• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » आंवला में कीटों की रोकथाम | आंवले में कीट नियंत्रण कैसे करें?

आंवला में कीटों की रोकथाम | आंवले में कीट नियंत्रण कैसे करें?

July 10, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

आंवला में कीटों की रोकथाम | आंवले में कीट नियंत्रण कैसे करें?

आंवला में अनेक प्रकार के कीट नुकसान पहुंचाते है| जिनमें छालभक्षी कीट, प्ररोह पिटिका, अनार तितली, मिली बग या चूर्णी बग, आंवला एफिड, गुठली भेदक और शुष्क क्षेत्रों में दीमक प्रमुख है| इन सब कीट से आंवले के उत्पादन पर अत्यधिक दुष्प्रभाव पड़ता है| जिससे उत्पादकों को आंवले के बागों से इच्छित पैदावार प्राप्त नही हो पाती है|

यदि आंवला उत्पादक बन्धु समय पर इनकी रोकथाम करें, तो वो अपने बागों से गुणवत्तायुक्त और अच्छा उत्पादन प्राप्त कर सकते है| इस लेख में कृषकों के लिए आंवला के बागों में कीट रोकथाम कैसे करें उनके लक्षण और पहचान की जानकारी का विस्तृत उल्लेख किया गया है| आंवला की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी की पूरी जानकारी के लिए यहाँ पढ़ें- आंवला की खेती कैसे करें

कीट एवं रोकथाम

छालभक्षी कीट (इन्डरबेला टेट्राओनिस)- यह कीट पूरे देश में पाया गया है और बहुत से फल, फूलों वाले एवं वन वृक्षों को क्षति पहुंचाता है| आंवला के बागों में यह सामान्यतः पाया जाता है| साधारणतः जिन बागों की ठीक से देख-भाल नहीं होती, उनमें इस कीट का प्रकोप अधिक होता है| कीट का प्रकोप अप्रैल महीने में माथ निकलने के साथ प्रारम्भ होता है| इसके लार्वे प्ररोहों, शाखाओं एवं मुख्य तने की छाल को खाते तथा उनमें छेद करते हैं|

अधिक प्रकोप होने पर पेड़ों की वृद्धि रूक जाती है तथा पुष्पन और फलन प्रभावित होती है| इसके प्रकोप की पहचान लार्वे द्वारा प्ररोहों, शाखाओं और तनों पर बनायी गयी अनियमित सुरंगों से होता है, जो रेशमी जालों, जिसमें चबायी हुई छाल के टुकड़े तथा इनके मल सम्मिलित होते हैं, से ढकी होती है| इनके आवासीय छिद्र विशेष कर प्ररोहों एवं शाखओं के जोड़ पर देखे जा सकते हैं| प्ररोह सूख कर मर जाते हैं, जिससे पेड़ बीमार सा दिखता है|

नियंत्रण-

1. बाग को साफ-सुथरा तथा स्वस्थ रखना चाहिए|

2. समय-समय पर बागों में जाकर नये सूखे प्ररोहों की जाँच करनी चाहिए ताकि समय रहते ही इस कीट का पता लग जाए|

3. आंवला में प्रकोप के शुरूआत में ही, आवासीय छिद्रों को साफ कर, उनमें तार डाल कर लार्वे को नष्ट कर देना चाहिए|

4. अधिक प्रकोप होने पर सुरंगों एवं आवासीय छिद्रो को साफ कर रूई के फाये को 0.025 प्रतिशत डाइक्लोरवॉस के घोल में भिगो कर छिद्रों में रख कर गीली मिट्टी से बन्द कर देना चाहिए|

5. इसके लार्वे बेवेरिया बैसिआना नामक फफूंद से प्राकृतिक रूप से ग्रसित होते हैं| इसका प्रयोग जैविक नियंत्रण के लिए किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- आंवला के रोगों की रोकथाम कैसे करें

प्ररोह पिटिका (बेटूसा स्टाइलोफोरा)- इस कीट का प्रकोप नर्सरी के पौधों एवं पुराने फलदार वृक्षों में अधिक होता है| यह कीट आंवला में जून से दिसम्बर माह तक क्रियाशील रहता है| इस कीट के लार्वे बढ़ते हुए तनों, प्ररोहों के आगे के भाग में सुरंग बनाते हैं और यह भाग फूल का गॉल (पीटिका) आकार ले लेता है| जब लार्वा इसके अन्दर क्रियाशील रहता है, तो इसके एक सिरे से लाल रंग का बुरादा सा निकलता दिखायी पड़ता है|

