• Skip to primary navigation
  • Skip to main content
  • Skip to primary sidebar
Dainik Jagrati

Dainik Jagrati

Hindi Me Jankari Khoje

  • Agriculture
    • Vegetable Farming
    • Organic Farming
    • Horticulture
    • Animal Husbandry
  • Career
  • Health
  • Biography
    • Quotes
    • Essay
  • Govt Schemes
  • Earn Money
  • Guest Post
Home » नाशपाती की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

नाशपाती की खेती: किस्में, रोपाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

September 27, 2018 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

नाशपाती की खेती

नाशपाती की खेती भारत में ऊँचे पर्वतीय क्षेत्र से लेकर घाटी, तराई और भावर क्षेत्र तक में की जाती है| नाशपाती के फल खाने में कुरकुरे, रसदार और स्वदिष्ट होते हैं| इसके फल में पौषक तत्व प्रचुर मात्रा में होते है| यह सयंमी क्षेत्रों का महत्वपूर्ण फल है| नाशपाती की खेती भारत में अधिकतर हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, उत्तर प्रदेश और कम सर्दी वाली किस्मों की खेती उप-उष्ण क्षेत्रों में की जा सकती है|

कृषकों को नाशपाती की खेती वैज्ञानिक तकनीक से करनी चाहिए| ताकि उनको इसकी फसल से अधिकतम और गुणवत्तायुक्त उत्पादन प्राप्त हो सके| इस लेख में नाशपाती की वैज्ञानिक तकनीक से बागवानी कैसे करें की पूरी जानकारी का उल्लेख किया गया है|

उपयुक्त जलवायु

नाशपाती की खेती या बागवानी लगभग पूरे देश में गर्म आर्द्र उपोष्ण मैदानी क्षेत्रों से लेकर शुष्क शीतोष्ण ऊँचाई वाले क्षेत्रों में बिना किसी बाधा के की जा सकती है| नाशपाती समुद्रतल से लगभग 600 मीटर से 2700 मीटर तक इसका फल उत्पादन सम्भव है| इसके लिए 500 से 1500 घण्टे शीत तापमान 7 डिग्री सेल्सियस से नीचे होना आवश्यक है|

निचले क्षेत्रों में इसकी बागबानी की सम्भावना उत्तर से पूर्व दिशा वाले क्षेत्रों में और ऊँचाई वाले दक्षिण से पश्चिम दिशा के क्षेत्रों में अधिक है| सर्दी में पड़ने वाले पाले, कोहरे और ठण्ड से इसके फूलों को भारी क्षति पहुँचती है| इसके फूल 3.50 सेल्सियस से कम तापमान पर मर जाते हैं|

यह भी पढ़ें- सेब की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

भूमि का चयन

नाशपाती की खेती के लिए मध्यम बनावट वाली ब्लुई दोमट तथा गहरी मिट्टी की आवश्यकता होती है| जिसमें जल निकास सरलता से हो| दूसरे पर्णपाती फल पौधों की अपेक्षा नाशपाती के पौधे चिकनी और अधिक पानी वाली भूमि पर भी उगाये जा सकते हैं, परन्तु पौधों की जड़ों की अच्छी बढ़ौतरी के लिए मिट्टी दो मीटर गहराई तक पथरीली या कंकर वाली नहीं होनी चाहिए|

उन्नत किस्में

नाशपाती की खेती के लिए व्यावसायिक तौर पर अनुमोदित ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों की किस्में इस प्रकार है, जैसे-

अगेती किस्में- अर्ली चाईना, लेक्सटन सुपर्ब, थम्ब पियर, शिनसुई, कोसुई और सीनसेकी आदि|

मध्यम किस्में- बारटलैट, रैड बारटलैट, मैक्स-रैड बारटलैट, कलैप्स फेवरट, फ्लैमिश ब्यूटी (परागण) और स्टारक्रिमसन आदि|

पछेती किस्में- कान्फ्रेन्स (परागण), डायने डयूकोमिस, काश्मीरी नाशपाती और विन्टर नेलिस आदि|

