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Home » आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च का उत्पादन कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च का उत्पादन कैसे करें

April 21, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च का उत्पादन कैसे करें

शिमला मिर्च की संरक्षित खेती एक आधुनिक तकनीक है| इसकी सब्जी हमारे भोजन का मुख्य और महत्वपूर्ण हिस्सा है| शिमला मिर्च में विटामिन ए व सी बहुतायात में पाया जाता है| शिमला मिर्च ठण्ड की फसल है लेकिन संरक्षित खेती में इसे पूरे साल उगाया जा सकता है| संरक्षित खेती में तापमान और नमी को आवश्यकतानुसार अनुकूलात्मक बदला जा सकता है|

शिमला मिर्च के लिए दिन में 25 से 30 डिग्री सेंटीग्रेड तथा रात का तापमान 18 से 20 डिग्री सेंटीग्रेड तक की आवश्यकता होती है| इस लेख में आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च का उत्पादन कैसे करें की जानकारी का विस्तृत उल्लेख है| शिमला मिर्च की सामान्य खेती की जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- शिमला मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लाभ

1. आधुनिक संरक्षित तकनीक से कीट व रोगों का आसानी से प्रबंध|

2. कृषि लागत का अधिक दक्षता से पौधों के द्वारा उपयोग|

3. बंजर पड़ी जमीन को भी खेती के लिए तैयार में लाना|

4. प्रति इकाई क्षेत्र में अधिक व उच्च गुणवता की उपज|

5. अनुकूल वातावरण में पूरे वर्ष सब्जियों की उपलब्धता|

6. बीज नर्सरी में बोने के कारण मुख्य खेत की तैयारी हेतु समय मिल जाता है|

7. कोमल तथा नाजुक पौधों की नर्सरी में आसानी से देखभाल की जा सकती है|

8. खेत में सीधी बुवाई की तुलना में पौध तैयार करने पर अपेक्षाकृत कम चीजों की जरूरत होती है, जिससे उत्पादन लागत में कमी आती है|

9. सब्जियों के बीज बहुत छोटे होते है, इसकी बुवाई बड़े क्षेत्रफल में करने से रखरखाव सम्भव नहीं हो पाता है|

10. पौधशाला में नर्सरी तैयार करने से भूमि की बचत की जा सकती है, मुख्य खेत की तैयारी करने हेतु पर्याप्त समय मिल जाता है, परिश्रम, बीज, लागत और समय की बचत हो जाती है|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए भूमि का चुनाव

वह स्थान जहां अधिक वर्षा होती है तथा अधिक नमी रहती है कीट व रोगों को बढ़ावा देने में सहायक होती है और वह स्थान जो ऊंचाई पर है संरचना को अधिक वायु वेग नुकसान पहुंचता है| इसलिए ऐसे क्षेत्र आधुनिक संरक्षित तकनीक हेतु उपयुक्त नहीं माने जाते| इसके लिए अच्छी जल निकास वाली बलुई दोमट मिटटी जिसका पीएच मान 6 से 7 होता है| उपयुक्त मानी जाती है|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए ग्रीन हाउस संरचना

स्थानीय जलवायु की दशा और सामग्री उपलब्धता के अनुसार ग्रीन हाउस संरचना तय की जा सकती है| हमारे देश में मुख्यतः शिमला मिर्च उगाने के लिए पॉलीहाउस और नेट हाउस का इस्तेमाल किया जाता है, जैसे-

नेट हाउस- आधुनिक संरक्षित तकनीक हेतु इस प्रकार का नेट हाउस दक्षिण भारत में शिमला मिर्च उगाने के लिए प्रयोग किया जाता है| इसके लिए 12 फिट उंचाई के सिमेंट के पिलर नेट हाउस को सहारा देने के लिए लगाये जाते है| जी आई खंम्बो के ऊपरी हिस्सों पर एक दूसरे खंम्बे से बांधा जाता है तथा इसके ऊपर सफेद रंग की एच डी पी ई 50 प्रतिशत पॉलीथिन चादर की परत बिछायी जाती है| आवश्कता के अनुसार हरे या काले रंग का भी इस्तेमाल किया जा सकता है|

