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कुसुम की खेती: किस्में, बुवाई, सिंचाई, पोषक तत्व, देखभाल, पैदावार

August 18, 2019 by Bhupender Choudhary Leave a Comment

कुसुम की खेती कैसे करें

कुसुम (Safflower) एक औषधीय गुणों वाली तिलहनी फसल है| भारत विश्व में कुसुम का मुख्य उत्पादक देश है| इसके दानों में 30 से 32 प्रतिशत तेल पाया जाता है| यह तेल उच्च रक्तचाप तथा हृदय रोगियों के लिए लाभदायक है| अन्य खाद्य तेलों की अपेक्षा कुसुम तेल में असंतृप्त वसीय अम्ल की मात्रा अधिक होती है|

इसके तेल में पाये जाने वाले असंतृप्त वसीय अम्ल में 76 प्रतिशत लिनोलिक अम्ल तथा 14 प्रतिशत ओलिक अम्ल पाया जाता है| अंकुरण के बाद प्रारम्भिक अवस्था में यह फसल तापमान-सहनशील होती है| इस अवस्था में पौधे की ऊपरी बढ़वार धीमी होती है, परन्तु जड़े काफी तेज गति से वृद्धि करती है|

जिससे आगे की नमी की अवस्था में भी पौधों को पर्याप्त पानी उपलब्ध हो पाता है| इसी लिए कुसुम की खेती सिमित सिंचाई अवस्था में की जाती है| कर्षक यदि कुसुम की खेती आधुनिक तकनीक से करें, तो इसकी फसल से अच्छा उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है| इस लेख में कुसुम की खेती वैज्ञानिक तकनीक से कैसे करें की जानकारी का उल्लेख किया गया है|

यह भी पढ़ें- खरीफ तिलहनी फसलों की पैदावार कैसे बढ़ाएं

कुसुम की खेती के लिए भूमि की तैयारी

अपेक्षाकृत भारी गठन एवं बेहतर नमी धारण की क्षमता वाली मध्यम भूमि को प्राथमिकता देनी चाहिए| फसल की बढ़वार के दौरान खेत में जल-जमाव नहीं होना चाहिए| धान के कटाई के तुरंत बाद दो से तीन जुताई करके पाटा चला दें| ऐसा करने से भूमि की नमी संरक्षित रहेगी| ध्यान रहे कि अंकुरण के समय खेत में पर्याप्त नमी हो|

कुसुम की खेती के लिए उन्नत किस्में

फसल की अच्छी पैदावार में उन्नत एवं अनुशंसित किस्मों का बहुत ही महत्व है| कुसुम की उन्नत किस्में इस प्रकार है, जैसे-

के 65- यह कुसुम की अच्छी प्रजाति है, जो 180 से 190 दिन में पकती है| इसमें तेल की मात्रा 30 से 35 प्रतिशत होती है और औसत उपज 14 से 15 कुन्तल प्रति हेक्टेयर है|

मालवीय कुसुम 305- यह भी कुसुम की अच्छी किस्म है जो 160 दिन में पकती है| इस किस्म में तेल की मात्रा 36 प्रतिशत तक पाई जाती है|

ए 300- यह किस्म 160 से 170 दिनों में पककर 8 से 9 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत पैदावार देती है| इस किस्म के पुष्प पीले रंग के होते हैं तथा बीज मध्यम आकार एवं सफेद रंग के होते हैं| बीजों में 31.9 प्रतिशत तेल पाया जाता है|

ए 1- यह किस्म भी ए- 300 के समान 160 दिनों में पककर 8 से 10 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की औसत पैदावार देती है| इसके बीज सफेद रंग के होते हैं तथा इसके बीजों में 30.8 प्रतिशत तेल पाया जाता है|

अक्षागिरी 59-2- इस किस्म की औसत पैदावार 4 से 5 क्विंटल प्रति हेक्टर है| यह किस्म 155 दिनों में पककर तैयार हो जाती है| इसके पुष्प पीले रंग और बीज सफेद रंग के होते हैं| इसके दानों में 31 प्रतिशत तेल पाया जाता है|

यह भी पढ़ें- तिलहनी फसलों में गंधक का महत्व, जानिए अधिक उत्पादन हेतु

कुसुम की खेती के लिए बोआई का समय

अक्टुबर माह के प्रथम सप्ताह से नवम्बर के प्रथम सप्ताह तक बोआई अवश्य कर दें अन्यथा अधिक ठंढ पड़ने से अंकुरण पर बुरा असर पड़ता है|

कुसुम की खेती के लिए बीज दर

कुसुम फसल की बोआई के लिये प्रति हेक्टर 15 से 20 किलोग्राम उपचारित बीज की जरूरत होती है| बीज को 3 ग्राम थायरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करें| कतार से कतार का अन्तर 45 सेंटीमीटर रखें| कुसुम फसल के अंकुरण के लिये खेतों की तैयारी तथा बोआई में विशेष सतर्कता रखनी पड़ती है| इसके दानों का छिलका छोटा तथा चिकना होता है|