मध्यवर्ती, निचले क्षेत्र व घटियों हेतु- पत्थर नाख, कीफर (परागण), चाईना नाशपाती, गोला, होसुई, पंत पीयर-18, विक्टोरिया और पंत पियर-3 आदि|

प्रमुख किस्मों का वर्णन

नाशपाती की प्रमुख किस्मों का वर्णन इस प्रकार है, जैसे-

अर्ली चाईना- सभी किस्मों से पहले पकने वाली किस्म, पौधों की बढ़ौतरी मध्यम रूप से, ऊपरी भाग फैलावदार, फल छोटे और गोल आकार वाले, मीठे व कम भण्डारण क्षमता वाले, जून महीने में फल पक कर तैयार हो जाती है|

लेक्सटन सुपर्ब- फल लम्बूतरा, खुरदरा, पतला तथा पीले के साथ-साथ हरे रंग के छिलके वाला, मीठा, रसदार तथा उत्तम गुणवत्ता वाला, पौधे की बढ़ौतरी मध्यम तथा ऊपरी भाग फैलावदार, अधिक पैदावार देने वाली किस्म किस्म है|

बारटलैट- सर्वाधिक लोकप्रिय व्यावसायिक किस्म, फल बड़े आकार वाला, छिलका पतला साफ पीले रंग का, कोमल, गूदा उत्तम श्रेणी का, बहुत रसीला, खुशबूदार, पौधे अधिक पैदावार देने वाले, मध्यम आकार के होते है|

यह भी पढ़ें- लीची की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

रैड बारटलैट- नाशपाती का मध्यम से बड़े आकार का फल, गूदा सफेद रंग का, रसीला, कुरकुरा, खुशबूदार, घुलने वाला, नरम, जून के अन्तिम सप्ताह से मध्यम जुलाई तक पकने वाली किस्म, व्यापारिक स्तर पर अधिक लाभदायक, पौधे की वृद्धि दर मध्यम, मध्य पर्वतीय क्षेत्रों में भी उगाने योग्य किस्म है|

मैक्स रैड बारटलैट- फल उत्तम गुणवत्ता वाला, रसीला, गूदा सफेद, लालिमा युक्त, बारटलैट की सुधरी किस्म किस्म है|
कलैप्स फेवरट- बारटलैट की तरह बड़े आकार का फल, नीम्बू की तरह पीला, भूरे बिन्दुओं वाला, गूदा उत्कृष्ट, चिकना, सुगन्धी वाला व मीठा, पेड़ बड़े आकार का और बहुफलदायक है|

फ्लेमिश ब्यूटी- नाशपाती के फल बड़े आकार के, एक समान गोलाकार, स्वादिष्ट, फल का रंग साफ, पीला, ऊपर से लालिमा युक्त बिन्दुओं वाला, पौधे की शाखायें नीचे की ओर झुकी, फैलावदार, अच्छे उत्पादन वाली किस्म, सितम्बर में पककर तैयार होती है|

स्टारक्रिमसन- फल मध्यम आकार का, आकर्षित लाल रंग का, अधिक समय तक रखने पर कलेजी रंग का, गूदा सफेद एवं नरम, मीठा, फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में पक कर तैयार, पौधे ओजस्वी, मध्य पर्वतीय क्षेत्रों के लिए अनुकूल किस्म है|

कान्फ्रेन्स- नाशपाती का मध्य आकार का फल, छिलका हरा, पकने पर पीला, गूदा सफेद हल्के गुलाबी रंग का, मीठा, रसदार, अच्छी सुगन्ध वाला, पौधे की शाखायें ऊपर की ओर फैलावदार, बढ़ौतरी मध्यम होती है|

डायने डयूकोमिस- इस किस्म का फल आयताकार, थोड़ी गोलाई वाला, छिलका खुरदरा, दानेदार, पीले रंग का थोड़ा गेहूँआ रंग वाला, गूदा मीठा, स्वादिष्ट, सुगंधित, कोमल, रसीला, पेड़ की वृद्धि दर मध्यम, पेड़ ऊपर की ओर सीधे बढ़ने वाला, सघन, अधिक फल देने वाला, फल अक्तूबर में पक कर तैयार होती है|

