काजू एक प्रमुख बागवानी फसल है| जिसकी मुख्य रूप से केरळा, महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटका, तमिळनाडु, आंद्रप्रदेश और ओडिशा में खेती की जा रही है| पश्चिम बंगाल, छत्तीसगड़, गुजरात तथा उत्तर-पूर्वी प्रदेशों में इसे कुछ क्षेत्रों में उगाया जाता है| लोकप्रिय नाश्तावों में उपयोग के साथ साथ काजू को आईसक्री, पेस्ट्री तथा मिठाईयो में भी इस्तमाल [अधिक पढ़े] …
बागवानी
लीची के पौधे कैसे तैयार करें: प्रवर्धन विधियाँ
लीची के पौधे बीज तथा कायिक प्रवर्धन द्वारा तैयार किये जा सकते हैं| बीज से तैयार पौधों में फलत 10 से 15 वर्ष बाद आती है, जो गुणों में भी अपने मातृ पौधे के समान नहीं होते तथा गुणवत्ता भी अच्छी नहीं पायी जाती है| गुणवत्ता बनाये रखने और जल्दी फलत प्राप्त करने के लिए [अधिक पढ़े] …
लीची में कीट एवं रोग नियंत्रण: जाने समेकित उपाय
लीची के बागों में विभिन्न प्रकार के कीटों और रोगों का प्रकोप होता है| जिससे उत्पादन और गुणवत्ता प्रभावित होती है| अतः बागवानों को लीची में समय-समय पर लगने वाले कीट एवं रोगों के बारे में जानकारी होना आवश्यक हो जाता है| ताकि समय पर लीची में प्रभावी प्रबंधन किया जा सके और फलों को [अधिक पढ़े] …
लीची की उन्नत किस्में: विशेषताएं और पैदावार
हमारे देश में उगायी जाने वाली लीची की लगभग 40 प्रजातियां हैं| किन्तु व्यावसायिक स्तर पर उत्तरी भारत में शाही, चाईना, रोज सेन्टेड, कस्बा एवं पूरवी आदि किस्मों की खेती अधिक की जाती है| इनके अतिरिक्त अर्ली बेदाना, लेट बेदाना, देशी, लौंगिया एवं कसैलिया की खेती भी छोटे स्तर पर देश के सभी क्षेत्रों में [अधिक पढ़े] …
सेब में कीट एवं रोग नियंत्रण: आधुनिक तकनीक
सेब के बागों या फलों को अनेक कीट व रोग हानी पहुंचाते है| सेब के कीटों में सैन जोस स्केल, सेब का रूईदार तेला, फूलों के कीट, पत्ता मोडक तथा फल खुरचने वाले कीट, सेब का फल पतंगा और छेदक कीट आदि प्रमुख है| वहीं रोगों में नर्सरी पौधों का अंगमारी, हेयरी रूट, श्वेत जड़ [अधिक पढ़े] …
सेब के विकार और उनका प्रबंधन: अच्छी उपज के लिए
जिस प्रकार सेब के बागो को अनेक प्रकार के कीट एवं रोग हानी पहुंचाते है| उसी प्रकार अनेक प्रकार के विकार भी इसके बागों को प्रभावित करते है| सेब के विकार इस प्रकार है, जैसे- बिटर पिट, ब्राउन हार्ट, कॉर्क स्पॉट, स्काल्ड, जल कोर, सन बर्न, गेरूआपन और फल गिरना आदि प्रमुख है| इन सब [अधिक पढ़े] …