अतः जबतक बीज नमीं में नहीं भींगता और गीली मिट्टी बीज के चारों ओर नहीं चिपकती तब तक अंकुरण नहीं होता है| सम्भव हो तो बोआई पूर्व बीजों को रात भर पानी में भीगों दे ताकि अंकुरण अपेक्षाकृत जल्द हो जाए| खेतों की नमी बीजों को उपलब्ध हो सके, इसके लिए 4 से 5 सेंटीमीटर गहरी बोआई करें| अंकुरण के 20 से 25 दिनों के अन्दर ही पौधे से पौधे का अन्तर 20 से 25 सेंटीमीटर रखना चाहिए|

कुसुम की खेती में उर्वरक प्रयोग

कुसुम की अच्छी फसल हेतु 40 किलोग्राम नाइट्रोजन, 20 किलोग्राम फास्फोरस, 20 किलोग्राम पोटाश प्रति हेक्टर की दर से बोवाई के समय नाली की निचली सतह पर डाल दें|

यह भी पढ़ें- तिलहनी फसलों में खरपतवार नियंत्रण कैसे करें

कुसुम की खेती में सिंचाई प्रबंधन

यदि सिंचाई की सुविधा उपलब्ध हो तब एक या दो सिंचाई पौधे की बढ़वार अवस्था (55 से 60 दिन) व जब पौधे में शाखाएँ पूर्ण विकसित हो जाए, तब करें| ऐसा करने से उत्पादन में 15 से 20 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है|

कुसुम की खेती में निराई-गुड़ाई

प्रारम्भ में कुसुम के पौधों की वृद्धि बहुत कम होती है| इसलिए खरपतवार से फसल की प्रतिस्पर्धा अधिक होती है| अतः एक माह के अन्दर इसकी निकाई-गुड़ाई आवश्यक है| खेत को खरपतवार से मुक्त रखें| प्रत्येक वर्षा के बाद फावड़े या डच हो से हल्की गुड़ाई कर देनी चाहिए, ताकि नमी का संरक्षण हो सके|

कुसुम की खेती में रोग नियंत्रण

कुसुम में समय-समय पर रस्ट और अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट का प्रकोप देखा गया है| इन रोगों से बचाव के लिए उपचारित बीज का प्रयोग करना चाहिए| अनुशंसित फसल-चक्र अपनाकर भी इस बीमारी पर नियंत्रण किया जा सकता है| रोगरोधी प्रभेदों का व्यवहार करें| ए पी आर आर- 4 कुसुम की रस्ट रोधी किस्म है| रस्ट एवं अल्टरनेरिया लीफ स्पॉट के लक्षण दिखाई पड़ते ही डायथेन एम- 45 की 0.5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें| आवश्यकता पड़ने पर 15 दिनों के अन्तराल पर पुनः छिड़काव करें|

यह भी पढ़ें- सोयाबीन की खेती- किस्में, रोकथाम व पैदावार

कुसुम की खेती में कीट नियंत्रण

कुसुम में कीटों का प्रकोप कम होता है| लेकिन कभी-कभी काली लाही का आक्रमण होता है| इससे बचाव के लिए सही समय पर बोआई करें, क्योंकि विलम्ब से बोआई होने पर लाही का प्रकोप अधिक पाया जाता है| इसका नियंत्रण नुवान 250 मिलीलीटर प्रति हेक्टर की दर से छिड़काव करके किया जाता है|

कुसुम फसल की कटाई

परिपक्वता आने पर निचली पत्तियों को काटकर हटा दें ताकि पौधों को काँटेदार पत्तियों के बाधा के बिना आसानी से पकड़ा जा सके| इसके अतिरिक्त काँटेदार जाति की कटाई के लिये हाथों में दस्ताने पहनकर तथा कार्यिकी परिपक्वता अवधि पर कटाई कर परेशानी को कम किया जा सकता है| कटी फसल को 2 से 3 दिनों तक धूप में सुखाने के बाद डण्डे से पीटकर मड़ाई की जाती है|

कुसुम का भण्डारण

समुचित ढंग से सुखाने के बाद बीजों का भण्डारण करना चाहिए| कुसुम के औषधीय गुण कुसुम का बीज, छिलका, पत्ती, पंखुड़ियाँ, तेल, शरबत सभी का उपयोग औषधि के रूप में किया जा सकता है| कुसुम का तेल भोजन में उपयोग करने पर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा कम रहती है एवं तेल से सिर दर्द में भी आराम मिलता है|

इसके शरबत का उपयोग बदन दर्द में किया जाता है| मांसपेशियों की चोट, कलाई में दर्द, हड्डियों में दर्द, घुटने में दर्द में भी इससे इलाज किया जाता है| कुसुम की पंखुड़ियों से बनी चाय का उपयोग औषधि के रूप में तथा शक्तिवर्धन के रूप में किया जाता है| मानसिक रोगों में भी कुसुम के रस से उपचार किया जाता है|

यह भी पढ़ें- मूंगफली की खेती कैसे करे

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