यह भी पढ़ें- नींबू वर्गीय फलों की खेती कैसे करें

काश्मीरी नाशपाती- फल छोटे आकार का, हरे रंग का, फल का रंग तोड़ने पर पीला, गूदा बिल्कुल साफ सफेद, खुशबूदार, मीठा तथा रसीला, पेड़ मध्यम आकार का, नियमित रूप से अधिक फल देने वाली किस्म है|

पत्थर नाख- मध्यम आकार का पीले रंग का गोलाकार फल जिस पर हल्के सफेद रंग के बिन्दु, गूदा सफेद, गुणवत्ता मध्यम, खाने में कुरकुरा, पेड़ सीधा ऊपर को बढ़ने वाला, पौधे की वृद्धि दर मध्यम तथा मध्यम आकार के पौधे होते है|

कीफर- फल बड़े आकार का, सुनहरे पीले रंग का, कुरकुरा, निम्न कोटि की गुणवत्ता वाला, संसाधन के लिए उपयोगी किस्म है|

थम्ब पियर- फल छोटा, छिलका हरा-पीला होता है, जिस पर हल्का बैंगनी और कत्थई रंग चढ़ा, पकने पर फल का अधिकांश भाग चमकदार पीला हो, गूदा रसदार, मुलायम और बहुत मीठा, फल जून के प्रथम सप्ताह में पकने प्रारम्भ हो जाते हैं|

शिनसुई- फल मध्यम से बड़े आकार के गोल और हरे, गूदा हल्का सफेद, रसदार, ग्रिट कोशाओं की संख्या अधिक, मीठा, पेड़ अधिक वृद्धि करने वाला उपजाऊ, फल जुलाई के दूसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाते है|

कोसुई- जल्दी तैयार होने वाली, छिलका हरापन लिए हुए सुनहरा, गूदा मीठा रसदार, फल मध्यम आकार के गोल होते है|

विक्टोरिया- फल मध्यम से बड़े आकार का पीलापन लिये हरा तथा प्रत्यक्ष सूर्य के प्रकाश की तरह, धब्बो से परिपूर्ण, पकने पर गूदा अत्यन्त मुलायम, रसदार, मीठा और स्वादिष्ट, अच्छी फलत वाली किस्म हैं, जुलाई के तीसरे सप्ताह में पककर तैयार हो जाती हैं|

पंत पियर 3- पेड़ मध्यम आकार के, अधिक उपज देने वाली, मध्यम से देर में पकने वाली, फल मध्यम आकार के नाशपाती की बनावट में गूदा मुलायम व मीठा, छिलका पतला हल्का पीलापन लिए हुए हरा, तराई-भावर और घाटियों के लिए उपयुक्त किस्म है|

यह भी पढ़ें- अमरूद की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

पौधे तैयार करना

नाशपाती की खेती हेतु सामान्य स्थिति में नाशपाती के पौधे कैन्थ या शियारा के बीज से बने मूलवृन्त पर कलम करके तैयार किये जाते हैं| केन्थ के बीजों को स्थानीय स्त्रोतों से एकत्र करके उन्हें बिना स्तरित (स्ट्रैटीफिकेशन) किये ही दिसम्बर से जनवरी में खेत में बोया (उगाना) जाता है| अधिक अंकुरण के लिए कैन्थ के बीजों को 35 से 45 दिनों तक 2 से 5 डिग्री सेल्सियस तापमान पर नमी वाले रेत में स्तरित भी किया जा सकता है| एक वर्षीय पौधे पर कलम आरोपित की जाती है| फरवरी से मार्च में जिहा पैबन्द लगाया जाता है और जून से जुलाई में चश्मा चढाया जा सकता है|

मूलवृंत (रूट स्टॉक)

कैन्थ- यह एक जंगली पौधा है, जो गहरी जड़ों वाला, सूखे की स्थिति को झेलने वाला तथा मध्यम बढ़त वाला होता है| कैन्थ में कल्ले बहुत निकलते हैं|