नयी पिटिका जून से अगस्त के दौरान बनती है| पूर्ण विकसित पिटिका या गॉल 2.3 से 2.5 सेंटीमीटर लम्बी एवं 1 से 1.5 सेंटीमीटर चौड़ी होती है| गर्मी के मौसम के शुरूआत में यह लार्वा बाहर आ जाता है तथा पर्णकों (लीफलेट) के बीच प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है| यह कीट महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका गम्भीर प्रकोप होने पर पेड़ की वृद्धि रूक जाती है, जिससे पुष्पन और फलत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है|

नियंत्रण-

1. आंवला के बागों में वृक्ष बहुत घने नहीं होने चाहिए|

2. गॉल वाले प्ररोहों काट कर कीड़ों सहित नष्ट कर देना चाहिए|

3. जिन बागों में इसका प्रकोप लगातार होता रहा है, उसमें 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशी का छिड़काव मौसम के शुरूआत में करें और यदि आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव 15 दिनों के बाद करें|

यह भी पढ़ें- आंवला की उन्नत किस्में, जानिए विशेषताएं और पैदावार

अनार तितली (डूयूडोरिक्स आइसोक्रेटस)- यह अनार का प्रमुख कीट है, किन्तु आंवला और अन्य दूसरे फलों को भी हानि पहुँचाता है| इस कीट का प्रकोप सितम्बर से अक्टूबर माह में फलों के मौसम में होता है| बैंगनी-भूरी सी मादा तितली एक-एक करके छोटे, चमकदार, सफेद अंडे फलों पर देती है| इनमें से लार्वे निकल कर फल को छेद कर अन्दर चले जाते हैं और गुठली वाले भाग को खा कर, खोखला कर देते हैं|

यह मजबूत शरीर वाला, छोटे बालों से ढका, चपटा, लगभग 2 सेंटीमीटर तक लम्बा होता है| यह फल के अन्दर ही या बाहर आ कर प्यूपा में परिवर्तित हो जाता है| कैटरपिलर के अन्दर घुसने एवं बाहर आने वाले छिद्रों के द्वारा अन्य विभिन्न जीवाणुओं का भी फल पर प्रकोप हो जाता है|

आमतौर पर कीट द्वारा ग्रसित फल कैटरपिलर के अन्दर जाने वाले छिद्रों के पास विकृत हो जाते हैं, और ऐसे फल कमजोर होकर सड़ जाते हैं, और पकने से पहले ही गिर जाते हैं| ग्रसित फलों में छेद से बुरादा निकलता हुआ भी दिखायी पड़ता है| अधिक प्रकोप होने पर फलों को काफी हानि हो सकती है|

नियंत्रण-

1. आंवला के बाग के साथ, अनार का बाग नहीं लगाना चाहिए, क्योंकि यह इन फलों का मुख्य कीटनाशी है|

2. ग्रसित फलों तथा जमीन पर गिरे हुए सभी फलों को एकत्र कर, कीड़ों सहित नष्ट कर देना चाहिए, ताकि इनके प्रकोप दुबारा होने से रोका जा सके|

3. आंवला में इस कीट की रोकथाम के लिए 0.2 प्रतिशत कार्बरिल या 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटाफॉस कीटनाशी का छिड़काव फल के मटर के दाने के बराबर होने की अवस्था में करना चाहिए और दूसरा छिड़काव प्रकोप की तीव्रता पर निर्भर करता है, जिसे 15 दिनों के अन्तराल पर किया जा सकता है|

यह भी पढ़ें- आंवले का प्रवर्धन कैसे करें

मिली बग या चूर्णी बग (नाइलीकॉकस वाइडिस)- इनका प्रकोप आंवला में मार्च से जुलाई के मध्य होता है और अप्रैल से मई में इनकी संख्या अधिक होती है| मादा अण्डाकार होती है और निम्फ के बीच में आसानी से पहचानी जा सकती है| एक मादा सैकड़ों की तादाद में अंडे देती हैं| निम्फ पत्तियों, प्ररोहों एवं पुष्प मन्जरियों पर स्थापित हो जाते हैं और इनका रस चूसते हैं| निम्फ 15 से 20 दिनों में वयस्क हो जाते हैं|

अधिक रस चूस जाने के कारण पत्तियाँ तथा फूल सूख सूख कर गिर जाते हैं| इसका प्रकोप पेड़ की बढ़वार, पुष्पन और फलत पर पड़ता है| ग्रसित नये प्ररोह झुके, मुड़े हुए से प्रतीत होते हैं एवं पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं| अधिक प्रकोप होने पर टहनियाँ पत्ती रहित होकर सूखने लगती हैं| इसके द्वारा काफी मात्रा में विसर्जित मधुश्राव भी देखा जा सकता है| इससे फूल सूख कर गिर जाते हैं|