पॉलीहाउस- पॉलीहाउस, नेट हाउस की तुलना में अधिक सुरक्षा देता है| क्योंकि यह वर्षा के पानी को इसके अंदर प्रवेश नहीं करने देता इसलिए पत्तियों पर लगने वाली बीमारी कम होती है| पॉलीहाउस में लगी शिमला मिर्च का उत्पादन नेट हाउस की तुलना में 15 से 25 प्रतिशत ज्यादा होता है| पॉलीहाउस के निर्माण के लिए जी आई खंम्बो का इस्तेमाल किया जाता है या इसके बदले लकडी के खम्बें भी इस्तेमाल किये जा सकते है| पॉलीहाउस की छत को ढकने के लिए यूवी प्रतिरोधक पोलीथीन का इस्तेमाल किया जाता है| पॉली हाउस की ऊंचाई लगभग 11 फीट होती है, पॉलीहाउस में जमीन से 3 फुट ऊंचाई पर 200 मीटर की हरे रंग की नेट फिल्म का इस्तेमाल किया जाता है|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में सब्जियों के कीट एवं रोग प्रबंधन हेतु भूमि उपचार कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए किस्मों का चुनाव

पॉलीहाउस में शिमला मिर्च की खेती के लिए संकर किस्मों का इस्तेमाल किया जाता है, ज्यादातर हाइब्रिड ग्रीन रंग की होती है, जों बाद में लाल या पीले रंग की हो जाती है, इसका रंग किस्मों पर आधारित है, शिमला मिर्च में कुछ अनुशंसित विशेषताएं होनी चाहिए जैसे फल का एकरूप आकार वा वजन (150 ग्राम), एक समान रंग, चार खानेदार भाग और खराब न होने की क्षमता (कम से कम 5 दिन), चुने हुये हाइब्रिड किस्म में 40 टन से अधिक उत्पादन देने की क्षमता होनी चाहिए| भारत में उंगाई जाने वाली कुछ हाइब्रिड जैसे- इंदिरा, बाम्बे, त्रिपल स्टार, यमुना, नताशा स्पाइरेशन, परसेला, सनीज स्वर्णा ओरोबेली मचाटा आदि प्रमुख है| किस्मों की अधिक जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- शिमला मिर्च की उन्नत व संकर किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए भूमि उपचार

1. आधुनिक खेती हेतु बनी हुई क्यारियों को ग्रीष्म ऋतु में 45 दिन तक साधारण पारदर्शी पॉलीथीन से ढककर रखा जायें, जिससे मिटटी जनित रोगों से काफी बचाव होता है, यह विधि मैदानी, निचले पर्वतीय व घाटी वाले क्षेत्रों के लिए अत्यधिक लाभदायक है, परन्तु मध्य हिमालयी क्षेत्रों जहां मौसम अपेक्षाकृत ठण्डा होता है, गर्मियों में तापमान 30 से 32 डिग्री सेंटीग्रेड से अधिक नहीं हो पाता, यहां यह विधि इतनी ठीक नहीं है|

2. रासायनिक विधि से भूमि का उपचार करने के लिए कैप्टान नामक फंफूदनाशक सबसे अच्छी होती हैं| इसका 2.5 ग्राम प्रति लीटर पानी में घोल बनाकर भूमि शोधन किया जाता है| प्रति वर्गमीटर क्षेत्रफल में 5 से 6 लीटर पानी में 12.5 ग्राम दवा घोलकर भूमि को अच्छी तरह तर कर देते है तथा दूसरे-तीसरे दिन बाद बीज की बुवाई कर देते है|

3. फार्मलीन द्वारा भी भूमि का शोधन किया जाता है, इसके लिए बीज बुवाई के 15 से 20 दिन पूर्व 1.5 से 2.0 प्रतिशत फार्मलीन के घोल की 5 लीटर मात्रा प्रति वर्ग मीटर की दर से इस प्रकार डाले की मिटटी पूरी तरह 15 से 20 सेंटीमीटर गहराई में तर हो जाये फिर पांलीथीन से ढक देते है, जिससे गैस बाहर न निकले उपचार के एक दिन बाद पांलीथीन को हटा दें और गैस को क्यारी से निकलने के लिए 15 से 20 दिन खुला छोड देने के पश्चात बीज की बुवाई करें|

4. आधुनिक संरक्षित खेती हेतु जैविक विधि द्वारा पौधशाला की मिटटी का उपचार करने के लिए 100 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 10 किलोग्राम गोबर की खाद या कम्पोस्ट में मिलाकर नम करके ठण्डे स्थान पर एक माह के लिए रख देते है| इस तैयार खाद को भूमि की तैयारी के समय क्यारियों में मिला देते है| एक किलोग्राम तैयार खाद से प्रति वर्ग मीटर भूमि को उपचारित करके भूमि जनित रोगों के प्रकोप से पौधों को बचाया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- पॉलीहाउस में बेमौसमी सब्जियों की खेती, जानिए आधुनिक तकनीक

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए भूमि की तैयारी

आधुनिक संरक्षित खेती हेतु मिटटी में 20 से 25 किलोग्राम प्रति स्क्येवर मीटर की दर से जैविक खाद को मिलाना चाहिए, शिमला मिर्च को लगाने के लिए बेड साइज जो कि 90 से 100 सेंटीमीटर चौडी, 15 से 22 सेंटीमीटर ऊंची तथा लम्बाई आवश्यकतानुसार रखी जाती है| 2 बेड के बीच की जगह 45 से 50 सेंटीमीटर रखी जाती है, जिससे शस्य क्रिया आसानी से की जा सके|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए बीज और बीज शोधन

सफल आधुनिक संरक्षित खेती उत्पादन के लिये बीज आनुवांशिक रूप से शुद्ध, उच्च गुणवत्तायुक्त स्वस्थ और आकर्षक होना चाहिए| बीज के पैकेट पर अंकुरण क्षमता का मापदंड अंकित हो| बीज कीट व रोग रहित तथा उचित आर्द्रता युक्त होना चाहिए| सब्जियों में अधिकतर रोग मिटटी तथा बीज से फैलते है| इसलिए उपचार के लिए सब्जियों के बीजों को 50 डिग्री सेंटीग्रेड गर्म पानी में 30 मिनट तक के लिए डुबाते है, या फफूदीनाशक दवा जैसे कैप्टान या थाइम की 2.5 ग्राम या बाविस्टिन की 1.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से प्रयोग करते है|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए पौध तैयार करना

आधुनिक संरक्षित खेती हेतु अच्छी पौध तैयार करने के लिए उच्च गुणवत्ता का बीज होना आवश्यक है, पौध को प्रो-ट्रे में उगाया जाता है, एक प्रो-ट्रे में 98 खाने होते है| रोपाई के लिए 160 से 200 ग्राम बीज और 16000 से 20000 पौधों की आवश्यकता होती है| प्रो-ट्रे को किण्वीकृत कोकोपीट या क्ले-मिक्चर का उपयोग इसको भरने के लिए किया जाता है| प्रत्येक खाने में एक बीज डाला जाता है| बुआई के एक सप्ताह बाद प्रो-टे को पोलीहाउस में स्थानंतरित कर दिया जाता है|

15 दिनों के पश्चात मोनोअमोनियम फास्फेट 12:61:03 ग्राम प्रति लीटर और 22 दिन पश्चात घोल का छिडकाव करना चाहिए| पौध को उखाड़ने से पहले 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से सायकोसेल का छिडकाव करना चाहिए| लगभग 30 से 35 दिनों में पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते है| लेकिन रोपाई से पहले पौधों को इमाइडाक्लोप्रिड 0.2 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी से उपचारित करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- मिर्च व शिमला मिर्च की फसल में समेकित नाशीजीव प्रबंधन कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए पौध विरलीकरण

आधुनिक संरक्षित खेती में पौध रोपाई के बाद की यह एक मुख्य कृषि क्रिया है, जहां पर अस्वस्थ अनचाहे रोग कीट से ग्रसित पौधों को निकाला जाता है| कभी-कभी पौध संख्या अधिक होने पर यह विरलीकरण क्रिया पौध को उचित बढवार के लिए अच्छी सिद्ध होती है|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए पौध को सख्त बनाना

इस प्रकार की आधुनिक खेती हेतु पौध को मुख्य खेत में लगाने से 4 से 5 दिन पहले पानी देना बंद करना चाहिए| 4000 पी पी एम सोडियम क्लोराईड या 2000 पी पी एम साइकोसेल को सिंचाई जल के साथ मिलाकर उपचार देना चाहिए| तापमान सामान्य से कम कर देना चाहिए|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए पौध प्रतिरोपण

पौध जब 4 से 6 सप्ताह पुरानी या 10 से 15 सेंटीमीटर लम्बी और 3 से 4 पत्तियों वाली हो जाये तब इसकी रोपाई की जा सकती है| पौध रोपण से पूर्व ट्राइकोड्रमा या बाविस्टिन के घोल में 30 मिनट तक पौधे की जडो को डुबोकर उपचारित करना चाहिए| पौधरोपण हमेंशा सायंकाल में करना चाहिए, जिससे पौधे रातभर में भली भांति स्थापित हो सकें| बादल या छाया रहने पर रोपाई किसी भी समय की जा सकती है, रोपाई के तुरंत बाद हल्की सिंचाई अवश्य करनी चाहिए| रोपाई के 7 से 10 दिनों के बाद यदि कोई पौधा सूख जाये तो उस स्थान पर नई पौध रोपित कर दें|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती के लिए मल्चिंग

इस प्रकार की आधुनिक खेती हेतु रोपित बेड को ढकने के लिए 30 से 100 मीटर लम्बी व 1.2 मीटर चौडी काली पोलीथीन का इस्तेमाल किया जाता है| पोलीथीन के दोनों हिस्से को अच्छी तरह से मिटटी में दबा देना चाहिए| मल्चिंग के लाभदायक उपयोग पानी की कमी को रोकना, खरपतवार को रोकना, साथ में कीडे एवं बीमारियों को भी रोकना है|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में ड्रिप लाइन बिछाना

प्रत्येक जड पर एक-एक ड्रिप लाइन बिछाना चाहिए| जिस पर 30 सेंटीमीटर के अंतराल पर एक छिद्र और 2 से 4 लीटर पानी प्रति घंटे की दर से छिद्र से बाहर आना चाहिए| पानी के समान रूप से वितरण के लिए पोलीथीन मल्च का इस्तेमाल भी करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- सब्जियों में सूत्रकृमि (निमेटोड) की समस्या, लक्षण एवं नियंत्रण

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में शाखा विरलन

शिमला मिर्च के पौधे की सिर्फ चार शाखा रखने के लिए विरलन किया जाता है| पौधे से ऊपरी पांच से छटवी गांठ से इसकी शाखा दो भागों में विभाजित हो जाती है, इसे छोडकर, सभी को विरलन कर दिया जाता है| यह दोनो शाखाएं दोबारा दूसरी दो अन्य शाखाओं को जन्म देती है| पौध रोपण के 30 दिन बाद से 8 से 10 दिन के अंतराल पर प्रोमाइन की जाती है| शाखा विरलन करने से उत्तम गुणवता के फल की प्राप्त किये जा सकते है| पौधे की मुख्य शाखा को प्लास्टिक केन से बांधकर दूसरा हिस्सा जो कि पालीहाउस में पहले से लगे होते है, से बांध दिया जाता है, ट्रेडिन्ग कि प्रक्रिया पौध रोपण के 4 हफ्ते बाद की जाती है|

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में ड्रिप सिंचाई और फर्टिगेशन

उर्वरक को सिंचाई पानी के साथ मिलाकर देने की प्रक्रिया पौध रोपण के तीसरे सप्ताह बाद से शुरू कर दी जाती है, जो कि सप्ताह में 2 बार दी जाती है| रासायनिक खाद जैसें पोटेशियम 3 ग्राम प्रति लीटर की दर से 21 दिन के अंतराल पर 2 महीनों तक पानी छिडकाव देना चाहिए| (19:19:19 इस्तेमाल की जाने वाली प्रचलित खाद है)