शियारा- शियारा पर पौधे कैन्थ की अपेक्षा अधिक बढ़ते हैं|

क्लोनल रूट स्टॉक- आजकल नाशपाती का प्रमुख रूप से ‘क्वींश ए’ मूलवृन्त पर प्रवर्धन किया जाता है| यह एक मध्य बौना मूलवृंत है, जिस पर पौधों का आकार लगभग दूसरे मूलवृतों पर तैयार किये गये पेड़ों से 50 से 60 प्रतिशत कम होता है| इस मूलवृत की योग्यता अन्य व्यावसायिक किस्मों से कम हैं| इस असंगति को दूर करने के लिए नाशपाती का अन्तराल ओल्ड ह्यूम या ब्यूरो हार्डी (इंटर स्टॉक) लगाना चाहिए|

क्लैफ्ट ग्राफ्टिंग- सुरक्षित क्षेत्रों में जहां जंगली कैथ हो वहां पर जनवरी से फरवरी में क्लैफ्ट ग्राफ्टिंग द्वारा नाशपाती की उन्न्त किस्मों के पौधों में बदला जा सकता है| जंगली पेड़ों पर टाप वर्किग द्वारा कलम लगानी चाहिए|

यह भी पढ़ें- आंवला की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

पौध रोपण

नाशपाती की खेती के लिए सामान्य रूप से बीजू मूलवृत पर तैयार किये गये पौधों के बीच 5 x 5 मीटर की दूरी और क्लोनल मूलवृत में यही दूरी 3 x 3 मीटर तक रखी जाती है| ढलानदार क्षेत्रों में नाशपाती के पोधे छोटे-छोटे खेत बनाकर लगाए जाने चाहिए, परन्तु समतल घाटियों वाले क्षेत्रों में वर्गाकार, षट्कोणाकार, आयताकार विधि, आदि से पौधे लगाये जा सकते हैं|

कटाई-छटाई

आपस में उलझी हुई, सूखी, टूटी तथा रोग ग्रस्त शाखाओं को पेड़ों से अलग कर दें और सुसुप्तावस्था में शाखाओं के ऊपर का एक चौथाई भाग काट दें ताकि अधिक वानस्पतिक वृद्धि न हो| नाशपाती के पौधे पर बीमों पर फल आते हैं| इसलिए 8 से 10 वर्षों के पश्चात् इनका नवीनीकरण करना आवश्यक है ताकि स्वस्थ बीमे नई शाखाओं पर आ सके| इन शाखाओं का विरलन करके भी बीमों का नवीनीकरण कर सकते हैं|

खाद और उर्वरक

नाशपाती की खेती के लिए खाद तथा उर्वरकों की प्रयोगों पर आधारित प्रमाणित सिफारिशें नहीं हैं, तथापि इसमें सेब की ही भांति उर्वरक तथा खाद डाली जाती है| बोरोन की कमी के लिए नाशपाती के पौधे संवेदनशील है, और इसके अभाव में छोटी अवस्था के कच्चे फल फट जाते हैं| परिपक्वता अवस्था तक पहुचते पहुंचते फल पर जगह जगह पर धब्बे पड़ जाता है| इसलिए बोरिक एसिड 1 ग्राम प्रति लीटर पानी का छिड़काव करना चाहिए|

यह भी पढ़ें- आम की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

सिंचाई प्रबन्धन

नाशपाती की खेती के लिए पूरे साल में 75 से 100 सैंटीमीटर वितरित बारिश की जरूरत होती है| रोपाई के बाद इसको नियमित पानी की आवश्यकता होती है| गर्मियों में 5 से 7 दिनों के फासले पर जबकि सर्दियों में 15 दिनों के फासले पर सिंचाई करें| जनवरी महीने में सिंचाई ना करें| फल देने वाले पौधों को गर्मियों में खुला पानी दें| इससे फल की गुणवत्ता और आकार में वृद्धि होती है|

