है| काटने के बाद फूलों की डण्डियों को तुरन्त पानी भरे बाल्टी में रखना चाहिए|

पैदावार 

उपरोक्त वैज्ञानिक विधि से खेती करने पर जरबेरा पुष्प की उपज 30 से 35 पुष्प डण्डियां प्रतिवर्ष प्रति पौधा पॉलीहाउस के अंदर उगाई गई फसल से प्राप्त की गई है। पुष्प की कटाई के उपरान्त पुष्प इण्डियों को 3 से 4 लीटर पानी से भरे बाल्टी में रखकर ग्रेडिंग हाल में ले जाते हैं|

श्रेणीकरण एवं पैकिंग

जरबेरा के फूलों का श्रेणीकरण पुष्प की डण्डी की लम्बाई, पुष्प के आकार एवं ताजगी के आधार पर किया जाता हैं| जैसे 40, 50, 60, 70 सेंटीमीटर लम्बी इण्डियों को पुष्प के आकार के आधार पर विभिन्न ग्रेड में विभाजित किया जाता है| इसके पुष्प की पंखुड़ियाँ खराब न हो, इसके लिए उन्हें प्लास्टिक के एक छोटे आकार के एक बैग में एक पुष्प डण्डी के ऊपरी हिस्से को पैक कर दिया जाता है|

इस प्रकार 12 पुष्प डण्डियों को एक साथ मिलाकर जरबेरा का एक बन्च बनाया जाता है| एक बाक्स में 20 से 25 बन्चों को पैक करके घरेलू बाजारों में भेजा जाता है| बाक्स में पुष्प बंचों को न अधिक टाइट तथा न ही अधिक लूज़ भेजते हैं|

यह भी पढ़ें- अश्वगंधा की खेती, जानिए किस्में, देखभाल एवं पैदावार

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