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में कीट नियंत्रण

थ्रिप्स- थ्रिप्स से ग्रसित पत्तियों में उपरी तरफ मुड़ना, पत्ती का आकार छोटा होना, अधिक घातक अवस्था में पत्तियों का काला पड़ना और फल लगने के समय में अन्तरण का होना इसके मुख्य लक्षण है|

नियंत्रण- ग्रसित पौधे की पत्तियों, फल तथा फूलों को हटा देना चाहिए, नीम बीज करनेल का छिड़काव करना चाहिए|

माइटस- लार्वी और प्रौढ़ इसकी पत्तीयों, फल तथा कली को चुसती है, जिसके कारण पत्तीयां नीचे की तरफ झुक जाती हैं| यह माइटस अधिक तापमान में ज्यादा प्रभावित करता हैं और अधिक नमी पाकर अपनी जनसंख्या में वृद्धि करता है|

नियंत्रण- इससे ग्रसित पौधे को उखाड़ कर फेक देना चाहिए, सल्फर (2 मिलीलीटर प्रति लीटर) फेनाजाक्वीन (1 मिलीलीटर प्रति लीटर) का छिड़काव करना चाहिए|

एफिड़- निम्फ और प्रौढ़ पत्तीयों का रस चुसकर इसकी वृद्धि को रोक देते हैं| इसके प्रभाव से पत्ती मुडती नही बल्कि दूसरे विषाणु जनित बीमारीयों के वाहक बनती है|

नियंत्रण- इसके प्रभाव को हमेशा निगरानी में रखते हुए तुरंत रोकथाम करनी चाहिए, इससे ग्रसित पौधे को उखाड़ कर फेंक देना चाहिए| सल्फर (2 मिलीलीटर प्रति लीटर) फेनाजाक्वीन (1मिलीलीटर प्रति लीटर) का छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- ग्रीनहाउस में टमाटर की बेमौसमी खेती कैसे करें

फल भेदक- फल भेदक रात के समय अपना प्रकोप ज्यादा दिखाते हैं| मादा पत्ती और फल के अंदर अंड़ा देती है| अंडे से बाहर आये निम्फ पूरी पत्ती में जालीनूमा छेद बनाकर पुरी पत्ती को नुकशान पहुचाते है, जहाँ रात का तापमान कम होता है, और नमी बढती है| वहां पर फल भेदक का प्रकोप अधिक दिखाई देता है|

नियंत्रण- निम्फ और प्रौढ़ को पकड़कर नष्ट कर देना चाहिए, थाइओडीकार्व (1 मिलीलीटर प्रति लीटर) या कार्बारिल ( 3 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव करना चाहिए|

सुत्रकृमि या नेमाटोड- पत्तीयों का पीला पड़ना, आकार छोटा होना, जब पौधा को उखाड़ा जाता है| तब जड़ो की गांठो में बहुतायात में सुत्रकृमि होते है|

नियंत्रण- फसल अंतरण, गेंदा की फसल अंतर फसल चकण में शामिल करना, कार्बोफयुरान 20 किलोग्राम एकड की दर से रोपाई के समय पर देना चाहिए| कीट रोकथाम की अधिक जानकारी यहाँ पढ़ें- पॉलीहाउस में टमाटर व शिमला मिर्च के कीट और उनका एकीकृत प्रबंधन कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च की खेती में रोग नियंत्रण

आर्दगलन या पौध गलन- यह बीमारी पीथियम राइजोक्टोनिया या फ्यूजेरियम से फैलती है| सोलेनेशी फसल में आर्द गलन की मुख्य समस्या होती हैं| जब एक ही परिवार को फसल चक्र में लिया जा रहा हों, वहाँ यह पौध नर्सरी में आने वाली गंभीर बीमारी हैं, पौधों में जमीन के उपरी हिस्से में लक्षण दिखाई देते हैं, पौधा विगलन और बाद में पौध मृत्यु इसका मुख्य लक्षण हैं| पौध रोपाई के दौरान चोट लगे पौधों में भी यह रोग जल्दी से अपना लक्षण प्रदर्शित करता हैं|

नियंत्रण- कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर) या कॉपर ऑकसीकलोरॉइड (3 ग्राम प्रति लीटर पानी) पौधो के पास ड्रेचं करना चाहिए|

चुर्णील आशीता- प्रारम्भ में पत्तियों के निचले हिस्से का हल्का छोटा पीला धब्बा तथा बाद में सफेद पाउडर जैसा धब्बा पूरे पत्ती पर फैल जाना इसका मुख्य लक्षण है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिये सल्फर डब्लू  डी 80 प्रतिशत (2 ग्राम प्रति लीटर) या डाइनोकैप (1 मिलीलीटर प्रति लीटर) का छिड़काव करना चाहिए|

सरकोसपोरा लीफ स्पॉट- प्रांम्भिक अवस्था में हल्के पीले छोटे आकार के धब्बे दिखाई देना| जो कि बाद में गहरे कीम कलर की होकर पुरी पत्तीया टूटकर गिर जाती है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए क्लोरोथालोनॉल (2.5 मिलीलीटर प्रति लीटर) या मैन्कोजेब (2.5 ग्राम प्रति लीटर) या कार्बेन्डाजिम (1 ग्राम प्रति लीटर) की दर से छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- खीरा की उन्नत खेती कैसे करें

फाइटोपथोरा- इसके लक्षण फूल खिलते व फल बनते समय दिखाई देते है, जिससे छोटे, तेलीय धब्बें पत्तीयों पर दिखाई देते है| फलस्वरूप गंभीर अवस्था में पौधा काला पड़कर मर जाता है|

नियंत्रण- इसके लिए कॉपर आक्सीक्लोराइड (3 ग्राम प्रति लीटर) डाईमेथोमोर्क + मेकोजेबे (1 + 2.5 ग्राम प्रति लीटर) फोस्टाईन एल्युमिनियम ( 2 ग्राम प्रति लीटर) का छिड़काव करना चाहिए|

विषाणु जनित रोग- विषाणु जनित रोग एफिड़ और थ्रिप्स के द्वारा वाहक होते है| जिसकी पत्तीयां उपर व नीचे की तरफ मुड़ जाती है| पीले रंग का धब्बा पत्ती के मध्य व फल पर भी में दिखाई देता है|

नियंत्रण- इसकी रोकथाम के लिए एफिड़ प्रुफ जाली का इस्तेमाल करना चाहिए और रोग ग्रस्त पौधे को नष्ट कर देना चाहिए| शिमला मिर्च के रोग रोकथाम की अधिक जानकारी यहाँ पढ़ें- पॉलीहाउस में शिमला मिर्च व टमाटर के रोग और उनका एकीकृत प्रबंधन कैसे करें

आधुनिक संरक्षित तकनीक से शिमला मिर्च फसल के फलों तुड़ाई

हरे रंग की शिमला मिर्च 55 से 60 दिन रोपाई के बाद पहली तुड़ाई तथा 70 से 75 दिन बाद पीले रंग की फल और 80 से 90 दिन में लाल रंग की शिमला मिर्च को तोड़ना चाहिए| 3 से 4 दिन के अंतराल बाद तुड़ाई करना चाहिए| फल को छायादार व ठण्डे स्थान पर रखना चाहिए व सीधे धुप की किरणों से बचाना चाहिए|

निष्कर्ष- सब्जीयों में शिमला मिर्च बहुतायात में पसंद की जाती है| बड़े-बड़े रेस्तारा व विदेश में भी इसकी बहुत माँग है, इसकी बाजार माँग को देखते हुए इसकी उपलब्धता पुरे वर्ष भर बनी रहती है, इसलिए इसे नियंत्रित वातावरण में खेती का आधुनिक तरीका अपनाकर अधिक उत्पादन एंव मुनाफा कमाया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- मिर्च की उन्नत खेती कैसे करें

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