खरपतवार नियंत्रण

जब पौधे 20 से 25 सैंटीमीटर के हो, तो खरपतवार रोकथाम के लिए ग्लाइफोसेट 1.2 लीटर प्रति एकड़ और पैराकुएट 1.2 को 200 लीटर पानी में मिला के प्रति एकड़ में छिड़काव करें|

अंतर-फसलें

जब तक बाग में फल ना लगने लगे खरीफ ऋतु में उड़द, मूंग, तोरियों जैसे फसलें और रब्बी में गेंहू, मटर, चने या सब्जियां आदि फसलें अंतर-फसलों के रूप में इनकी खेती की जा सकती है|

यह भी पढ़ें- गुलाब की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल, पैदावार

किट व रोग रोकथाम

सैंजो स्केल- यह सेब का भयंकर नवजात रेंगते हुए स्केल को नष्ट नाशीकीट है। इससे कम प्रकोपित करने के लिए मई महीने में पौधों की छाल पर छोटे-छोटे सुई की नोक जैसे भूरे रंग के धब्बे नजर आते हैं और अधिक प्रभावित पौधों पर यही धब्बे एक दूसरे से मिलकर ऐसे दिखाई पड़ते हैं जैसे पौधे पर राख का छिड़काव किया गया हो। पौधों की बढ़ौतरी रूक जाती है और पौधे सूखने लगते है|

रोकथाम- इसके लिए क्लोरपाइरीफॉस 0.04 प्रतिशत, 400 मिलीलीटर 20 ईसी या डाइमैथोएट 30 ईसी 0.03 प्रतिशत 200 मिलीलीटर का 200 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| अधिकतर क्षेत्रों में मई के महीने में यह छिड़काव करना उपयुक्त रहता है|

व्हाईट स्केल- यह कई क्षेत्रों में नाशपाती वृक्ष की छोटी शाखाओं, बीमों और फल के बाहरी दलपुंज में देखा जाता है| स्केल के प्रकोप से पौधे के भाग प्रायः सूख जाते हैं|

रोकथाम- प्रभावित पौधों पर सितम्बर और अक्तूबर में फल तोड़ने के बाद क्लोरपाइरीफॉस का छिड़काव करें| घोल से पूरा पौधा तर हो जाना चाहिए| यदि छिड़काव के 24 घण्टे के भीतर वर्षा हो जाये तो छिड़काव दुबारा करें| एक बड़े पेड़ के लिए 6 से 8 लिटर घोल की आवश्यकता होती है|

चेपा और थ्रिप्स- यह नाशपाती पौधे के पत्तों का रस चूसते है, जिससे पत्ते पीले पड़ जाते हैं| यह शहद जैसा पदार्थ छोड़ते हैं, जिस कारण प्रभावित भागों पर काले रंग की फंगस बन जाती है|

रोकथाम- फरवरी के आखिरी हफ्ते जब पत्ते झड़ना शुरू हो तो इमीडाक्लोप्रिड 60 मिलीलीटर या थाईआमिथोकसम 80 ग्राम को प्रति 150 लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें| दूसरी तर छिड़काव मार्च महीने में करें और तीसरा छिड़काव फल के गुच्छे बनने पर करें|

यह भी पढ़ें- अनार की खेती कैसे करें, जानिए किस्में, देखभाल और पैदावार

मकोड़ा जूं- यह नाशपाती के पौधे के पत्तों को खाते है और इनका रस चूसते है, जिस से पत्तें पीले पड़ने शुरू हो जाते है|

रोकथाम- घुलनशील सल्फर या फेनेजाक्वीन को पानी में मिलाकर छिड़काव करें|

जड़ का गलना- इस बीमारी के साथ पौधे की छाल और लकड़ी भूरे रंग की हो जाती है और इस पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है| प्रभावित पौधे सूखना शुरू हो जाते है| इनके पत्ते जल्दी झड़ जाते है|