नियंत्रण-

1. आंवला के बाग को साफ-सुथरा तथा स्वस्थ रखना चाहिए|

2. प्रभावित पत्तियों और प्ररोहों को शुरूआत में ही काट कर कीड़ों सहित नष्ट कर देना चाहिए जिससे वे आगे और फैलने न पायें|

3. आंवला में अधिक प्रकोप होने पर 0.05 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस या 0.05 प्रतिशत क्वीनलफॉस का छिड़काव करना चाहिए|

आंवला एफिड (सरसीएफिस एम्बलिका)- इन कीटों का प्रकोप आंवला में जुलाई से अक्टूबर तक रहता है और सितम्बर माह में प्रकोप सबसे अधिक होता है| इनका प्रकोप पेड़ों में नये प्ररोहों के अग्रभाग पर होता है| निम्फ एवं वयस्क दोनों रस चूस कर क्षति पहुँचाते हैं| अधिक प्रकोप होने पर पेड़ की (वृद्धि) पर प्रतिकूल असर पड़ता है, जो अन्ततः पुष्पन और फलत को प्रभावित करता है| प्रभावित पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं और सूख कर गिरने लगती हैं| प्रभावित प्ररोह के अग्रभाग झुके और मुड़े हुए से प्रतीत होते हैं| चीटियों की मौजूदगी से भी इस कीट के प्रकोप होने की पहचान होती है|

नियंत्रण-

1. प्रकोप की शुरूआत में ही प्रभावित पत्तियों एवं प्ररोहों को काट कर कीड़ों सहित नष्ट करना चाहिए|

2. आंवला में अधिक प्रकोप होने पर 0.06 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस कीटनाशी का छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- पपीते के कीट एवं रोग की रोकथाम कैसे करें

गुठली भेदक (करक्यूलिओ जाति)- यह कीट आंवला में जून से जनवरी माह तक क्रियाशील रहता है| इस कीट का वयस्क एक छोटा सा घुन होता है, जो जून माह में बरसात शुरू होने पर जमीन के अन्दर से बाहर आता है| घुन का निकलना जुलाई से अगस्त में जारी रहता है, जो आंवला के फल लगने से मेल खाता है| अण्डे फल में एक छोटा सा गड्ढा बना कर वाह्य सतह से नीचे दिए जाते हैं|

अण्डे देने के लिए 1.5 से 2 सेंटीमीटर व्यास के फल पसंद किए जाते हैं| इसका लार्वा निकलने के बाद गूदे से होता हुआ गुठली को छेदता अन्दर चला जाता है तथा बीजों को खाकर पूर्णतः नष्ट कर देता है| पूर्ण विकसित लार्वा, फल में एक छोटा छेद करके बाहर निकल कर जमीन पर गिर जाता है और भूमि में घुस कर अगले मौसम आने तक वहीं पड़ा रहता है|

इस कीट का प्रकोप देशी एवं बनारसी जाति के आंवले पर देखा गया है| यह घुन जिस स्थान पर फल में अण्डे देती है, वहाँ एक छोटा, भूरा धब्बा दिखायी पड़ता है| इसके अतिरिक्त फलों में कीट के बाहर निकलने वाले छेदों को देखकर भी इसके प्रकोप की पहचान की जा सकती है|

नियंत्रण-

1. फल तुड़ाई के उपरान्त गहरी जुताई करने से जमीन के अन्दर प्रवेश किए लार्यों को नष्ट किया जा सकता है और इनकी संख्या में कमी लायी जा सकती है|

2. अधिक प्रकोप होने पर प्रथम छिड़काव 0.2 प्रतिशत कार्बारिल या 0.04 प्रतिशत मोनोक्रोटोफॉस या 0.05 प्रतिशत क्वीनलफॉस या 0.07 प्रतिशत एन्डोसल्फान कीटनाशी का फलों के मटर के दाने के बराबर की अवस्था में करना चाहिए| यदि आवश्यकता हो तो दूसरा छिड़काव कीटनाशी बदल कर 15 दिनों के अन्तराल पर करें|

ध्यान दें- आंवला के बाग में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरोपायरीफॉस 0.3 प्रतिशत का घोल बनाकर पौधे के तने के चारों और की मिटटी में समय-समय पर डालना चाहिए|

यह भी पढ़ें- केला फसल के प्रमुख कीट एवं रोग और उनका नियंत्रण कैसे करें

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap