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Home » अशफाक उल्ला खान के विचार | Quotes of Ashfaqullah Khan

अशफाक उल्ला खान के विचार | Quotes of Ashfaqullah Khan

February 23, 2024 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

अशफाक उल्ला खान के विचार

अशफाक उल्ला खान (जन्म: 22 अक्टूबर 1900, शाहजहाँपुर – मृत्यु: 19 दिसम्बर 1927, फैजाबाद) भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में एक स्वतंत्रता सेनानी थे| वह एक प्रसिद्ध उर्दू कवि थे और ‘हसरत’ के उपनाम से कविता लिखते थे| अशफाक उल्ला खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900 को उत्तर प्रदेश के ऐतिहासिक शाहजहाँपुर शहर में हुआ था| उनका जन्म शफीक उल्लाह खान और मजहूर-उन-निशां बेगम से हुआ था|

वह पंडित राम प्रसाद बिस्मिल से बेहद प्रेरित थे| यद्यपि वह हिंसा का प्रबल समर्थक नहीं था, फिर भी वह ब्रिस्टिशर्स और उनके एजेंटों के मन में डर पैदा करना चाहता था| हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य के रूप में, उन्होंने राम प्रसाद बिस्मिल के साथ काकोरी में ट्रेन लूटी, लेकिन बाद में उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और फांसी पर चढ़ा दिया गया|

आज कोई भी इस महान व्यक्तित्व के नाम पर विभिन्न संस्थान पा सकता है जो राष्ट्र के लिए जिए और मरे और राम प्रसाद बिस्मिल के साथ सांप्रदायिक भाईचारे की मिसाल रहे| उनके बड़े भाई रियासत उल्ला खान, राम प्रसाद बिस्मिल के सहपाठी थे| मणिपुरी षडयंत्र के बाद जब बिस्मिल को भगोड़ा घोषित कर दिया गया तो रियासत अशफाकुल्ला को बिस्मिल की बहादुरी और उर्दू शायरी के बारे में बताया करते थे|

इससे अशफाक उल्ला में अपने काव्यात्मक रवैये के कारण बिस्मिल से मिलने की गहरी दिलचस्पी जगी| वर्ष 1920 में जब राम प्रसाद बिस्मिल शाहजहाँपुर आये तो अशफाक उल्ला ने उनसे मिलने की कोशिश की लेकिन असफल रहे|

वर्ष 1922 में जब गैर-निगम आंदोलन शुरू हुआ, तो बिस्मिल ने लोगों को आंदोलनों के बारे में बताने के लिए शाहजहाँपुर में बैठकें आयोजित कीं| तभी अशफाक उल्ला की मुलाकात बिस्मिल से हुई और उन्होंने अपना परिचय अपने दोस्त के भाई के रूप में दिया| तब से, वे अच्छे दोस्त बन गए और उनके बीच काव्यात्मक तालमेल ने उन्हें लोकप्रिय बना दिया|  इस लेख में अशफाक उल्ला खान के नारों, उद्धरणों और शिक्षाओं का संग्रह है|

यह भी पढ़ें- अशफाक उल्ला खान की जीवनी

अशफाक उल्ला खान के उद्धरण

1. “रोओ बच्चे नहीं, रोओ बूढ़े नहीं| मैं अनिश्वर हूं, मैं अनिश्वर हूं|”

2. “जूंगा खाली मगर ये दर्द साथ ही जाएगा, जाने किस दिन हिंदोस्तां आजाद वतन कहलेगा|”

3. “केवल अपने देश के प्यार के लिए मैंने इतना कुछ सहा है|”

4. “कस ली कमर, अब तो कुछ करके दिखाएंगे| आज़ाद ही हो लेंगे, या सर ही काट देंगे|”

5. “कोई सपना नहीं है और अगर है तो केवल एक ही है, जिसके लिए संघर्ष करते हुए तुम्हें देखना है और जिसके लिए मुझे उम्मीद है कि मैं ख़त्म हो जाऊँगा|”              -अशफाक उल्ला खान

6. “हम भारतमाता के रंगमंच पर अपना पार्ट अदा कर चुके हैं| हमने गलत अथवा सही जो कुछ भी किया, वह स्वतंत्रता प्राप्ति की भावना से किया| कुछ लोग हमारे इस काम की प्रशंसा भी करेंगे और कुछ लोग निंदा| किन्तु हमारे साहस और वीरता की प्रशंसा हमारे दुश्मनों तक को करनी पड़ेगी|”

7. “में अंग्रेजों के राज्य से हिन्दू राज्य ज्यादा पसंद करूँगा|”

8. “मेरे हाथ इंसानी खून से कभी नहीं रंगे, मेरे ऊपर जो इल्जाम लगाया गया, वह गलत है| खुदा के यहाँ मेरे इन्साफ होगा|”

9. “हमें नाम पैदा करना तो है नहीं, यदि नाम पैदा करना होता तो क्रांतिकारी वाला काम छोड़ देता और लीडरी न करता|”

10. “तुम समझते होगे कि काल- कोठरियों ने मुझे दुबला कर दिया है, मगर बात ऐसी नहीं है| मैं आजकल बहुत कम खाता हूँ और इबादत में ज्यादा समय गुजारता हूँ| कम खाने से इबादत में खूब मन लगता है|”              -अशफाक उल्ला खान

यह भी पढ़ें- राम प्रसाद बिस्मिल के अनमोल विचार

11. “जजों ने हमें निर्दयी, बर्बर, मानव कलंक आदि विशेषणों से याद किया है| किन्तु हम पूछते हैं कि क्या इन जजों ने जालियां वाला बाग़ में डायर को गोली चलाते देखा या सुना नहीं? क्या उसने निरस्त्र भारतीयों; स्त्री, पुरुष, बाल, वृद्ध, सबपर गोलियाँ नहीं चलाई थी? कितने जजों ने उसे इस तरह के विशेषणों से संबोधित किया? फिर क्या यह सब हमारा मजाक उड़ाने के लिए किया जा रहा है?”

12. “भारतीय भाइयो, आप कोई भी हों, चाहे किसी भी धर्म या सम्प्रदाय के अनुयायी हों, परन्तु आप देशहित में एक होकर योग दीजिये| आप लोग व्यर्थ में लड़- झगड़ रहे हो| सब धर्म एक हैं, रास्ते चाहे अलग- लग हों, परन्तु लक्ष्य सबका एक ही है| फिर यह सोचकर कि सात करोड़ मुसलमान भारतवासियों में मैं सबसे पहला मुसलमान हूँ जो भारत माता की स्वतंत्रता के लिए फांसी पर चढ़ रहा हूँ, मैं मन ही मन अभिमान का अनुभव कर रहा हूँ|”

13. “हम चाहते तो किसी गवाह, किसी खुफिया पुलिस के अधिकारी या किसी अन्य ऐसे आदमी को मार सकते थे| किन्तु यह हमारा उद्देश्य नहीं था| हम तो कन्हाई लाल दत्त, खुदी राम बोस, गोपी मोहन साहा की स्मृति में फांसी पर चढ़ जाना चाहते थे|”              -अशफाक उल्ला खान

19 दिसंबर, 1927 को अशफाक उल्ला खान को फैजाबाद जेल में फांसी दे दी गई| उन्हें बिस्मिल, राजेंद्र लाहिड़ी और ठाकुर रोशन सिंह के साथ भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सबसे बड़ी डकैतियों और सबसे साहसी घटनाओं में से एक माने जाने वाले काकोरी साजिश मामले में दोषी ठहराया गया था|

अशफाकुल्ला खान केवल 27 वर्ष के थे जब उन्होंने अंतिम सांस ली| युवा क्रांतिकारी को उनके अनुकरणीय साहस, सटीक सोच, निष्ठा और इस मातृभूमि के प्रति अटूट प्रेम को न भूलने के लिए याद किया जाता है|

यह भी पढ़ें- राजेंद्र प्रसाद के अनमोल विचार

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