रोकथाम- कॉपर आक्सीक्लोराइड 400 ग्राम को 200 लीटर पानी में मिला कर मार्च महीने में छिड़काव करें| जून महीने में दोबारा छिड़काव करें| कार्बेन्डाजिम 10 ग्राम+ कार्बोक्सिन(वीटावैक्स) 5 ग्राम को 10 लीटर पानी में मिला कर, इस घोल से पूरे वृक्ष को दो बार तर कर दें| पहला अप्रैल से मई मानसून से पहले और दूसरा मानसून के बाद सितंबर से अक्तूबर में डालें| इसके बाद पौधे की हल्की सिंचाई करें|

फल तुड़ाई

नाशपाती की खेती से फल जून के प्रथम सप्ताह से सितम्बर के मध्य तोड़े जाते है| नज़दीकी मंडियों में फल पूरी तरह से पकने के बाद और दूरी वाले स्थानों पर ले जाने के लिए हरे फल तोड़े जाते है| तुड़ाई देरी से होने से फलों को ज्यादा समय के लिए स्टोर नहीं किया जा सकता है और इसका रंग और स्वाद भी खराब हो जाता है|

पैदावार

नाशपाती की खेती से साधारणतया नाशपाती के एक वृक्ष से 1 से 2 क्विटंल तक फल प्राप्त हो जाते है, अतः प्रति हैक्टर क्षेत्र से 400 से 750 क्विंटल फल उत्पादित हो सकते है|

यह भी पढ़ें- बेर की खेती: किस्में, प्रबंधन, देखभाल और पैदावार

यदि उपरोक्त जानकारी से हमारे प्रिय पाठक संतुष्ट है, तो लेख को अपने Social Media पर Like व Share जरुर करें और अन्य अच्छी जानकारियों के लिए आप हमारे साथ Social Media द्वारा Facebook Page को Like, Twitter व Google+ को Follow और YouTube Channel को Subscribe कर के जुड़ सकते है|

Reader Interactions

Leave a Reply Cancel reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Primary Sidebar

“दैनिक जाग्रति” से जुड़े

  • Facebook
  • Instagram
  • LinkedIn
  • Twitter
  • YouTube

करियर से संबंधित पोस्ट

आईआईआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कट ऑफ, प्लेसमेंट

एनआईटी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, रैंकिंग, कटऑफ, प्लेसमेंट

एनआईडी: कोर्स, पात्रता, प्रवेश, फीस, कट ऑफ, प्लेसमेंट

निफ्ट: योग्यता, प्रवेश प्रक्रिया, कोर्स, अवधि, फीस और करियर

निफ्ट प्रवेश: पात्रता, आवेदन, सिलेबस, कट-ऑफ और परिणाम

खेती-बाड़ी से संबंधित पोस्ट

June Mahine के कृषि कार्य: जानिए देखभाल और बेहतर पैदावार

मई माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

अप्रैल माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

मार्च माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

फरवरी माह के कृषि कार्य: नियमित देखभाल और बेहतर पैदावार

स्वास्थ्य से संबंधित पोस्ट

हकलाना: लक्षण, कारण, प्रकार, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

एलर्जी अस्थमा: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान और इलाज

स्टैसिस डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, जटिलताएं, निदान, इलाज

न्यूमुलर डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, डाइट, निदान और इलाज

पेरिओरल डर्मेटाइटिस: लक्षण, कारण, जोखिम, निदान और इलाज

सरकारी योजनाओं से संबंधित पोस्ट

स्वर्ण जयंती शहरी रोजगार: प्रशिक्षण, लक्षित समूह, कार्यक्रम, विशेषताएं

राष्ट्रीय युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम: लाभार्थी, योजना घटक, युवा वाहिनी

स्वर्ण जयंती ग्राम स्वरोजगार: उद्देश्य, प्रशिक्षण, विशेषताएं, परियोजनाएं

प्रधानमंत्री सहज बिजली हर घर योजना | प्रधानमंत्री सौभाग्य स्कीम

प्रधानमंत्री वय वंदना योजना: पात्रता, आवेदन, लाभ, पेंशन, देय और ऋण

Copyright@Dainik Jagrati

  • About Us
  • Privacy Policy
  • Disclaimer
  • Contact Us
  • Sitemap